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Showing posts from November, 2011
आधार- जैसे ही तीनों कर्मचारी अन्दर गए बहार भीड़ का ऐसा रेला आना शुरू हुआ लगा कि यहाँ कोई सुपरहिट फिल्म की टिकेट खिड़की खुल गयी हो !आदमी के ऊपर आदमीं चढाने लगा.किसे के कन्धों पर कोई भी चढ़ा  जा रहा है. ऐसे में चीख पुकार मचनी स्वाभाविक थी. लिहाजा लोग चीखे भी मगर उनकी वहाँ सुननेवाला कोई नहीं था. मैं अपने चार पहिये के स्कूटर पर बैठा -बैठा सिर्फ देखा  ही सकता था. क्योंकि जब वहाँ अच्छे -अच्छों को पसीने छूट रहे हों तो मेरे जैसा आदमीं क्या कर सकता था ? लोगों को चीखता हुआ देखकर जो पीड़ा हुए उसको तो वही महसूस कर सकता है जिसका बेटा वहाँ लाइन में लगा हो. उसको महसूस हो सकता है जिसकी बेटी लेने में लगी हो. जो लोग ऊपर चढ़ रहे हैं उनको तो सिर्फ अपना स्वार्थ ही नजर आ रहा था. एक शिक्षित इंसान इतना गैर जिम्मेदार हो सकता है मैं यह देख कर दांग रह गया. लाइन में लगे लोगों की पीड़ा और उनकी चीखों को सुननेवाला वहाँ कोई नाहे दिखा. किसी ने उन नौजवानों से यह भी नहीं पूंछा कि भैया जी आप ये क्या कर रहे हैं? जो भी वहाँ खडा था बस उसको अपना ही स्वार्थ दिखाई दे रहा था. महज एक सेकेण्ड में तीन घंटों से लगी ल
आधार  सुबह के १०.३० बज चुके हैं. रायपुर  जीपीओ के एक कोने में आधार कार्ड बनाने के लिए जो सेण्टर बनाया गया है, वहां से लेकर में गेट तक दो सौ लोगों की भीड़ जमा हो चली है. हर कोई इसी चक्कर में है कि कब उसका नंबर आये. राजधानी के बधैपारा निवासे रोशन कुमार से मुलाक़ात हो जाती है. वे आज यहाँ पहली बार आये हैं. आधार कार्ड क्या है वे नहीं जानते ? मैंने जब उनसे पूंछा तो वे पहले तो चौंके उसके बाद बोले मुझे नहीं पता ? लेकिन जब सब बनवा रहे हैं तो मैंने सोचा चलो मैं भी बन्वालेता हूँ . इसके बाद वहीं खड़ी एक वैन में चिट्ठियाँ लोड कर रहे अशोक दस मानिकपुरी ने बताया कि इसको बनाने के लिए एक अलग बिभाग काम कर रहा है. उसके स्टाफ भी अलग हैं.सदर बाज़ार के कपड़ा व्यवसाई  विनोद जैन भी फॉर्म लेने तो पहुंचे मगर लम्बी लाइन देखा कर वापस जाने लगे तो मैंने उनसे पूंछ लिया कि भैया जी आप वापस क्यों जा रहे हैं? उन्हों ने बताया कि इतनी लम्बी लाइन में अगर लगूंगा तो मेरे तो दूकान ही नहीं खुल पायेगी.! बढईपारा निवासे राम देवी (68) ने भी बताया कि उनको भी नहीं पता कि इसका क्या करना है लेकिन बहुओं ने कहा है कि आम्मा जी