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संतों का नाम बेंचना बंद करें बाबा रामदेव

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बाबा रामदेव देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का ख्वाब दिखा रहे हैं. लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि अभी तक तथाकथित संतों ने हमारे हिन्दू धर्म को जितना नुकसान पहुँचाया है उतना किसी अन्य ने नहीं. खुद तो आयुर्वेद कि दवाओं को पूजीपतियों को बेंच कर धन कमा रहे हैं. ऊपर से तुर्रा यह कि हम संत हैं? बाबा के पास धन तो बहुत है पर संतोष धन कितना है यह आज तक किसी को भी नहीं दिखाई दिया. संत के पास नोटों की गद्दियाँ नहीं धूने कि राख होती है. उसकी फूँक में वह दम होता है जो किसी भी असंभव को संभव कर सकता है. उसके लिए किसी सृंग भस्म, किसी चूर्ण किसी काढ़े की जरुरत नहीं होती, साफगोई तो यह है कि जिसकी फूँक में दम नहीं वह संत नहीं .संत पैदल चलना पसंद करता है हेलीकाप्टर में बैठना नहीं. अब बाबा ही अपने श्रीमुख से कहदें कि क्या वे संत हैं? अगर नहीं तो फिर संतों का नाम बेंचकर खाना बंद कर दें. वैसे भी इस देश कि भोली भली जनता को पहले ही कई दर्जन छद्मवेशी तथाकथि बाबा छल चुके हैं. बस अब तो बाबा से एक ही प्रार्थना है कि संतों का नाम बेंचकर खाना बंद करदें. देश पर उनका एहसान होगा.

babaaon se savdhan

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एक बाबा हैं रामदेव जो योग गुरु के नाम से भी जाने जाते हैं । देश कि सीधी सादी जनता को जानवरों कि सींग का भस्म खिलाकर अहिंसा का उपदेश दे रहे हैं। आयुर्वेद कि सस्ती दवाओं को सोने के भाव बेंचकर मुनाफ़ा कमा रहे हैं, जबकि सुश्रुत में स्पष्ट उल्लेख है कि धन कमाने कि इच्छा रखनेवाले को आयुर्वेद के माध्यम से उपचार नहीं करना चाहिए । यहाँ तो हमारे बाबा जी दोनों हाथों से नोट खींच रहे हैं। वहीं भ्रष्टाचार के नाम पर लम्बे चौड़े भाषण झाड रहे हैं। यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। सबसे बड़े बाबा तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में सन्यासी कि परिभाषा दी है। कि - मुई नारी घर सम्पति नासी , मूंड मुडाई भये सन्यासी॥ तो ये बाबा इसमें से किस श्रेनी के सन्यासी हैं? हमारे देश में हमेशा से ही अन्धानुकरण करने वाले लोगों कि कोई कमी नहीं रही । एइसे ही लोगों के बीच में हमारे या तथाकथित बाबा जी घिरे हुए हैं। लिहाजा आम अवाम से यह गुजारिश है कि बाबा से सावधान रहें। क्योंकि इनका तो नाम ही है राम देओ यानी राम के नाम पर दुकानदारी चलाने में माहिर बाबा खुद को गरीबों का मसीहा साबित करने के लिए लगातार उलटे सीधे बयान दिए जा रहे हैं

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