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Showing posts from January, 2013

एक नया बहाना

आजकल मीडिया में एक नया बहाना  चलन में आ गया है। यहाँ आपके शारीरिक सौन्दर्य को आपकी योग्यता माना जा रहा है। यानि बढ़िया लिखने से ज्यादा  जरूरी हो गया है कि बढ़िया  दिखने वाला हो। लेखन को दूसरा दर्जा दिया जा रहा है। सवाल तो ये है की क्या ये मान लिया जाये कि अब मीडिया से बढ़िया लिखनेवालों की विदाई होनेवाली है? और उनका स्थान शारीरिक सुन्दरता लेगी? अखबार के लिए क्या जरूरी है शाब्दिक सौन्दर्य या फिर शारीरिक सौंदर्य ?

31 January's Editorial which published in Jandakhal

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जनदखल सांध्य दैनिक के 30 जनवरी के अंक में प्रकाशित सम्पादकीय आपके लिए, अपनी रे जरूर दीजियेगा।

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राष्ट्रपति भवन में छत्तीसगढ़ी कलाकार

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गणतंत्र दिवस की संध्या पर राष्ट्रपति भवन में छत्तीसगढ़ी कलाकारों ने बेंगानी करमा, दोहरी और माड़ी कर्मा की प्रस्तुति देकर प्रणब मुखर्जी का मन मोह लिया। हमारे कलाकारों को हार्दिक बधाई , छत्तीसगढ़ महतारी के लाल ने तो कमाल कर दिया।पूरे देश को अपनी तान पर झुमाने वाले इन कलाकारों को हम भी झुक कर सलाम करते हैं।

25 जनवरी के जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित सम्पादकीय

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बँटवारा

मुझे सिर्फ एक शब्द ने हर बार आहत किया और वो है बँटवारा, देश का बंटवारा, काल का बंटवारा, राज्य का बंटवारा, जिले का बंटवारा,घर का बंटवारा, समाज का बंटवारा, और अब तो हद ही हो गई। सुनाने में आ रहा है की कुछ लोगों ने पत्रकारों का भी बंटवारा कर लिया है। बुद्धिजीवी भी बाँट गए? वाह क्या बात है? चलो इसी बहाने अखबार और इलेक्ट्रानिक चैनल के मालिकों की चांदी हो जायेगी। मणिसाना वेतन बोर्ड के नाम पर पसर सन्नाटा अब मजीठिया वेतन बोर्ड को भी निगल रहा है। और हम बंटवारे में मगन हैं। होना तो ये चाहिए था की जिस शिद्दत के साथ हम दूसरों की मांगें उठाते हैं उसी शिद्दत से पत्रकारों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी एकजुट होते-- मगर यहाँ तो नज़ारा ही कुछ और देखने को मिल रहा है?-- खैर-- खुशी से आग लगाओ की इस मोहल्ले में, मेरा मकां ही नहीं है तुम्हारा घर भी है!!

इसे ही कहते हैं तकदीर का तमाशा

इसे ही कहते हैं तकदीर का तमाशा, देश की सबसे शक्तिशाली महिला अपने सहयोगियों के साथ चिंतन शिविर में चिंता करने में मगन हैं। तो उसी शिविर से कुछ ही दूरी पर जयपुर की दामिनी कराह रही है? क्या चिंतन शिविर से कुछ समय निकाल कर उसका हाल-चाल नहीं जाना जा सकता है? ये ही हमारे वैचारिक बौनेपन और आचरण के दोगलेपन की इन्तेहा है।,कि कहते हम कुछ और हैं और करते कुछ और। युवों के आइकोन बनाने का दावा करने वाले उस युवराज से देश का युवा ये नहीं जानना चाहेगा कि एक दामिनी को तो आपकी सरकार ने थाईलैंड भेजकर अपनी पीठ -थपथापा ली मगर दूसरी लड़की की बात आते ही आपकी दरियादिली कहाँ काफूर हो गई? कुल मिलकर इनको न तो देश की चिंता है और न ही देश की जनता की- इनका ये एक अदद कुर्सी अभियान है जिसकी खानापूरी की जा रही है। इसमें चापलूसी अपने चरम पर है। हर कोई राहुल और सोनिया गांधी को मक्खन लगाने की फ़िराक में है ताकि उसका टिकट पक्का हो जाए छिः -छिः -छिः -छिः .

17 जनवरी के जनदखल में प्रकाशित मेरी संपादकीय आपके लिए हाज़िर है !

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ये रहा एक जनवरी 2013 को जनदखल का मुख्यपृष्ठ जिसको मैंने लगवाया है !

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