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Showing posts from March, 2012

पत्रकारिता की पुंगी बजाता मीडिया

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आप इस खबर को पढ़ कर कृपया अपनी राइ दीजिये की क्या ऐसे समय में जब चीन के राष्ट्रपति हमारे यहाँ की यात्रा पर हैं और चीन हमें चारों और से घेरने की फ़िराक में है, ऐसे में इसको दिखा कर हम क्या साबित करना चाहते हैं? क्या इससे हमारे सैनिकों का मनोबल नहीं टूटता ? क्या इससे एक आम नागरिक का लोकतंत्र में विस्वास रह जाएगा?क्या हमारे जनप्रतिनिधियों के पास सिवाय घोटालों और भ्रष्टाचार के सिवा दूसरा काम नहीं रहा. किस और jaa रहा है ये देश ? ऐसे में पत्रकारिता के कायदों की पुंगी बजाकर हमारे बुद्धिजीवी पत्रकार और सम्पादक क्या साबित करना चाहते हैं. इनकी पत्रकारिता को नमन है.पर क्या यह देश के स्वास्थय के लिए घटक नहीं है? इस पर आपकी बेबाक राय दीजिये और बता दीजिये की भारत का हर अवाम अपने सरहद के रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. जय हिंद !!!!!!

पेश है कही अनकही हिंदी दैनिक का सम्पादकीय जिसे मैं लगातार लिखता आ रहा हूँ..

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गरीबी का मजाक

जिस देश में गांवों में २२ रुपये और शहरों में २८ रुपये दैनिक खर्च करनेवाला गरीबी रेखा के नीचे नहीं आता.क्या उस देश में एक अधिकारी को लाखों रुपये माहवार वेतन मिलना चाहिए? क्या उस देश का मंत्री हर माह डेढ़ लाख से ज्यादा रुपये का वेतन लेने का अधिकारी है ? जो आदमी पूरे एक साल में गरीबी का सही आंकड़ा तक नहीं पेश कर पाया क्या उसको योजना आयोग अध्यक्ष के पद पर बना रहना ठीक है? क्या इसके बाद भी आप मानते हैं की भारत में लोकतंत्र ज़िंदा है?मजेदार बात तो यह है की ये सब करनेवाले बड़े-बड़े विश्वविद्द्यालयों की डिग्री लेकर आये हैं. सरकार के रजिस्टर में ये लोग उच्च शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं. यह तो गाँव का एक अनपढ़ भी आपको बता देगा की ये आंकड़ा ठीक नहीं है. अगर ऐसा है तो फिर मोंटेक सिंह को चाहिए की वे चार महीने उसे रुपये में ज़िंदा रहकर दिखा दें.

गठिया के दर्द से बचाता है तुम्बरू का डंडा

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रमेश प्रताप सिंह जी हाँ यह अनुसंधान का विषय भी हो सकता है की तुम्बरू में आखिर ऐसा क्या है की इसका डंडा लेकर चलने मात्र से गठिया का दर्द नहीं होता? प्राचीन ग्रंथों में ऐसा वर्णन मिलता है की तुम्बरू का डंडा लेकर चलने से अरथारैतिश में लाभ होता है. यही नहीं इसकी जड़ों को घिसकर चन्दन की तरह चहरे पर लगाने से चहरे पर मुंहासे के दाग धब्बों से भी मुक्ति मिलाती है. इसकी पतली लकड़ी को दातुन की तरह चबा-चबा कर दातुन करने से मुख की शुद्धि हो जाती है. इसका रस पेट में जाने से पाचन शक्ती भी बाधा जाती है. इसके बीजों में भी तमाम गुण पाए जाते हैं. अगर विश्वास न हो तो करके देखिये.?

झोलाछाप कौन ?

सरकारी मान्यता लेकर लोगों का गला काटना कहाँ की भलमनसाहत है ? अपनी दुकानदारी चलाने के लिए दूसरों को बदनाम करना कहाँ तक ठीक है. इंडियन मेडिकल काउन्सिल से प्रमाणित चिकित्सक क्या गलती नहीं करते ? जो शिक्षित बेरोजगार कहीं से किसी डॉक्टर के यहाँ से कुछ दवाएं सीख कर गाँवों में चिकित्सा कार्य कर रही हैं . उनको झोलाछाप कहकर मानसिक रूप से परतादित करना कहाँ की मानसिकता है. क्यों नहीं बड़े-बड़े स्पेसलिस्ट शहरों की चकाचौंध छोड़कर गावों में जाकर गरीब जनता की सेवा करते? अगर वे ऐसा नहीं कर पा रही और कोई दूसरा कर रहा है तो उसको झोलाछाप कहकर उसकी हंसी उड़ाने वाले  शायद यह नहीं जानते की dhanwantari पहले झोला chhap the . usake बाद charak , और शुश्रुत व बाद में चलाकर हनिमान भी उन्ही की श्रेणी में aaye. इनको किसी भी तथाकथित मेडिकल काउन्सिल ने प्रमाणपत्र नहीं दिया था.सिक्षा केवल मेडिकल कालेज में नहीं मिलाती. अगर आदमी के अन्दर लगन हो तो किताबों के माध्यम से अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है. और ज्ञान किसी की बपौती नहीं है. जो लोग ग्रामीण डॉक्टरों को झोलाछाप कहते हैं या तो उनका ज्ञान कमजोर है. न

दोहे दुमदार

  नारद जी ने स्वर्ग में तुरत पठाया फैक्स , भारत ने सामान पर बढ़ा दिया है टैक्स .. भजन के कैसेट भेजो .. मोबाईल पर राम के सूपनखा का फोन . भालू भौचक्के सभी बानर बैठे मौन.. बोलिए  ईलू - ईलू.... भोले जी पिक्चर गए जब निकाल कर टेम. कम्प्यूटर पर खेलते भूत वीडियोगेम .. भवानी राम भरोसे. पायदान पर आयके बैठ गए दुखराम . बोले मुझको आपसे बहुत जरूरी काम. अभी कुछ और बचा है....... कपूत प्रतापगढ़ी हास्यकवि

कटे हुए मांस को जोड़ देती है ये पत्ती

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रमेश प्रताप सिंह जी हाँ , ये बात सौ फीसदी सच है की विधारा की पत्तियों में लपेटकर रखा गया कटा मांस जुड़ जाता है. विधारा का दूसरा खास गुण ये है की इसके लता को अगर किसी टूटी हुई हड्डी के चरों ओर लपेट देते हैं तो वह हद्दे कुछ दिनों में ही जुड़ जाती है. आयुर्वेद में इसका भी उल्लेख मिलता है की अगर इसकी पत्तियों का रस किसी घाव पर लगाया जाये तो वह जल्दी भर जाता है. यहाँ तक की गंग्रीन तक के घावों को बड़ी ही आसाने से भर देती है ये विधारा.पश्चिम बंगाल के गुदाप में एक व्यक्ति इसी विधारा की लताओं को बांधकर टूटी हड्डियों का इलाज करता आ रहा है.जिसके बारे में मैं ने तकरीबन दस साल पहले एक समाचार भी लिखा था. हालांकि यह अनुसंधान का विषय भी हो सकता है की इसमें ऐसा क्या है की जिससे कटा हुआ मांस और हड्डियां तक जुड़ जाती हैं ?