तेजी से दौड़ो या फिर सिंहासन छोडो

एक ओर  में  सामूहिक अनाचार की घटनाएं, राष्ट्रपति भवन जा रहे छात्रों और छात्रों पर लाठियां चटकाती पुलिस, न्याय माँगने की ये सजा किसने मुक़र्रर की ? खुद को जनता का सेवक बतानेवाले नेता और तथाकथित मानवाधिकारवादी नदारद? क्या ये मंज़र देखकर रायसीना हिल्स का सीना नहीं हिला? अपनी नाकामी और हरामखोरी को छिपाने के लिए तंत्र लाठियां लेकर लोक पर पिल पडा ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का यह शर्मनाक चेहरा देश की जनता के साथ मैंने भी देखा। गजब के लोक तंत्र में जीते हैं हम? जहां आलसी और कामचोर बहानेबाजों की चलती है? एक झूठ को सच साबित करने के लिए पवित्र गीता और कुरान  जैसे  ग्रंथों की कसमें खिलाई जाती हैं? अरे बहुत हो गया कहाँ है वो आंबेडकर द्वारा अनुवादित किया क़ानून ? उसे जितनी जल्दी बदल सकते हो बदल डालो। वरना फिर सिंघासन छोडो अब देश को बुद्धों की नहीं युवाओं की जरूरत है। जय जवान जय किसान जय विज्ञान।

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