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Showing posts from March, 2016

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Front Page of Hamari Sarkar of 31st March 16 and my bylion news

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अफगानिस्तान के खान की फुटपाथ पर दुकान

 न कोई वैध डिग्री न फार्मेसी का परमिशन, राजधानी के टिकरापारा के फुटपाथ पर धड़ल्ले से चल रही अफगानिस्तान के खान की दवाई की दुकान। जहां लुट रहा गरीब और पुलिस नहीं दे रही है ध्यान। इतने पर भी नहीं रहा है जाग प्रदेश का खाद्य एवं औषधि विभाग। सबसे अहम सवाल तो ये कि आखिर राज्य का स्वास्थ्य विभाग कहां सो रहा है? क्या उसको किसी बड़े हादसे का इंतजार है? मगर इन सबसे पहले तो राजधानी की पुलिसिंग पर सवाल उठते हैं। नक्सलवाद प्रभावित राज्य की राजधानी में कोई ऐसे आकर आखिर कैसे रह सकता है? जब कि पुलिस ने ही नियम बनाया था कि हर घर में रहने वाले नौकर, किराएदार और दूसरे लोगों की पूरी जानकारी पुलिस को देनी होगी। पर इसके बाद खुद पुलिस ही अपने बनाए नियमों का पालन नहीं कर रही आखिर क्यों? शर्तिया इलाज का दावा, वो भी तथाकथित जड़ी-बूटियों के सहारे रायपुर- मापदंड दरकिनार अफगानिस्तान से आए व्यापार के उद्देश्य से लोगों की खाद्य समाग्रियों  की जांच नहीं की गई। बिना जांच की दवाइयों के नाम पर विभिन्न चीजों की बिक्री की जा रही है। इस बात से खाद्य विभाग बिल्कुल अंजान है। इस तरह बिना जांच के वस्तुओं की बिक्री ये साफ जाहि

जनता की सीधी सी बात, भ्रष्टाचारियों की सम्पत्ति हो राजसात

 देश के चौकीदार प्रधानमंत्री मोदी का था ये विचार, कि न खाएंगे और न खाने देंगे। बाद में उन्होंने ने भी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के उसी तथ्य को माना, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र से जाने वाले एक रुपए का महज पंद्रह पैसा सही जगह पहुंच पाता है। ऐसे में देश में बढ रहे भ्रष्टाचार का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। रायपुर की है ये खुली राय कि बन्द होनी चाहिए ये अन्य आय। बुध्दिजीवियों ने कही ये दो टूक बात कि भ्रष्टाचारियों की सम्पत्ति हो राजसात। उसमें खोले जाएं अस्पताल और स्कूल ताकि घूस लेने वाले जाएं भ्रष्टाचार को भूल। ऐसे मामलों को निपटाने में देरी न करें फिजू़ल। रायपुर। छठवां वेतनमान देने वाली सरकार ने अधिकारियों की आय तो तय कर दी मगर जो असल में तय करना था उसे भूल गई। इसी लिए सारी व्यवस्था लापरवाही के झूले में झूल गई। लोक की सेवा के लिए बनाया गया तंत्र ही अब लोक को लतिया रहा है। जो उसकी जेब गर्म कर दे उससे हंस-हंसकर बतिया रहा है। हर काम का उसको चाहिए होता है दाम, सरकारी व्यवस्था इसी लिए होती जा रही है धड़ाम। अमीर को जिस दफ्तर में अधिकारी खीर खिलाते हैं, गरीब से उसी दफ्तर के चक्क

आदिवासियों को हाथियों के हमले से बचाएंगी मधुमक्खियां

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आर. पी. सिंह- एक्सक्लूसिव   जंगली हाथियों के हमले से आदिवासियों को मधुमक्खियां बचा सकती हैं। कृषि विभाग अगर उत्पाती हाथियों के हमले वाले इलाकों के किसानों और दूसरे लोगों को हनीबी के बॉक्स दे दे, तो इससे वहां के लोगों को न सिर्फ रोजगार मिलेगा बल्कि हाथियों का दल भी यहां आने से बचता नजर आएगा। रायपुर। उत्पाती जंगली हाथियों से राज्य के आदिवासियों को बचाने की कोशिश में लगी सरकार के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती हैं सारंग की मधुमक्खियां। ऐसा माना जाता है कि जहां इन मधुमक्खियों के छत्ते होते हैं वहां हाथियों का दल नहीं आता। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कीट-पतंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. वीके कोस्टा ने इस संदर्भ में बताया कि सारंग जिसका वैज्ञानिक नाम एपिस डोरसेटा है। ये इतनी खतरनाक होती है कि अगर एक बार गलती से भी अगर हाथी ने उसके छत्ते को छू लिया तो फिर उसे भागने का मौका नहीं मिलेगा। हाथियों के हमले से बचाव और रोजगार भी छत्तीसगढ़ सरकार का कृषि विभाग अगर रायगढ़, घरघोड़ा, रबा के कटघोरा और सरगुजा और कोरबा के  वनांचलोंं के आदिवासियों को अगर मधुमक्खियों के बॉक्स वितरित कर दें। तो इससे एक ओर

खामी का खामियाज़ा

सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आईने पे लगाना फुज़ूल है। दंतेवाड़ा के मैलावाड़ा में बुधवार को हुए लैंडमाइन विस्फोट में 7 जवानों की शहादत को लेकर एक बार फिर पुलिस की नींद टूटी है। वो भी एक साथ इतने जवानों को खोने के बाद। सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर एक ही तरह की गल्तियां सुरक्षाबलों के अधिकारी क्यों दोहरा रहे हैं? जब कि उनको कम से कम इतनी तो समझ होनी ही चाहिए कि अपराध कहां होता है? सीधी सी बात है कि जहां हिफाज़त से ज्यादा विश्वास हो। ऐसे में इनको इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि नक्सली और उनके मुखबिर हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। इनके एक-एक मूवमेंट की सूचना उन तक पहुंच रही है। इसके बावजूद भी सुरक्षा को दरकिनार किया गया। हमारे जांबाज आईजी नक्सल को क्या अपराध शास्त्र की इतनी सी भी जानकारी नहीं है? अगर थी तो फिर ये गलती आखिर कैसे हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसी गलतियां दोबारा न हों इसके लिए सुरक्षा के क्या उपाय किए गए? जवानों को सिर्फ लड़ा देना ही बहादुरी नहीं होती, हर अच्छे सेनापति का ये नैतिक दायित्व होता है कि वो इस बात की पूरी कोशिश करे कि सैनिकों का नुकसान कम से

महापंचायत का अन्याय

ज़मीं पे आ गए आंखों से टूटकर आंसू, बुरी खबर है  फरिश्ते खताएं करने लगे। सूखा ग्रस्त और ओलों के आक्रमण से पस्त, नक्सलवाद से त्रस्त जहां कानून व्यवस्था पूरी तरह हो चुकी हो ध्वस्त। ऐसे राज्य की महापंचायत में मंगलवार को आखिरकार अपने विधायकों का मंगल कर ही दिया। अंधा बांटे रेवड़ी आप-आप ही देय की तर्ज पर प्रदेश की महापंचायत में विधायकों की वेतन -भत्ते की वृध्दि को अमली जामा पहना दिया गया और राज्य की 2.55 करोड़ जनता मूकदर्शक  बनी रह गई। अब  प्रदेश के इन कर्णधारों की कारस्तानी की बात भी लगे हाथ कर ही ली जाए। राज्य के अधिकांश विधायक अपनी निधि तक का उपयोग नहीं कर पाते हैं। तमाम ऐसे विधायक है जो अपने क्षेत्रों में कितनी बार जाते है ये वहां की जनता अच्छी तरह से बता सकती है। दोहरी आपदा के बावजूद भी हमारे मुख्यमंत्री ने केंद्र से महज 6 हजार करोड़ रुपए राहत मांगी थी। किसानों के मुआवजे के लिए। उसकी जगह केंद्र सरकार ने उनको महज 12 सौ रुपए टिका दिए गए। अब ऐसे में राज्य सरकार इस संकट में पड़ी है कि किसानों को मुआवजे का भुगतान आखिर करे तो कहां से करे? एक ओर मितानिन, रोजगार सहायक, तृतीय वर्ग कर्मचारी, सफा

Front and Last page of Hamari Sarkar of 30 th March 16

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पायलीखंड में हीरों के लूट की सरकारी छूट

  अल सुबह हर कोई हाथ में सूती कपड़े का मैला सा टुकड़ा और दूसरे हाथ में खुरपी और कंधे पर गैंती लिए पायलीखंड की तरफ दौड़ते दिखाई देते हैं। हर किसी की कोशिश यही रहती है कि जिसने भी कल जहां गड्ढा खोदा था वहीं और गड्ढा खोदने में लग जाता है। क्यों चौंक गए न आप? जी हां चौंकिए मत यहां हीरों की अवैध खुदाई चल रही है। यहां महज 5 फुट की गहराई से हीरे निकाले जाते हैं। यहां के स्थानीय गरीब यहां से हीरे निकालते हैं और दलाल इनको सस्ती दरों पर खरीद कर मालामाल हो रहे हैं। सरकार ने यहां हीरों के लूट की खुली छूट दे रखी है। तभी तो लोगों का हुजूूम इस पर टूट पड़ा है? अलबत्ता गरियाबंद के पुलिस अधीक्षक अमित तुकाराम कांबले अपने थानेदार की पीठ थपथपाते नजर आ रहे हैं। तो वहीं सुरक्षा को लेकर वो भी नक्सली इलाका होने की दुहाई दे रहे हैं। पुलिस की मस्खरी के चलते ही यहां तस्करी बढ़ी है।  ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही कि आखिर कब होगी देश की पहली हीरों के खदान की नीलामी? आखिर कब होगी देश की सबसे बड़ी हीरों की खदान की नीलामी, रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में सोना खान की नीलामी की है, अब जल्द ही यहां माइनिंग शुरू ह
बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं। देश के अधिकतर हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी सूखे की मार पड़ रही है। सूखे से निपटने के लिए राज्य ने केंद्र से 6,000 करोड़ रुपए भी मांगे थे मगर केंद्र ने 1,200 करोड़ का पैकेज टिका दिया। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए अब राज्य सरकार इस बार की गर्मियों में पूरे प्रदेश में जलसुराज अभियान चलाएगी। एक अनुमान के मुताबिक छत्तीसगढ़ में लगभग 36 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है, लेकिन इसमें केवल 28 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है।  ऐसे में किसान परेशान हैं और आम जनता भी जल संकट से जूझ रही है। लिहाजा राज्य सरकार ने इस संकट से उबरने के लिए कवायद शुरू कर दी है।  इसके लिए सरकार ने जिला कलेक्टरों को अपने ग्राम सुराज की तर्ज पर इस वर्ष अप्रैल में जल-सुराज अभियान चलाने के लिए तैयारी करने के निर्देश दिए। इस अभियान के तहत कलेक्टरों को हैण्डपम्पों, ग्रामीण नल-जल योजनाओं और शहरी जल प्रदाय योजनाओं के बेहतर रख-रखाव के निर्देश दिए गए हैं। ताकि भू-जल का अधिक से अधिक दोहन किया जा सके। एक ओर वैसे ही पानी पाताल की ओर भाग रहा है। ऊ

पहेली दो पहियों की

अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मत मिलाकर मीर, कि हम गरीब हुए हैं इन्हीं की दौलत से।      साइकिल को दुनिया में आए लगभग दो सौ साल हो चले हैं और अब भी वह अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। सन 1817 में बैरन कॉर्ल वान ड्राइस ने 'ड्राइस साइनÓ नाम की साइकिल को सबसे पहले पेश किया था। यह भी कहा जाता है कि कुछ साल बाद ही, यानी तकरीबन 1839 में स्वचालित दोपहिया वाहन बनाने की कवायद शुरू हो गई। इसके बावजूद साइकिल ने लंबे समय तक सड़कों पर राज किया। यह जरूर है कि आजकल हमारे देश में अपेक्षाकृत समृद्ध लोग स्वचालित वाहनों, यानी स्कूटर, मोटर साइकिलों और कारों का इस्तेमाल करते हैं और साइकिल को नीची नजर से देखते हैं, लेकिन समृद्ध देशों में साइकिल की लोकप्रियता बढ़ी है। सड़कों पर वाहनों की भीड़, पार्किंग की कमी और प्रदूषण के ख्याल ने पश्चिमी देशों में साइकिल का चलन बढ़ाया है और साइकिल में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी भी बढ़ी है। इतने साल तक हमारे आसपास रहने के बावजूद साइकिल से जुड़े कुछ रहस्य अभी तक खुले नहीं हैं। साइकिल के रहस्य दो किस्म के हैं। पहला तो यह कि साइकिल अपना संतुलन कैसे बनाए रखती है? और दूसरा यह कि कोई व्

Front and Last page of Hamari Sarkar of 29th March 16

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Front and Last page of Hamari Sarkar of 28th March 16

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सीएम की छवि बिगाडऩे पर तुली पुलिस

प्रदेश के मुखिया एक ओर जहां पत्रकारों की रक्षा के लिए तमाम कायदे कानून बनाते हैं, तो राज्य की पुलिस उन्हीं को ठेंगा दिखाते हुए मनमानी पर उतर आई है। बस्तर में एक-एक कर चार पत्रकारों की गिरफ्तारी से तो यही बात सामने आती है। किसानों की आत्महत्या, फसलों की बरबादी, शिक्षकर्मियों, मितानिनों, रोजगार सहायकों की नाराजगी झेल रहे प्रशासन की बखिया उधेडऩे में पुलिस भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। इसी लिए खिसियाई पुलिस जिस-तिस को लठिया रही है हड्डियां तोड़ रही है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या पुलिस भी अब मुख्यमंत्री के आदेशों की परवाह  नहीं करती? जब अभी ये हाल है तो फिर तीन साल में तो ये सरकार की प्रतिष्ठा को कितना नुकसान पहुंचाएंगे?ये तो आने वाला समय ही बताएगा। लोगों का व्यवस्था से उठता विश्वास कहीं घातक न साबित हो रायपुर। बस्तर में पत्रकारों की गिरफ्तारी- बस्तर में अब तक एक -एक करके चार पत्रकारों को गिरफ्तार कर चुकी पुलिस ने सीएम के उस आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया, जिसमें ये कहा गया था कि पत्रकारों के किसी भी मामले को लेकर पुलिस का रवैया कठोर न हो। पत्रकारों का उत्पीडऩ नहीं होना चाहिए। उनके

कलम को कलम करने की साजिश

सर कलम होंगे कल यहां उनके, जिनके मुंह में ज़बान बाकी है। - बस्तर में आदिवासियों के दमन में लगी खा$की अब पत्रकारों को भी नहीं रखना चाहती बाकी। ऐसे में तीन पत्रकारों को एक-एक कर सला$खों के पीछे पहुंचाया जा चुका है। इसको लेकर बस्तर आईजी पुलिस की भूमिका पर भी संदेहों का दायरा गहरा गया है। सरेंडर के समीकरण के अहम सूत्रधार को लेकर पीछे पड़े पत्रकार अब उनके कोपभाजन का शिकार होने लगे हैं। वैसे भी खा$की का पत्रकारों के साथ बैर कोई नया नहीं है। जब -जब भी सरकारों की त्यौरियां किसी अखबार पर चढ़ी हैं,खा$की ही सामने आई है। देश का हर सफल पत्रकार पुलिस की लाठियों से पिट चुका होता है।  ऐसे में पत्रकारों के लिए पुलिस और उसकी गोलियों और लाठियों से बिल्कुल भी घबराना नहीं चाहिए। रही बात बस्तर की तो वहां तो नैतिकता और कानून दोनों का खून कब का हो चुका है। जिन शर्तों पर आदिवासियों को नक्सली बनाया और बताया जा रहा है, उसे भी पूरे देश के लोग अच्छी तरह जानते हैं। देर सबेर इसका भी खुलासा होना ही है। मुद्दे उठाने वाले पत्रकार ही पुलिस के मुद्दई बनते हैं। यह भी पत्रकारिता पेशे का एक आट्य सत्य है। खा$की को जब भी मौक

Front and Last page of Hamari Sarkar of 27th March 16

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निगम के ठेंगे पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

15 लाख की जनसंख्या पर महज 2060 सफाई कर्मचारी  नगर पालिक निगम के चेयर पर बैठे मेयर नहीं कर रहे हैं शहर की केयर। सफाई के मामले हो गए हैं रेयर। न सफाई, दवाई और न ही स्वच्छ पानी और न मलेरिया से निपटने वाली मेडिकेटेड मच्छरदानी, ह्वाइट हाउस की यही है कहानी। देश के 6वें सबसे गंदे शहर का गौरव प्राप्त पुरानी राजधानी के महापौर नहीं कर रहे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों पर भी गौर। ऐसे में सबसे अहम सवाल तो यही है, कि ये फिर आम जनता की भला क्या सुनेंगे? रायपुर। कचरे के ढेर पर बैठी पुरानी राजधानी की रामकहानी भी कुछ ऐसी है कि ऐसी कोई गली या मोहल्ला नहीं दिखाई देता जहां कूड़ा न बिखरा हो। टैक्स लेकर रिलेक्स करने वाले ह्वाइट हाउस के अधिकारियों ने पूरे शहर को कूड़ेदान बनाकर रख दिया है। लोगों से टैक्स तो पूरा वसूला जा रहा है मगर उनके मूल अधिकारों की जैसे ही बात आती है, निगम के अधिकारी कर्मचारी ही नहीं महापौर तक बगलें झांकने लग जाते हैं। देश का छठवां सबसे गंदा शहर- इन्हीं की कृपा है कि प्रदेश की पुरानी राजधानी को देश का 6वां सबसे गंदा शहर होने का कलंक झेल रहा है। इसका सबसे बड़ा करण है सफाई कर्मियों की कम

संवेदनहीन होता प्रशासन

यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी लेकर चराग जलता है। लोकतंत्र में लोक की सेवा के लिए एक तंत्र के गठन बात को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने जरूरी बताया था। उसी कानून के अनुसार तंत्र का गठन हुआ भी, मगर समय के साथ-साथ वह तंत्र इतना लचर होता गया कि अब वो अपाहिज़ सा हो चुका है। ऐसे में लोगों की उससे आपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं, और वो पुराना तंत्र अब इस हालत में भी नहीं बचा कि ढंग से सुन सके या फिर कुछ कर सके। ऐसी ही संवेदनहीनता प्रदेश के दो मामलों में एक साथ देखने को मिली जहां एक किसान ने अपने अपाहिज़ बेटे की दवाइयों के बिल से तंग आकर खुद$कुशी कर ली, तो वहीं दूसरी घटना में अचानकमार टाइगर रिजर्व और मुंगेली के जंगलों में लगी भीषण आग के बाद भी प्रशासन कुंभकर्णी निंद्रा में मस्त है। मजेदार बात तो ये कि कलेक्टर भी इस घटना से इंकार करते दिखाई दिए। किसान की खुद$कुशी मामले में तो ये बात भी सामने आई थी, कि कुछ समय पहले प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने उसको 20 लाख की आर्थिक मदद देने की घोषणा भी की थी। मगर इतने दिन बीत जाने के बाद भी उस परिवार को मदद के नाम पर 20 पैसे भी नहीं मिले।

अमित का बहाना बृजमोहन पर निशाना

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Front Page of Hamari Sarkar of 26th of March-16

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पायलीखंड में हीरों के लूट की सरकारी छूट

 अल सुबह हर कोई हाथ में सूती कपड़े का मैला सा टुकड़ा और दूसरे हाथ में खुरपी और कंधे पर गैंती लिए पायलीखंड की तरफ दौड़ते दिखाई देते हैं। हर किसी की कोशिश यही रहती है कि जिसने भी कल जहां गड्ढा खोदा था वहीं और गड्ढा खोदने में लग जाता है। क्यों चौंक गए न आप? जी हां चौंकिए मत यहां हीरों की अवैध खुदाई चल रही है। यहां महज 5 फुट की गहराई से हीरे निकाले जाते हैं। यहां के स्थानीय गरीब यहां से हीरे निकालते हैं और दलाल इनको सस्ती दरों पर खरीद कर मालामाल हो रहे हैं। सरकार ने यहां हीरों के लूट की खुली छूट दे रखी है। तभी तो लोगों का हुजूूम इस पर टूट पड़ा है? अलबत्ता गरियाबंद के पुलिस अधीक्षक अमित तुकाराम कांबले अपने थानेदार की पीठ थपथपाते नजर आ रहे हैं। तो वहीं सुरक्षा को लेकर वो भी नक्सली इलाका होने की दुहाई दे रहे हैं। पुलिस की मस्खरी के चलते ही यहां तस्करी बढ़ी है।  ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही कि आखिर कब होगी देश की पहली हीरों के खदान की नीलामी? आखिर कब होगी देश की सबसे बड़ी हीरों की खदान की नीलामी, रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में सोना खान की नीलामी की है, अब जल्द ही यहां माइनिंग शुरू हो

अंत की ओर अंतागढ़ कांड

पहले गलती और फिर पलटी मारने में लगे नेता अंतागढ़ सीडी कांड अब लगभग आखिरी सीढ़ी पर पहुंचता दिखाई दे रहा है। जो कभी कार्रवाई होने के नाम पर पलथी मारे बैठे थे, वही अब पलटी मारने पर तुले हैं। एक मेल ने सीडी कांड का सारा खेल बिगाड़ दिया।  मुख्य सचिव की जांच के दस्तावेजों से मामला नदारद, उधर भूपेश के इकरार पर फिरोज सिद्दकी का इनकार,अमित जोगी से सियासी तकरार। पीसीसी अध्यक्ष जप रहे आपसी एकता का मंत्र और अब होता दिखाई दे रहा है अंतागढ़ कांड का अंत। अजीत जोगी ने पहले ही कह दिया कि फिर तो मामला ही नहीं बनता। रायपुर। अपना जोर दिखाने अजीत जोगी अपने समर्थकों के साथ जा पहुंचे दिल्ली। तो वहीं सोमवार को दोपहर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बीके हरिप्रसाद संसद भवन में अपने काम में लगे बताए गए। मिलने की कवायद चल रही है। इधर राज्य की सियासत नेताओं के पलटी मारने से एक अजीब मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है। यहां अब अजीत जोगी का पलड़ा भारी होता दिखाई दे रहा है। उनके साथ प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान और निवर्तमान मिलाकर 22 शामिल बताए जाते हैं। कठघरे में भूपेश की एकता- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल राज्य की कांग्रेस कमेट

झीरम के झरोखे से झांकती सियासत

अजीत पर जीत की कवायद ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को राजनीतिक रूप से इतना विवश कर दिया कि वो अपनी सुरक्षा की गुहार उसी सरकार से लगा रहे हैं, जिसके ऊपर कई झीरम की घटना में गैरजिम्मेदार बताया था। कांग्रेस के दो ध्रुवों का टकराव अब वर्चस्व की लड़ाई से निकल कर प्रतिष्ठा का प्रश्र बन चुका है। ऐसे में दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त वाली कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। भूपेश का भय- अमित जोगी के निष्काषन की कार्रवाई की सिफारिश को लेकर दिल्ली दरबार से खाली हाथ लौटे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को अब अपनी हत्या का भय सताने लगा है। ऐसे में अब वे प्रदेश की उसी भाजपा सरकार से अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं, जिस पर वो कभी हमलावर हुआ करते थे। दिल्ली की लाचारी को छिपाने की कवायद- भूपेश बघेल और विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष का दिल्ली से खाली हाथ लौटना ही अपने आप में बहुत कुछ बयान कर रहा है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के सामने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ये नया दांव खेल रहे हैं, ताकि आम लोगों का ध्यान उनकी असफलता की ओर न जाए। कांग्रेस अध्यक्ष क्यों नहीं करवाते विश्वलेषण- जिस झीरम घाटी की

विधायकों का बढ़ता वेतन भत्ता

काजू भुनी प्लेट में व्हिस्की गिलास में,  उतरा है रामराज बिधायक निवास में । प्रकृति की दोहरी मार से बेहाल किसान, गरीबी का दंश झेल रहे आदिवासी,नक्सलवाद, बेरोजगारी और अशिक्षा जैसी समस्याओं से त्रस्त राज्य के विधायकों का वेतन बढ़ाने की तैयारी वास्तव में चौंकाने वाली है। यहां सिर्फ बड़े-बड़े नामों वाले विधायकों के कारनामों की असल सच्चाई ये है कि इनमें से अधिकांश अपनी विधायक निधि तक को पूरी तरह खर्च नहीं कर पाते हैं। विकास के नाम पर जो घटिया दर्जे का मजाक जनता के साथ किया जाता है। उसका खामियाजा किसी न किसी निर्दोष को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। इन सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात तो ये है कि यहां सभी को सिर्फ विधायकों के वेतन की पड़ी है। उस जनता की फिकर किसी को भी नहीं है जो उस आम आदमी को अपना कीमती वोट देकर खास बनाती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आम आदमी हाशिए पर जाता दिखाई दे रहा है। खुद खाया और जो बचा उसको अधिकारियों-कर्मचारियों को खिलाया। काम की बात करना इनसे सरासर बेमानी है। जनता की सेवा के नाम पर भरपेट मेवा खाने वाले नेताओं की नियत का पता इसी बात से चलता है कि जैसे ही अपनी तनख्वाह और भत्ते की

front and Last page of Hamari Sarkar of 23rd March 16

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ये मंत्री और विधायक आखिर कब बनेंगे लायक

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एमएलए का वेतन 75 हजार से बढकर होगा 1.25 लाख रुपए मासिक -पहले डॉटा इंट्री ऑपरेटर्स और फिर तृतीय वर्ग के कर्मचारी, उसके बाद रोजगार सहायक और शिक्षाकर्मियों तक के दल बूढा तालाब के धरना स्थल पर चिल्लाते रहे। अध्यापक अपने वेतन  और किसान मुआवजे के लिए रो रहा है।  उसी राज्य की कैबिनेट ने इन सारी समस्याओं को दरकिनार करते हुए अपने विधायकों और मंत्रियों का वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव पास करवा लिया। अब इसको विधान सभा में संशोधन के लिए पेश किया जाएगा। उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है कि वहां भी ये आसानी से पास हो जाएगा। ऐसे में सवाल तो ये उठता है कि आखिर राज्य में किसका वेतन बढाया जाना जरूरी है? उन गरीब रोजगार सहायकों, अध्यापकों, तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का या फिर इन मंत्रियों और विधायकों का? दूसरा अहम सवाल ये कि वेतन तो सरकार ने बढ़ा दिया पर इनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा? यानि ये बढ़ा वेतन लेने वाले मंत्री और विधायक आखिर कब बनेंगे लायक ? रायपुर। लोकतंत्र में लोक की सेवा के लिए एक तंत्र का गठन करने की बात बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने अनुवादित कानून में लिखा है। ये तंत्र लोक की सेवा करेगा उसके बद

Front Page of Hamari Sarkar of 22nd March 16

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रक्षा में फेल का खेल

तीर खाने की हवस है तो जि$गर पैदाकर, सर$फरोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर। पहले देश का अर्जुन टैंक और अब तेजस के फेल होने के पीछे का खेल एक जैसा लगता है। बस अंतर अगर कुछ है तो वो है तकनीकी। पहले उसी राजस्थान के जोधपुर रेंज में ग्रीष्मकालीन अभ्यास के दौरान भारत के इस नायाब टैक को एक नंबर गियर में डालकर  50 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में 150 किलोमीटर दौड़ाया जाता है। इसमें उसका इंजन सीज हो गया। इसी बात को दिखाकर विभाग के कुछ ईमानदार इंजीनियरों ने उसको फेल करने की कोशिश की थी। पड़ताल में पता चला के ये वही लोग थे जिनको रूस से बाकायदा उपकृत किया गया था, ताकि उसके टी-90 जैसे टैंकों को भारत खरीदता रहे। इस घटना को बीते एक दशक भी नहीं हुए कि दूसरा झटका फिर तेजस के माध्यम से दे दिया जाता है। ऐसे में सवाल तो ये भी उठना लाजिमी है कि क्या हमारे बेहद जरूरी परियोजनाओं के लिए काम कर रहे अधिकारी पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहे हैं? बात चाहे जो भी हो मगर लेज़र बम का निशाना चूक जाना कोई आम बात नहीं है। इसके पीछे भी हथियार लॉबी ही काम कर रही है। इसके पीछे भी किसका हाथ हो सकता है ये जांच का विषय तो है ही। वा

Front and Last page of Hamari Sarkar with my byline story on front page of 21st March 16 edition

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Front and Last page of Hamari Sarkar of 20th March 16

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-खरीदी दाल का कमाल

जिसके आंगन में अमीरी का शज़र लगता है, उसका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है। छत्तीसगढ़ को वर्ष 2015 में दलहन के अत्यधिक उत्पादन के लिए केंद्र सरकार ने चौथी बार कृषि कर्मण पुरस्कार से नवाजा है। राज्य की 2.55 करोड़ जनता की ओर से देश के विद्वान प्रधानमंत्री को आभार।  जिन्होंने उस राज्य को कृषि कर्मण सम्मान दे मारा, जिसके बाजारों में उसी वर्ष 2 सौ रुपए किलो में दाल बिकी। तमाम हो हल्ला मचने के बाद जब खाद्य विभाग की टीम ने जाकर जमाखोरों के गोदामों पर छापा मारा तो वहां का नजारा देखने लायक था। कई हजार क्विंटल दाल इन गोदामों में मिली। इसके बाद आक्रोशित जमाखोरों की महज एक घुड़की पर सरकार की घिग्घी बंध गई। इसको कहते हैं रसूख।  जैसे ही व्यापारियों की ओर से घुड़की आई तत्काल बंद हो गई छापामार कार्रवाई। इसके बाद इस मामले को दबा दिया गया। तो वहीं सरकार ने दावा किया था कि इस जब्त दाल को वो गरीब जनता को पीडीएस के माध्यम से बेचवाएगी। कई राशन दुकानों में दाल भी रखवाई गई थी। ये दीगर बात है कि उसकी गुणवत्ता क्या थी इसको देखने वाला शायद कोई नहीं था। उसी समय राज्य सरकार ने ये भी दावा किया था, कि अब राज्य सरकार दा

Front page of Hamari Sarkar of 19 th March 16

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भालू की लाश में जवाबों की तलाश-

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छछान पहाड़ी से छीजते सवाल जामवंत का दुखद अंत एंट्रो- गुरुवार को गुर्राती उस मादा भालू के रास्ते में जो भी आया उसने गुस्से में किसी को नहीं छोड़ा। डिप्टी रेंजर सहित तीन को मार गिराने के बाद भी नहीं भागी। आखिरकार महासमुंद की पुलिस ने उस पर अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोलियां दाग कर उसकी हत्या कर दी।  अब जांच के नाम पर राज्य सरकार का अमला लीपापोती में लगा है। कुछ लोग बाकायदा बहाने खोजने तो कुछ अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। उस मादा भालू की लाश से जवाबों की तलाश कर रही है हमारी सरकार की टीम। ऐसे ही तमाम सवालों पर के लिए पढि़ए ये पोस्टमार्टम..... रायपुर। महासमुंद के छछान पहाड़ी पर पुलिस एन्काउंटर में मारी गई मादा भालू की हत्या के पीछे  क्या कारण थे?  तीन दिनों से भूखी थी मादा भालू- पुलिस ने जिस मादा भालू को आदमखोर बताकर गोलियों से भूना, असल में वो एक मादा भालू थी, जो 3 दिनों से भूखी बताई जाती है। उसके 3 बच्चे भी बताए जाते हैं। आदमखोर नहीं थी वो- पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार अगर वो आदमखोर होती तो उसके पेट में मानव मांस का कुछ हिस्सा पाया जाता। जब कि उसके पेट में कुछ भी नहीं पाया गया,

-विस्फोट की चोट

अनीस  दम का भरोसा नहीं संभल जाओ, चरा$ग लेके कहां सामने हवा के चले। बस्तर की धरती पर पिछले 48 घंटों के दौरान लगातार 3 धमाके हुए दो में एक बच्ची और एक महिला की जान गई। इन्हीं धमाकों में दो महिलाएं घायल बताई जा रही हैं। वहीं तीसरा धमाका बीजापुर के पास एनएच पर उस वक्त हुआ, जब नक्सली सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने की नीयत से एक आईईडी लगा रहे थे। अचानक लापरवाही के चलते उसमें विस्फोट हो गया। इस धमाके में वहां मौजूद लोगों के चीथड़े हवा में उड़ गए।  पुलिस मरने वाले माओवादियों की तादाद 5 के आसपास बता रही है। हालांकि इतने बड़े धमाके के बाद भी वहां सिवाय खून के छींटों और लाशों के घसीटे जाने के निशानों के सिवा कुछ भी नहीं मिला । हालांकि नक्सलियों की ये पुरानी चाल है कि जब उनके लोग मारे जाते हैं तो ये लोग मौके से उनकी मृतदेह उठा ले जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि पुलिस को कोई सुराग न मिले। सड़कों के भीतर आईईडी लगाने की तकनीक नक्सलवादियों ने श्रीलंका में जाकर लिट्टेइयों से सीखी है। ये वही तकनीक है जिसने श्रीलंका को आजाद करवाने में वहां की फौजों को भारी नुकसान पहुंचाया था। बाद में लिट्टे से ये तक

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60 किसानों ने दी जान, सरकार ने खरीदा 59 लाख टन धान

अब धान पर सियासी घमासान  प्रदेश की 802 पंचायतों के सूखाग्रस्त होने और 2 लाख किसानों के धान नहीं बेचा। तीन महीने में 60 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इतने के बावजूद भी सरकारी आंकड़े 84 फीसदी धान खरीदी  का दावा करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 59 लाख मीट्रिक टन धान इन 11 ाख किसानों ने बेचा है। ऐसे में सीधा सा सवाल उठता है कि आखिर इन परिस्थितियों में रिकार्ड खरीदारी कैसे हुई? इस मामले को लेकर विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि आखिर सूखाग्रस्त राज्य में इतनी धान खरीदी कैसे हुई? उन्होंने इसको राज्य सरकार के प्रबंधन की कमी माना है। सरकार खरीद रही माफियाओं का धान, खरीदी केंद्रों पर सताए जा रहे छोटे किसान : अमित दो लाख से ज्यादा किसानों ने नहीं बेचा धान रायपुर। माना जा रहा है कि इन किसानों ने उत्पादन की कमी के कारण धान नहीं बेचने का फैसला किया होगा। राज्य सरकार ने समर्थन मूल्य पर इस साल 70 लाख टन धान खरीद का लक्ष्य तय किया था। अपना धान बेचने के लिए 13 लाख से अधिक किसानों ने सहकारी समितियों में अपना पंजीयन कराया था। इनमें से 11 लाख से अधिक किस

सवालों के घेरे में शिक्षा और शिक्षक

जो हो वो सबके लिए हो ये जिद हमारी है, बस इसी बात पे दुनियां से जंग जारी है। पूरे देश में परीक्षाओं का माहौल चल रहा है। ऐसे में पर्चे के चर्चे होने तो स्वभाविक हैं ही। आलम ये है कि जिसने जैसे पढ़ा है वो वैसा ही गढऩे में लगा है। छत्तीसगढ़ में एक पर एक पर्चे लीक हो रहे हैं। इसको लेकर भी खासी चर्चा है। इससे पहले भी राज्य के एक तकनीकी महाविद्यालय के विद्वान छात्र ने अपनी उत्तर पुस्तिका में जमकर गालियां लिख मारी थीं। ये दीगर बात है कि बाद में उसने क्षमा याचना कर ली । अक्सर बोर्ड की परीक्षाओं में भावनात्मक बातें लिखकर नंबर लेने की नाकामयाब कोशिशें की जाती हैं। ऐसा वे ही बच्चे करते हैं जो साल भर पढ़ाई से ज्यादा ध्यान दीगर कार्यों में लगाते हैं। इसके लिए जितने जिम्मेदार वे लापरवाह छात्र-छात्राएं हैं उससे कहीं कम जिम्मेदार उनके विद्वान शिक्षक नहीं लगते। इन्हीं अध्यापकों की वजह से हमारे बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह चौपट होती जा रही है। आलम ये है कि हाईस्कूल के बच्चे को अगर कायदे से बोल दिया जाए तो वो 20 तक का पहाड़ा भी नहीं पढ़ सकता। बीए के छात्र कायदे से एक पन्ना हिंदी नहीं लिख सकते। उस पर भी तुर्र

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नान के घमासान में फंसी बाबुओं की जान

 नान के घमासान में प्रबंधक और बाबुओं की जान पर बनती नज़र आ रही है। आईएएस ने जहां खुद को बताया पाकसाफ तो वहीं सीएम ऑफिस से जुड़े लोगों को खुद ईओडब्ल्यू ने कर दिया माफ। तो वहीं इसकी गाज़ विभाग के प्रबंधक शिवशंकर भट्ट सहित 16 कर्मचारियों पर गिरी। इनके खिलाफ कोर्ट में पेश की गई चार्जशाीट।  अब अनिल टुटेजा की मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी ने मामले को गरमाया। ऐसे में सीधा सा सवाल उठता है कि जब तमाम रसूखदार लोग निर्दोष तो फिर क्या ये सिर्फ मैनेजर और बाबुओं की साजिश है?  रसूखदारों को ईओडब्ल्यू ने ही थमाई थी क्लिनचिट आईएएस भी खुद को पाकसाफ बता रहे रायपुर। बहुचर्चित नान घोटाला क्या काल्पनिक है? नान के तत्कालीन डॉयरेक्टर अनिल टुटेजा के बयान के बाद तो ये सवाल और भी मुखरता के साथ उठने लगा है। विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला खुद को पहले ही पाकसाफ घोषित कर चुके हैं। छापे में मिली कथित डायरी में जिन मंत्रियों और सीएम हाउस तक का जिक्र था, जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू ने खुद ही इन्हें क्लीनचिट दे दी थी। बचे दोनों आईएएस, इन्होंने भी खुद को निर्दोष करार दे दिया है। एक ने तो इस पूरे घोटाले को ईओडब्

आदिवासियों को हाथियों के हमले से बचाएंगी मधुमक्खियां

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आर. पी. सिंह-    जंगली हाथियों के हमले से आदिवासियों को मधुमक्खियां बचा सकती हैं। कृषि विभाग अगर उत्पाती हाथियों के हमले वाले इलाकों के किसानों और दूसरे लोगों को हनीबी के बॉक्स दे दे, तो इससे वहां के लोगों को न सिर्फ रोजगार मिलेगा बल्कि हाथियों का दल भी यहां आने से बचता नजर आएगा। रायपुर। उत्पाती जंगली हाथियों से राज्य के आदिवासियों को बचाने की कोशिश में लगी सरकार के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती हैं सारंग की मधुमक्खियां। ऐसा माना जाता है कि जहां इन मधुमक्खियों के छत्ते होते हैं वहां हाथियों का दल नहीं आता। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कीट-पतंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. वीके कोस्टा ने इस संदर्भ में बताया कि सारंग जिसका वैज्ञानिक नाम एपिस डोरसेटा है। ये इतनी खतरनाक होती है कि अगर एक बार गलती से भी अगर हाथी ने उसके छत्ते को छू लिया तो फिर उसे भागने का मौका नहीं मिलेगा।  हाथियों के हमले से बचाव और रोजगार भी छत्तीसगढ़ सरकार का कृषि विभाग अगर रायगढ़, घरघोड़ा, रबा के कटघोरा और सरगुजा और कोरबा के  वनांचलोंं के आदिवासियों को अगर मधुमक्खियों के बॉक्स वितरित कर दें। तो