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कलम का क़लम होना तय

आरपी. सिंह की दो टूक सत्ता बनीं पत्रकारिता की सौत और उसी की वजह से हुई पत्रकारिता की मौत..... इतने पर भी कुछ लोग गर्दन ऐंठे हैं कुंडली मार कर उसकी लाश पर बैठे हैं। उसकी लाश में भी अवसर तलाश रहे हैं। कहीं खुद फंस रहे हैं  तो कहीं किसी और को फांस रहे हैं। नेता नायक हो गए, कुछ कवि सत्ता के गलियारों के गायक हो गए, कुछ चापलूस पत्रकारिता के लायक हो गए। ऐसे में कलम का क़लम होना तो तय है। न इसकी किसी को चिंता है और न भय है, क्योंकि आज कल हर समस्या का हल तिजोरी  से निकलता है।

आरपी सिंह की दो टूक-

अजीब उलझन है यार...न श्रमिक बन सके और न बुध्दिजीवी... उस पर भी तुर्रा ये कि कलम में बड़ा दम है। सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों को पत्रकारों का पेट नहीं दिखाई देता। सब लगे हैं अपनी-अपनी तिजोरियां भरने में।

आरपी. सिंह की दो टूक ...

तिजोरी के हैंडल पकड़कर उल्टे लटके कुछ लोग कलम की झुकी हुई कमर पर अनावश्यक चिंता जता रहे हैं। अरे... मुफ्त के मालपुए खाकर उपदेश देना भला किसे अच्छा नहीं लगता?

शुक्रिया डॉक्टर साहब

आर.पी. सिंह- रायपुर। हमारे समाज में चिकित्सकों को दूसरा भगवान कहा जाता है। जब हमें कोई बीमारी घेरती है अथवा जब भी कोई किसी हादसे का शिकार होता है, तो लोग उसे लेकर जिसके पास दौड़ते हैं, वो होता है कोई न कोई अच्छा डॉक्टर। कहते हैं कि एक अच्छा डॉक्टर अपने शालीन व्यवहार से ही मरीज का आधा कष्ट दूर कर देता है। बाकी का काम दवाएं करती हैं।   क्यों  मनाते हैं- हम किसी गंभीर बीमारी या  दुर्घटना से अगर बच जाते हैं तो सबसे पहले अपने भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं, मगर जो डॉक्टर हमें गंभीर बीमारियों के दलदल के निकालता है उसका भी शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए। इसी बात को लेकर 1 जुलाई को पश्चिम बंगाल के नामी चिकित्सक डॉ. विधान चंद्र राय के जन्म और पुण्य तिथि को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है।  कौन थे डॉ. राय- 1 जुलाई 1882 को पटना में जन्मे डॉ बिधान चन्द्र रॉय कलकत्ता में पले बढे और पढ़े लिखे। कलकत्ता मेडिकल कॉलिज से एमबीबी एस करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए 1909 में इंग्लैंड गए, लेकिन वहां उनके आवेदन पत्र को खारिज कर दिया गया । इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार 30 बार