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Showing posts from May, 2016

पुलगांव के धमाकों का आतंकी कनेक् शन

शहीदों की ज़मीं है इसको हिन्दुस्तान कहते हैं , ये बन्जर होके भी बुज़दिल कभी पैदा नहीं करती । महाराष्ट्र के वर्धा स्थित पुलगांव के आयुध डिपो में भयावह आग लगने से 20 जवानों की शहादत और 19 से ज्यादा घायल होने के मामले में अभी तमाम चौंकाने वाले खुलासे होने की संभावना है। वैसे भी गर्मियों में आयुध डिपो में आग लगना कोई नई बात तो नहीं है, मगर सेना के विशेषज्ञों के सामने एक चुनौती ये भी होगी, कि कहीं इसमें किसी आतंकी संगठन का हाथ तो नहीं? अपराध शास्त्र में कहा गया है कि अपराध वहीं होता है जहां हिफाजत से ज्यादा विश्वास होता है। ऐसे में जिस आयुध डिपो को सबसे सुरक्षित माना जा रहा था। उसी में आग लगना कोई साधारण बात नहीं हो सकती है। इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि पाकिस्तान के तमाम आतंकवादी संगठनों की निगाह ही नहीं पैठ भी हमारे ऐसे सुरक्षित ठिकानों में होती रही है। इसके तमाम सुबूत समय-समय पर  आते रहे हैं। जब गृहमंत्रालय के अति सुरक्षित माने जाने वाले दफ्तर से अति गोपनीय मानी जाने वाली वायुसेना के विमान खरीदी वाली फाइल सड़क पर आ सकती है। तो इस देश में ऐसी संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किय

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ऑनलाइन का दंश

निखट्टू  संतो... पहले गांवों में होती थीं बस्तियां और बाजार हुआ करते थे कोसों दूर, और अब बाजार सजे हैं आंगन में और लोग खोज रहे हैं घर। ऐसे में कबीर का बाजार में खड़ा होना भी कम आश्चर्य की बात नहीं है। सब अपने-अपने में मगन हैं, किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं है। बस हर जगह एक ही चीज पता चलती है कि प_ा ऑनलाइन है। अस्पताल में देखिए तो ऑनलाइन, दवाई की दुकान पर भी ऑनलाइन, मकान में भी ऑनलाइन, कार में बस में डॉकघर में, कचहरी में, मोहल्ले में पानी की लाइन, राशन से लेकर केरोसीन की लाइनों में लोगों को ऑनलाइन देखकर मैं झल्लाया। दौड़ता-भागता हांफता हुआ नगर निगम के गार्डेन में आया तो देखा यहां भी लोग मोबाइल लिए पिले पड़े हैं। एक परिचित से मैंने यूं ही पूछ लिया कि ये लोग लाइन में बैठकर क्या कर रहे हैं? वो ठहाका मार कर हंसा और बोला अरे भाई ये सब ऑनलाइन हैं। गुस्से से मेरा दिमाग खराब होने को आया तो मैंने श्मशान की ओर दौड़ लगाया। वहां एक नौजवान की लाश जल रही थी। उसका बाप रो रहा था तो दोस्तों में उसकी चिता के साथ सेल्फी लेने की होड़ चल रही थी। इसके बाद बगल ही पत्थर की बेंचों पर जमे कुछ लोग भी अपने-अप

बदहाल अस्पताल और दलाल

लोग हाथों में लिए बैठे है अपने पिंजरे , आज सय्याद को महफि़ल में बुला लो यारों । प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में जो भी मुसीबत का मारा पहुंचता है। उसको अधिकारी से लेकर वार्ड ब्वाय तक की सुनना पड़ता है। डॉक्टर्स तो खुद को भगवान से भी ज्यादा ऊपर समझने लगे हैं। प्रोफेसर्स का आलम ये है कि सर चैम्बर से बाहर बस आते और जाते समय ही निकलते हैं। आखिर प्रोफेसर हैं कोई मजाक थोड़े। अस्पताल आज भी एमआर के कब्जे से उबर नहीं पाया है। कहने को तो कई बार मुख्यमंत्री तक ने कह दिया है कि डॉक्टर्स जेनेरिक दवाएं लिखें, मगर सुनता कौन है? चैम्बर का चक्कर काटते एमआर कब किसके चैम्बर में घुस जाते हैं किसी को पता तक नहीं चलता। यही नहीं बड़े ही रहस्यमय तरीके से मरीजों को नर्सिंग होम्स में पहुंचाने वाला रैकेट भी यहां काम कर रहा है। अधिकांश डॉक्टर्स की सेटिंग है जिसके कारण मरीजों को यहां से भगाया जाता है। अब मजबूरी में जिंदगी बचाने के लिए उनको बाहर दलालों की सहानुभूति मिल जाती है । ऐसे में वे अपनी जान-पहचान वाले नर्सिंग होम्स में ले जाते हैं। इसके बाद कटनी शुरू हो जाती है उस गरीब की जेब। पैसे की चाह में मानवीय

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मेरे आलेख को डॉ. लीना जी ने मीडिया मोर्चा में स्थान दिया। जो आप लोगों के लिए सादर प्रस्तुत कर रहा हूं-

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सियासत की चौसर के चक्कर में सर

कटाक्ष- निखट्टू संतो... सियासत की सांसत भी अजब चीज है, कम्बख़्त किसी को भी चैन से नहीं रहने देती। ये न तो चैन से सोती है और न औरों को सोने देती है। कहते हैं कि सियासत के गर्भ में संभावनाएं पलती हैं। राज्य की सियासत की चौसर पर एक बार फिर से पांसे बिछे हैं। राज्य सभा के लिए प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी अपने-अपने पांसों को सच्ची-झूठी, पूर्ण-अपूर्ण, अटकी -भटकी योजनाओं की घोषणाओं का तेल पिला रही हैं।  तो वहीं प्रमुख विपक्षी दल के नेता दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं। चौसर की बिसात पर दोनों ही पक्ष के दिग्गज अपनी-अपनी जगह पर जमे हैं। ऐसे में हर किसी की कोशिश यही है कि सामने वाले के पांसे को कैसे चारों खाने चित्त कर दें। लगातार घोषणाओं पर घोषणाएं हो रही हैं। तमाम चालें चली जानी शुरू हुई हैं। दांव पर दांव लगाए जा रहे हैं। जनता भी तमाशबीन बनी सारा तमाशा देख रही है। ऐसे में हर गली चौराहों पर कयास लगाने वालों की भीड़ जमी है। लोग अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। हालांकि उनके तर्क से इस चुनाव पर कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। फिर भी हिंदुस्तान में तर्क देने वालों की एक पूरी जमात है। ये कहीं भी कभी भी तर्क ठेलने स

सुरक्षा का इम्तहान और देसी श्वान

 जऱा सा तौर -तरीकों में हेर -फेर करो , तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं । देसी श्वानों के अत्याचार से नगर निगम वाले परेशान हैं। हर साल सैकड़ों लोगों को ऐसे ही श्वान काट लेते हैं। जिनको रैबीज का इंजेक् शन लगवाने के लिए अस्पतालों का चक्कर लगाना पड़ता है। तो वहीं निगम ने तो बाकायदा डॉग कैचर दस्ता भी बना दिया है। तो ऐसे चिकित्सकों की भी नियुक्ति की गई है जो श्वानों का स्टेरलाइज भी कर रहे हैं। सारे श्वान खराब हैं ऐसा नहीं है, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के आवास के सुरक्षा दस्ते में तैनात देसी नस्ल की श्वान जिमी को देखकर ऐसा कौन सा आदमी होगा जिसका सीना गर्व से चौड़ा नहीं हो जाएगा। देसी नस्ल की इस मादा श्वान को विस्फोटकों को तलाशने में महारत हासिल है।  एक ओर जहां जगदलपुर जैसी जगहों पर सुरक्षा बलों के पास मेलानोइस नस्ल के महंगे श्वानों का दस्ता है, जिनकी देखरेख और दवाओं पर लाखों रुपए का खर्च आता है तो वहीं जिमी जैसे श्वानों पर इतना खर्च नहीं करना पड़ता है। ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिन मेलानोइस श्वानों की बस्तर में ड्यूटी लगाई गई है, जितना उनके सिर्फ खाने पर खर्च होता है, उतने में तो

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तिजोरी के झरोखे से झांकती पत्रकारिता

कटाक्ष- निखट्टू भारतीय जनता पार्टी की  नरेंद्र मोदी सरकार के दो साल का कार्यकाल क्या पूरा हुआ, तमाम अखबारों के तेवर-कलेवर तो बदले ही पत्रकारिता के जेवर को भी उतारने में कोई कोर-कसर नहीं बाकी रखी। कल तक जो पत्रकारिता को लेकर बड़े-बड़े दावे करते थे। अपनी निष्पक्ष और काबिल पत्रकारिता का ढिंढोरा पीटा करते थे। सरकार के आगे अंग्रेजी के सी की मुद्रा में झुके नज़र आए। अब ये दीगर बात है कि उनके यहां जमे चाटुकार इसको उनके स्पाइनल कॉड की समस्या बता दें, मगर असल सच्चाई यही है कि आज मीडिया हाउसेज को सिर्फ और सिर्फ अपनी तिजोरियों की चिंता है। वो इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। देश के तमाम बड़े मीडिया हाउसेज के गुरुवार के अंक जिसने भी देखे होंगे वो कम से कम इस बात से इत्तेफाक जरूर रखते होंगे, कि ये बड़े मीडिया हाउसेज ने पत्रकारिता को मंडिय़ा बना दिया है। इससे इसकी सूरत इतनी बिगड़ी है कि अब असली चेहरा पहचानना तक मुश्किल दिखाई देता है। पत्रकारिता अब मजदूरी से भी गया बीता पेशा हो गया है। अब तो लोग ये कहते सुने जाते हैं कि समय पर वेतन मिल जाता है? तो चलो अच्छी बात है। आलम ये है कि सरकारी विज्ञा

बाड़ी के तेल का तिलिस्म

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जि़ंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं। खाड़ी का तेल बाड़ी से देने की योजना अब सरकारी खजाने का तेल निकालने लगी है। आलम ये है कि राज्य के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह की सरकारी गाड़ी को भी ये विभाग तेल मुहैय्या नहीं करा पाया। इसके कारण उनको अपने काफिले की सारी गाडिय़ों को बदलना पड़ा। इसके अलावा कई साल पहले छत्तीसगढ़ के बॉयोडीजल से झारखंड में दौडऩे वाला रेलवे लोकोमोटिव इंजन कब का बंद पड़ा है। योजना का के्रडिट लेने वाला विभाग के्रडा भी आड़ा -टेढ़ा नजर आ रहा है। रतनजोत के फल खाकर तमाम बच्चे हर साल अस्पताल पहुंचते हंै। कइयों की तो जान तक जा चुकी है। इस वृक्ष के पत्ते और फल इतने विषैले हैं कि जिस किसी भी खेत में गिर जाते हैं उसमें अरहर और तिल की फसलें नहीं ली जा सकतीं। लोगों को उनके जैट्रोफा का दाम भी ठीक से नहीं मिल रहा है। तो वहीं दलाल कमाकर लाल हो रहे हैं। अधिकारियों ने बड़ी सफाई से इसका भी रास्ता निकाला और दावा कर दिया गया कि राज्य के पड़ोसी राज्यों को जैट्रोफा के बीज बेंचकर कमाई की जा रही है। अभी तक क्रेडा ने कितने रुपए कमाए ये बात अभी तक सामन

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सुराज का सिफर

राज्य के सुखिया मुखिया की सरकार पिछले एक माह से सुराज का साज बजा रही है। इस दौरान सरकार का उडऩखटोला कई गांवों में उतरा। अधिकारियों ने गांव वालों को पहले ही पहुंच कर सारा सवाल रटाया। कैसे मुखिया से क्या सवाल पूछना हे, नइं त तोला सुराज के समाज में बइठन नइं देंव। तो वहीं लोगों ने मुखिया से मिलने और अखबार में फोटो छपने की ललक में रट लिया। गांव के भोले -भाले छत्तीसगढिय़ा को भला उस सवाल का असल मायने तक नहीं पता। अब साहब ने रटाया है तो रटना ही पड़ेगा। सीएम की चौपाल का हाल तो ये रहा कि कई जगहों पर ये सेटिंग टूट गई। बीच में कुछ ऐसे लोग भी जा घुसे जिनको कि घुसने नहीं दिया जाना चाहिए था। अब मुखिया के पास अगर दुखिया जाएगा तो वो पुराण थोड़े ही बांचेगा? वो तो अपनी समस्याएं ही सुनाएगा न? इधर राज्य में चल रही नौकरशाही और मंत्रियों और विधायकों तथा सांसदों की आपसी खींचतान भी पुरानी है। कइयों ने इनकी शिकायत की है और तो और मौके पर मुख्यमंत्री को भी इनकी अव्यवस्था का शिकार होना पड़ा। ऐसे में सीएम की कार्रवाई का शिकार तो बनना ही था। सुराज की समाप्ति पर सीएम ने कर दी कार्रवाई। थोक में अधिकारियों के तबादले कि

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झीरम के छालों पर वादों का नमक

झीरम के घाव पर अधिकारियों के ताव और कोरे दावों का नमक मला गया। जो भी यहां आया सिर्फ दावे करके चला गया। ऐसे में यहां का रहने वाला आदिवासी इन लोगों द्वारा छला गया। गनतंत्र के बीच जीने को मजबूर आदिवासी भी इसी देश के नागरिक हैं। उनको भी खुली हवा में सांस लेने का  अधिकार है। सियासी दावों की जमीनी ह$कीकत तो ये है कि यहां के पीडि़त लोगों का दर्द तक बांटने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता। आज फिर वही तारीख है 25 मई, जिस दिन नक्सलियों के हमले में यहां कांग्रेस के कद्दावर नेताओं सहित 29 लोगों की जान गई थी। इस घटना में दिग्गज कांग्रेसी विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल समेत 29 लोगों की मौत हुई थी। घटना में दरभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ता भागीरथी कश्यप, सदा नाग, राजकुमार उर्फ राजू व मनोज जोशी की मौत हो गई थी। आज भी यहां तमाम लोग आए हैं। इस बार कोई दूसरा मुखौटा लगाए हैं। तीन साल में इनको याद आ रहा है इनका संकल्प। सवाल तो ये है कि क्या इससे हो सकेगा आदिवासियों का काया कल्प? गनतंत्र बीच सहमें आदिवासी, तीन साल में भी नहीं बदली बस्तर की तस्वीर रायपुर। झीरम हमले के बाद वहां जो भी गया

कांग्रेस की नाव और झीरम का घाव

किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है। झीरम घाटी कांड की आज तीसरी बरसी है। आज के तीन साल पहले इसी दिन को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने कायराना हमला किया था। इसमें 29 लोगों की मौत हुई थी। इस हमले में एक तरह से कांग्रेस के कद्दावर नेताओं का सारा कुनबा ही समाप्त हो गया। बचे नेताओं में अब अजीत जोगी, मोतीलाल वोरा, मोहसिना किदवई शामिल हैं। इतने बड़े हमले के बाद भी आज तक मामले की जांच चल रही है। तो वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने भूपेश बघेल यही से संकल्प यात्रा शुरू करने जा रहे हैं। सवाल तो ये उठता है कि क्या तीन सालों से सो रहे थे? झीरम घाटी के हमले के बाद भी वहां की तस्वीर नहीं बदली। हमले के बाद जो भी झीरम पहुंचा थोक में घोषणाएं की और चंपत हो लिया। सुविधाओं के नाम पर यहां के लोगों को बेबसी, लाचारी, और गनतंत्र के अलावा कुछ नहीं मिला। जानकारों का मानना है कि यहां का आदिवासी आज भी गनतंत्र में जी रहा है। उसके दोनों ओर बंदूकें हैं। ऐसे में वो जाए तो किधर जाए? नक्सलियों की सुने तो पुलिस मार दे, और पुलिस की सुने तो नक्सली। जानकार तो ये भी बताते हैं कि पुलिस क

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Front Page of hamari Sarkar of 24th of May-16

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भारी पड़ते कुछ अधिकारी

कटाक्ष- निखट्टू किसी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ को प्रशासनिक अधिकारी चला रहे हैं। उस वक्त तो बात मजाक में कही गई थी। अब ये बात बिल्कुल समझ में आने लगी। आईएएस अफसरों की अफसरशाही आए दिन चर्चा में रहती है। जब कि असलियत तो ये भी है कि काम के नाम पर धड़ाम होने वाले ये अधिकारी छोटे अधिकारियों पर तो गरजते हैं, और मंत्रियों की बिल्कुल भी नहीं सुनते। इसी का नतीजा है कि राज्य के एक कद्दावर मंत्री पिछले कई महीनों से राज्य के कुछ प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत करना तक बंद कर चुके हैं। इसके अलावा कुछ सांसदों की भी यही शिकायत है। पत्रकारों पर बरसने वाले तो तमाम आईएएस अफसर राज्य में जमे पड़े हैं। जब कि प्रदेश के मुखिया का कहना है कि हम निष्पक्ष पत्रकारिता की हिमायत करते हैं। प्रमुख विपक्षी दल और राज्य के तमाम तबके के लोग भी पत्रकारिता का सम्मान करते हैं। तो ऐसे में ये सवाल भी जायज है कि क्या कानून किसी प्रशासनिक अधिकारी को ये अधिकार देता है कि वो किसी पत्रकार को धमकाए अथवा उसके साथ बदसलूकी करे? हमारे यहां दर्शन शास्त्र में कहा गया है कि अति सर्वत्र वर्जयेत, अर्थात किसी भी चीज की अति भली नहीं होती। राज्य

झीरम के बहाने चले एकता दिखाने

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,  मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा  हुआ होगा । झीरम घाटी में 25 मई को हुए नृशंस हत्याकांड की तीसरी वर्षी पर कांग्रेस एक बार फिर से एकजुटता का प्रदर्शन करने जा रही है। दिल्ली से प्रदेश प्रभारी वीके हरिप्रसाद को भी बुलाने की तैयारी है। लगातार जनाधार खोती और आपसी लड़ाई में पूरी तरह उलझी कांग्रेस एक बार फिर से आपसी एका का दिखावा करने जा रही है। अपनी इसी भीतरी लड़ाई के कारण कांग्रस की रही -सही साख भी लगभग समाप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। सियासी गलियारों के जानकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मायने भी अब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव हो गए हैं। नकल तो अच्छी है मगर अकल लगाकर नहीं की गई। इनकी कोशिश ठीक उसी तरह की है जैसे केंद्र में भाजपा माने अमित शाह और नरेंद्र मोदी। ऐसे में नकल तो कर लिया मगर अकल कहां से लाएंगे?  भाजपा में भी भीतरी तौर पर सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। पिछले दिनों पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने जिस तरह का जनादेश दिया उससे दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को अपने कार्यों और उसकी शैली पर गहन -मंथन करने की जरूरत है। भाजपा का जना

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गणित और इतिहास के अध्यापक का झगड़ा

कटाक्ष- निखट्टू एक शाला में गणित और इतिहास के अध्यापकों में हो गया झगड़ा, वो भी हल्का नहीं तगड़ा। इतिहास के गुरूजी जोर से फुफकारे ज्यादा तीन-पांच मत करो नहीं तो इतिहास को तुम नहीं जानते। हम महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, वीर शिवाजी, अकबर बादशाह और शेरशाह सूरी की सेनाएं निकाल कर तुम्हारे खिलाफ खड़ी कर दूंगा। इसके बाद देखता हूं कि तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे? गणित के अध्यापक ने मुस्कराते हुए कहा गुरुजी आप अपना रक्तचाप नाहक बढ़ा रहे हो। ये हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे। सुनते ही इतिहास के गुरुजी का पारा सातवें आसमान पर चला गया बिगड़ कर बोले आप इतनी बड़ी सेनाओं का क्या बिगाड़ लोगे? गणित के गुरूजी ने कहा कुछ नहीं बस मंझले कोष्टक में रखकर शून्य से गुणा कर दूंगा। सुनते ही इतिहास के गुरुजी वहां से सरक लिए। ऐसे ही सियासत के ढेरों गुरूजी आजकल पत्रकारिता के गुरुओं के पीछे पड़े हैं। उनको पत्रकारिता का गणित नहीं पता कि कब मंझले कोष्टक में रखकर शून्य से गुणा कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। चलिए आपको अब इस झगड़े का राज तो बता दिया अब मैं भी सरक लेता हूं... तो कल तक के लिए जय...जय।

गरीबों की प्यास पर प्रशासनिक पाखंड

मुझको नज्मों जब्त की तालीम देना बाद में,  पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो।  भीषण गर्मी में प्यास लगने पर अगर पानी न मिले तो कैसा लगता है? पानी का मूल्य तो वही समझ सकता है जिसको सिर पर घड़ा लेकर मीलों पैदल चलने पर एक गुंडी पानी नसीब होता है। राज्य में जनता को पानी देने के  दावे जल संसाधन विभाग द्वारा जोरशोर से किया जा रहा है। सरकारी फाइलों में जमकर पानी बहाया जा रहा है। आलम ये है कि जल संसाधन विभाग के जानकार अधिकारियों ने ढाई हजार से ज्यादा गांवों के साढ़े चार हजार से अधिक तालाबों को लबालब भरने का दावा कर दिया। पड़ताल में पता चला कि वहां तो पानी ही नहीं आया। सीएम अपने सुराज का साज बजाने में मस्त हैं। राज्य के तमाम इलाकों में जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। लोग झेरिया का पानी निकाल कर पीने पर मजबूर हैं। तो कुछ जगहों पर तो तालाबों का कीचडय़ुक्त पानी भी उबाल कर पीने की खबरें आती रही हैं। ऐसे में सुराज के स्वांग का मतलब समझ से परे है। ठीक उसी तरह जिस तरह इस देश में लोकतंत्र की बात की जाती है। आलम ये है कि लोक ने अपनी सेवा के तंत्र का गठन तो किया, मगर अब वही तंत्र तमाम ताकतों को

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गणित और इतिहास के अध्यापक का झगड़ा

कटाक्ष- निखट्टू एक शाला में गणित और इतिहास के अध्यापकों में हो गया झगड़ा, वो भी हल्का नहीं तगड़ा। इतिहास के गुरूजी जोर से फुफकारे ज्यादा तीन-पांच मत करो नहीं तो इतिहास को तुम नहीं जानते। हम महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, वीर शिवाजी, अकबर बादशाह और शेरशाह सूरी की सेनाएं निकाल कर तुम्हारे खिलाफ खड़ी कर दूंगा। इसके बाद देखता हूं कि तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे? गणित के अध्यापक ने मुस्कराते हुए कहा गुरुजी आप अपना रक्तचाप नाहक बढ़ा रहे हो। ये हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे। सुनते ही इतिहास के गुरुजी का पारा सातवें आसमान पर चला गया बिगड़ कर बोले आप इतनी बड़ी सेनाओं का क्या बिगाड़ लोगे? गणित के गुरूजी ने कहा कुछ नहीं बस मंझले कोष्टक में रखकर शून्य से गुणा कर दूंगा। सुनते ही इतिहास के गुरुजी वहां से सरक लिए। ऐसे ही सियासत के ढेरों गुरूजी आजकल पत्रकारिता के गुरुओं के पीछे पड़े हैं। उनको पत्रकारिता का गणित नहीं पता कि कब मंझले कोष्टक में रखकर शून्य से गुणा कर देंगे पता भी नहीं चलेगा। चलिए आपको अब इस झगड़े का राज तो बता दिया अब मैं भी सरक लेता हूं... तो कल तक के लिए जय...जय।

Few good moments of my life ...

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खेल का जोश

वेद में जिनका हवाला हाशिए पर भी नहीं,वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें। आज की शाम आईपीएल के नाम होने जा रही है। नई राजधानी के शहीद वीरनारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में सनराइजर्स और डेयरडेविल्स के बीच कड़ा मुकाबला होने जा रहा है। भीषण गर्मी में कई खिलाडि़कों को तो डीहाइड्रेशन भी हो गया। आए थे ताल ठोकते और अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। राजधानी के तमाम होटल्स में नो रूम है। सरकारी दफ्तारों में अघोषित अवकाश जैसे हालात हैं। वहीं भारी तादाद में पुलिस बल तैनात किया गया है। सुरक्षा भी ऐसी की परिंदा भी पर न मार सके। राज्य के तमाम आला अधिकारी से लेकर वीवीआईपी तक का मूवमेंट आज उसी ओर रहेगा। इसको देखकर पुलिस को खास चौकसी के निर्देश जारी किए गए हैं। इस भीषण गर्मी में आज पुलिस को इस अग्रि परीक्षा से होकर गुजरना होगा। पानी की कमीं को देखते हुए महाराष्ट्र जैसे राज्य  ने अपने राज्य में आईपीएल के आयोजन को करवाने से मना करवा दिया था। ऐसे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तमाम जनविरोध को दर किनार करते हुए इस आयोजन के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की। तो वहीं राज्य के उच्च न्यायालय ने भी ये निर्दे

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सुराज का बेसुरा साज

तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें य$कीन नहीं। सुराज का साज बजा रहे प्रदेश के सुखिया मुखिया के इस महायज्ञ में कुछ लोगों ने विघ्र डालना शुरू कर दिया है। तो वहीं भाजपा नेताओं के कारनामों के चलते लोगों का मन अब सत्ता पक्ष से खट्टा होने लगा है। पिछले दिनों गीदम में नगर पंचायत अध्यक्ष ने जिस तरह से गरीब महिला की दुकान को पैर की ठोकरों से मार-मार कर फेंका। उस वीडियो को जिसने भी देखा, उसका मन तो भाजपा से भर गया। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी में भीतर से सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। लगातार आपसी खींचतान की खबरें भी आती रही हैं। एक ओर पूरा राज्य प्यास से हाहाकार मचा रहा है। तो प्रदेश के मुखिया पेड़ के नीचे चौपाल लगा रहे हैं। भगवान जाने इससे बेसुरा और बेताला राग मैंने अपनी जिंदगी में नहीं सुना था। प्रदेश में काम कम ड्रामा ज्यादा हो रहा है। सिर्फ प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों की कॉपी पेस्टिंग करने से शासन नहीं चलने वाला। आंकड़ों के घोड़ दौड़ाने वाली सरकार और उसके निरंकुश अहलकारों की पूरी टोली, मजे से रुपए की होली खेल रही है। ऐसे में अगर कोई मर रहा है तो वो है राज्य का कि

श्रीमान की खींचतान

कटाक्ष- निखट्टू प्रदेश आजकल एक अजीब संकट से गुजर रहा है, वो है श्रीमान की खींचतान। मामला बड़ा है दोनों दलों के पीछे उनका पूरा कुनबा खड़ा है। और आप तो जानते ही हैं कि दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय, वाली तर्ज पर जनता पिस रही है। दोनों ही ओर से एक दूसरे को गलत ठहराने और अपनी हनक दिखाने की कोशिशें जारी हैं। एक को जनता ने चुनकर भेजा है तो दूसरे को सरकार ने नियुक्त किया है। दोनों ही ताकतवर हैं। कुछ जानकारों का तो ये भी मानना है कि प्रदेश का सारा कामकाज चलाने वाली प्रशासनिक मशीनरी भीतरी तौर पर कमर कस चुकी है। उनका एक सूत्रीय अभियान है कि पहले छेड़ेंगे नहीं, और जो छेड़ेगा उसे छोड़ेंगे नहीं। इसका असर भी साफ-साफ दिखाई देने लगा है। इससे दु:खी होकर कुछ लोग कुनमुना तो कुछ भुनभुना रहे हैं। कुछ और भी हैं जो मीडिया के माइक के सामने बांग देते नजर आ रहे हैं। अब श्रीमानों की इस हाथापाई में  बेचारे गरीब कुचले जा रहे  हैं। ऐसे में प्रदेश का तो कल्याण होने से रहा। दुखिया को दुलारने भीषण गर्मी पेड़ के नीचे चौपाल लगाए मुखिया भी इन्हीं की सुनते हैं। कोई भी समस्या होने पर इन्हीं से सलाह-मश्वरा लेते हैं। ऐ

Front and Last page of Hamari Sarkar of 19th May 16 in New style.

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परिवर्तन की शर्त ईमानदारी

रख दी है किसी शख़्स ने दहलीज़ पे आंखें, रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता। भीषण गर्मीं में एक ओर राजधानी का पारा ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है और पानी पाताल में नीचे उतरता जा रहा है। ऐसे में लोगों के सामने पेयजल की किल्लत होती जा रही है। गरीब जनता को मूलभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए जिम्मेदार नगर निगम कुछ भी करने को तैयार नहीं। ऐसे में सवाल तो यही है कि गरीबों की प्यास से इतना बड़ा मजाक क्यों किया जा रहा है? कहीं मोटर साइकिल से पानी ढोया जा रहा है, तो कहीं एक ही टैंकर एक दिन में 30 ट्रिप लगा रहा है। यानि कुछ भी सोचने से पहले ये नोंचने पर आमादा हंै। जो जहां से पा रहा है सरकारी खजाने को चूसने में लगा है,बस बहाना मिलना चाहिए। वैसे भी राजधानी के नगरीय निकाय प्रशासन के काम काज को लेकर पहले भी सवालिया निशान लगते रहे हैं। इन्हीं लोगों की कृपा का नतीजा है कि रायपुर आज दुनिया के गंदे शहरों की सूची में पांचवें नंबर पर है। हल्की सी भी हवा अगर चलती है तो प्लास्टिक की थैलियां आसमान पर पक्षियों के झुंड की तरह छा जाती हैं। नगर का कोई भी गली मोहल्ला ऐसा नहीं है जहां गंदगी का अंबार न लगा हो। ऐसे में

गुरू जी की बीमारी का रहस्य

कटाक्ष- निखट्टू बुरा हो राज्य के शिक्षा विभाग के अफसरों का जिन्होंने कई-कई दशकों से शालाओं में जमे बैठे अध्यापकों का तबादला कर दिया। अब ऐसे में गुरुओं की तबियत बिगडऩी शुरू हो गई। देखते ही देखते पूरे प्रदेश में 249 गुरुओं की तबियत खराब हो गई, वो भी कागजों में। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर ऐसे गुरू जी भला बच्चों को क्या शिक्षा देंगे? इनके जीवन से आने वाली पीढ़ी क्या शिक्षा लेगी? अध्यापक के आचार -विचार का भी बच्चों के जीवन पर खासा असर देखने को मिलता है। भारत एक आदर्शवादी भूमि है, यहां हम किसी को आदर्श मानते हैं और उसी के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की पूरी कोशिश करते हैं। अब ऐसे गुरू जी के चेले भला भविष्य में क्या कर पाएंगे? दरअसल तबियत उन्हीं लोगों की बिगड़ी है जो, स्कूल तो नाम मात्र के जाया करते थे। स्कूल में हाजिरी लगाकर अपने घर का काम करने वाले अध्यापकों की ये सारी कारस्तानी लगती है। ये पढ़ाने को छोड़कर बाकी का हर काम जानते हैं। घर से दूर तबादला हो जाने पर इनको घर से आना-जाना करना होगा। इसके अलावा वहां काम भी करना पड़ेगा, जो इन लोगों ने कभी किया ही नहीं। ऐसे में भला अब तबि

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पाड़ा पुराण और परेशानियां

निखट्टू संतो.... कथा कुछ इस प्रकार है कि एक कुश की रस्सी बटने वाले अंधे ने एक भैंस पाल रखी थी। उसके एक पाड़ा था। अंधा इस पाड़े को बहुत प्यार करता था। लिहाजा अपनी ही चारपाई के पास बांधकर रखता था। एक दिन अंधा ढेर सारा कुश लाया और ये सोच कर रस्सी बटने बैठ गया कि इसी रस्सी से अपने घर की तीन चारपाइयों को बुनेगा। अति उत्साह में वो भूल गया कि चारपाई के नीचे ही पाड़ा भी बंधा हुआ है। अब कई घंटे तक उसके रस्सी बटने का परिणाम क्या निकला ये तो आपको आसानी से समझ में आ ही गया होगा। नहीं समझ पाए... अरे भइया सारी रस्सी पाड़ा जी चबा गए। प्रदेश की सियासत में भी आजकल ऐसा ही हो रहा है। यहां भी कोई अपनी सियासी चारपाइयां बुनने के लिए रस्सियां बुनने में लगा है। और कुछ पाड़ा जी जहां-तहां जु$गाली करने में लगे हैं। यही कारण है कि परेशानियां प्रदेश का पीछा नहीं छोड़ रही हैं। अब इसी बात को ज्योतिषी  ग्रह नक्षत्रों से जोड़ कर देख रहे हैं। सियासी विश्वलेषक अपने-अपने तरीके से देख रहे हैं। अब बंदा ठहरा चरवाहा तो उसके देखने का नजरिया भी तो वैसा ही होगा न? वैसे भी इन पाड़ो को पालने का कारण मुझे समझ में बिल्कुल भी नहीं

Front and Last Page of Hamari Sarkar of 17th May 16

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सबक सिखाना जरूरी

तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें य$कीन नहीं। राजधानी में अचानक स्पाइनल कार्ड के रोगियों की तादाद में ईजाफा हुआ, तो माथा ठनक गया। तफ्तीश की तो पता चला कि ऐसा होने के पीछे राजधानी की सड़कों पर बने अमानक रोड ब्रेकर्स हैं। अब सवाल ये कि इनकी वार्डों की सड़कों पर क्या स्थिति है। ये जानने के लिए जब राजधानी के वार्डों का दौरा किया तो हालात चौंकाने वाले मिले। यहां के लगभग सभी वार्डों में अमानक गति अवरोधकों की तादाद काफी ज्यादा है। अति तो हो गई कामरेड सुधीर मुखर्जी वार्ड में जहां महज आधे किलोमीटर सड़क पर 30 रोड बे्रकर्स पाए गए हैं। महापौर का कहना है कि हम तो दोनों ही ओर से पिस रहे हैं। अगर बनाएं तो मीडिया खराब कहती है और न बनाएं तो लोग कोसते हैं। दरअसल राजधानी के रसूखदारों ने सड़कों को अपनी जागीर समझ रखा है। ऐसे में जो जहां भी पाता है वहीं अमानक गति अवरोधक बनाने बैठ जाता है। उस पर भी तुर्रा ये कि इनकी पहुंच बहुत ऊपर तक है। कोई इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। कइयों ने तो नगर निगम तक को ही चुनौती दे डाली कि अगर महापौर में हिम्मत हो तो तुड़वा कर दिखा दें। सुनकर हम त

विकास की आड़ में बरबादी का खेल

बंजर जमीन पट्टे पर जो दे रहे हैं आप, ये रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखार में। विकास की आड़ में बरबादी का खेल किस कदर खेला जा रहा है इसका नमूना राज्य के तमाम जिलों में देखने को मिल रहा है। ठेकेदार, अभियंता और नेताओं की तिकड़ी ने पूरी व्यवस्था को  मटियामेट कर दिया है। निर्माण चाहे किसी भी तरह का हो, चलती इन्हीं की है। नया मामला राजनांदगांव में सामने आया है जहां पहले तो  फुट ओवर ब्रिज बना दिया जाता है। उसके पूर्ण होने के साथ ही साथ उसी के पास एक फ्लाई ओवर ब्रिज का निर्माण भी प्रस्तावित कर दिया जाता है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि तब फिर उस फुट ओवर ब्रिज का क्या औचित्य रह जाएगा? यहां नियम कायदे की बात करना भी बेमानी है। यहां की बिल्डिंग्स को सीमेंट सिर्फ चटाया जाता है। इसके तमाम नमूने भी समय-समय पर देखने को मिलते आ रहे हैं। कई स्कूलों की छतें निर्माण के बाद ही टपक पड़ीं। फ्लाईओवर ब्रिज में उद्घाटन के पहले ही दरारें दिखाई देने लगती हैं। सड़कों की हालत तो पूछिए ही मत। इनका तो आलम ये है कि एक कुदाल मारी नहीं कि धरती मां के दर्शन हो जाती हैं। अब ऐसी सड़क पर हम कितने सुरक्षित हंै इसका अंदाजा

रमन के सुराज पर भारी भाजपा नेता का गुंडाराज

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रायपुर / दंतेवाड़ा। सत्ता के नशे में कई बार आपने नेताओं की दबंगई देखी होगी। एकबार फिर से छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की गीदम नगर पंचायत में ये दबंगई देखने को मिली है। जहां एक भाजपा नेता और पूर्व राज्यमंत्री के बेटे ने गुंडागर्दी की है। पूर्व राज्यमंत्री विजय तिवारी के बेटे गीदम के जनपद अध्यक्ष अभिलाष तिवारी ने सत्ता की शक्ति का इस्तेमाल अपनी गुंडागर्दी के लिए किया है। अभिलाष की ये हरकत कैमरे में कैद हो गई। अभिलाष ने सब्जी बाजार में अपनी छोटी से दुकान लगाने वाले गरीबों के साथ दुव्र्यवहार किया। घटना शुक्रवार की है जब अभिलाष तिवारी अपने सुरक्षाकर्मियों संग इलाके के दौरे पर निकले हुये थे। शुक्रवार को अभिलाष तिवारी अपने सुरक्षाकर्मियों संग इलाके के दौरे पर निकले थे, लेकिन सड़क किनारे सब्जियां बेचते आदिवासी इन्हें इतने नागवार गुजरे कि उन्होंने लात मारकर उनकी सब्जियां ही बिखरा दीं। ग्रामीण इनके सामने हाथ जोड़ मिन्नतें करते रहे, लेकिन भाजपा नेता अभिलाष तिवारी ने उनकी एक न सुनी। सीएम के सुराज पर भारी भाजपा नेता का गुंडाराज एंट्रो- एक ओर राज्य के मुखिया गर्मियों में धुर नक्सली इलाकों में चौपा

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राजनांदगांव के फॉयर फाइटर्स का फ्लॉप शो

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 कुछ साल पहले टीवी पर आने वाले फ्लॉप शो की तर्ज पर ही राजनांदगांव का फॉयर स्टेशन काम कर रहा है। यहां के फॉयरमैन्स की जिंदगी उनके बच्चों के भाग्य भरोसे चल रही है। इनके पास न वर्दी, न गम बूट और न ही हेलमेट। धक्कामार एक अदद गाड़ी तथा सैकड़ों छेद वाली पाइप, महापौर के दावों की पोल खोलने के लिए काफी हैं। उस पर भी तुर्रा ये है कि इसी वाहन का उपयोग निगम बतौर टैंकर वार्डों में पानी की आपूर्ति के लिए भी कर रहा है। ऐसे में महापौर मधुसूदन यादव की योजनाओं की दाद देनी होगी। जो इन फॉयर मैंस की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या यही एक फॉयर फाइटर पूरे शहर की आग बुझा पाएगा ? फॉयर फाइटर वाहन को निगम ने बनाया टैंकर, वार्डों में करवा रहे जल आपूर्ति राजनांदगांव। फूटी पाइप से झरता पानी, बिना वर्दी और गम बूट के फायर मैन और धक्का मार गाड़ी के भरोसे है यहां के 3 लाख लोग। शहर में अगर एक बार कहीं दो स्थानों पर आग लग जाए तो फिर पहले कहां की आग बुझाएंगे ? 6 किलोमीटर चारों ओर के दायरे यानि लगभग 24 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले शहर की पूरी जिम्मेदारी इसी एक फॉयर फाइटर पर है। क्या है गाड

फॉयर ब्रिगेड का जवान भगवान भरोसे

सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आइने पे लगाना फुजूल है। अग्रिशमन दस्ते में नौकरी करने वाले जवान का राजनांदगांव में तो भगवान ही मालिक है। इनके पास न तो कोई गम बूट न दस्ताने और न ही सिर बचाने के लिए हेलमेट। इसके बावजूद भी नगर निगम अग्रिशमन वाहनों का उपयोग बतौर टैंकर किए जा रहा है। जिले के महापौर इस पर नहीं कर रहे हैं गौर। जरूरी सामानों के लिए भी समीपवर्ती जिलों के सहयोग के सहारे यहां के फॉयर ब्रिगेड की गाड़ी चल रही है। धक्कामार वाहन और असंख्य छेदों वाली पाइप देखने के बाद आदमी का इनसे मोहभंग हो जाता है। चौबीस वर्ग किलोमीटर में फैले शहर, जहां का सांसद भी काफी रसूखदार हो ऐसी जगह इस तरह की लापरवाही समझ से परे है। यहां काम कम घोषणाएं ज्यादा हो रही हैं। लोगों को परेशानियां तो हैं मगर सरकार के मीडिया प्रबंधन के आगे सब बौनी लग रही हैं। व्यवस्था कुछ मामूली लोगों की रखैल बनकर रह गई है और कानून सिर नीचा किए नाखून कुतरने में लगा है। दावे पर दावे तो किए जा रहे हैं मगर समस्याओं के मर्ज की दवाई करने का वक्त किसी के भी पास दिखाई नहीं देता। एक बार वोट लेकर पांच साल तक चोट देने वाले नेताओं ने य

सुविधाओं के असल हकदार

देखना ये है कि अब जीत किसकी होती है, मैं खाली हाथ तेरे हाथ में निवाला है। सरकार जनता की सुविधा के लिए लगातार हर साल बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर मोटा बजट खर्च करती है। दवाओं से लेकर अच्छे चिकित्सकों और एंबुलेंस सेवाओं के लिए संजीवनी एक्सप्रेस 108 जैसी सेवाएं भी संचालित की जा रही हैं, मगर खेद का विषय है कि ये सुविधाएं उन तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिनको असल में इनकी जरूरत है। यहां आलम ये है कि दंतेवाड़ा के कुछ विकास खंडों में आज तक नक्सली भय का बहाना बनाकर एंबुलेंस सेवाएं जाने से मना कर देती हैं। पहले तो इनके अधिकारी भोलेभाले आदिवासियों को बहाना बनाकर टरका देते हैं। यदि इसके बावजूद भी नहीं माने तो फिर आते ही नहीं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या शहर में महज एक फोन कॉल पर पहुंचने वाली सरकार की सेवा यहां पहुंचने में असमर्थ है? इन सेवाओं की दरकार पहले कहां है? ग्रामीण इलाकों में या फिर शहरों में? सरकार ने कुछ दिनों पहले एक बाइक एंबुलेंस की शुरुआत का दावा किया था, मगर वो समाचार प्रकाशन के बाद कहीं दोबारा नहीं दिखाई पड़ी। जब कि जिम्मेदारों ने दावा किया था कि ये पहुंच विहीन इलाकों

Front and Last page of Hamari Sarkar of 13th May 16

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बात और करामात

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में,  मैं जब भी देखता हूँ आंख बच्चों की पनीली है । महिला दिवस पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार की असल ह$कीकत ये है कि करैहा गांव में 8 महीने से विधवाओं को पेंशन नहीं दी जा रही है। इसके अलावा वहां की 22 परित्यक्ताओं का आवेदन भी सचिव की आलमारी में पिछले 4 सालों से बंद है। ऐसे में सबसे बड़ी बात तो यही है कि क्या ऐसे ही सुराज आएगा? प्रदेश के सुखिया मुखिया के सबसे कद्दावर माने जाने वाले पंचायत एवं स्वास्थ्य तथा संसदीय कार्य मंत्री अजय चंद्राकर के विधान सभा क्षेत्र का ये मामला बताया जा रहा है। वैसे भी महिलाओं को लेकर श्री चंद्राकर काफी विवादों में रहे हैं। ऐसे में ये नया मामला उनकी मुश्किलें बढ़ाने वाला हो सकता है। सुराज लाने का दावा करने वाली सरकार की बात और करामात का ये अंतर निकट भविष्य में भारी पडऩे वाला है। जनता का मोह धीरे-धीरे ऐसे लोगों से भंग होता जा रहा है। गांव की ये असहाय महिलाएं लगातार सचिव के घर तो कभी दफ्तर का चक्कर लगा रही हैं। इनको यहां से धमका कर भगा तक दिया जाता है। लगातार मानसिक प्रताडऩा झेलने से महिलाओं को काफी कष्ट पहुंचा है। स

Front and Last page of Hamari Sarkar of 12th May-16

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पानी बचाओ मगर कैसे

निखट्टू  पूरे देश में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। एक ओर गर्मी के कारण पारा ऊपर की ओर तो पानी पाताल की ओर जा रहे हैं। ऐसे में लोगों को पानी की जरूरत होती है। तो वहीं कुछ लोगों ने पानी पर कब्जा जमा रखा है। कहीं ये पानी उद्योगों को बेंचा जा रहा है। तो गरीबों को कहीं तालाब तो कहीं झेरिया का पानी पीना पड़ रहा है। सरकारी हैंडपंप भी इस तेज गर्मी में  हांफ गए हैं। प्रधानमंत्री से लेकर तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पानी बचाने की गुहार जनता से लगानी शुरू कर दी है। ऐसे में प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना संपूर्ण स्वच्छता ही इस योजना को चूना लगाती दिखाई दे रही है। सरकार ने तमाम घरों में शौचालयों का निर्माण करवा रही है। ऐसे में पानी की खपत ज्यादा होती है। पहले आम आदमी जहां खेत- बाड़ी में एक लोटा पानी लेकर चला जाया करता था। मगर अब आलम ये है कि जैसे ही फ्लश चलाया जाता है 20 लीटर पानी अंदर चला जाता है। इसके बाद बाकी प्रयोग के लिए भी लगभग दस लीटर पानी लगता है।  तो एक आदमी पर कुल मिलाकर लगभग 30 लीटर पानी की खपत होती है। यह आंकड़ा एक आदमी का है। करोड़ों घरों में यही खेल चल रहा है। ऐसे में सव

मर्ज बनता बैंकों का कर्ज

किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है। एक ओर देश में जहां बैंकों के कर्ज से दबे किसान बैंक अधिकारियों की धमकियों से तंग आकर आत्महत्याएं कर रहे हैं। तो वहीं मोटी रकम दबाए बैठे उद्योगपति देश से चुपचाप पलायन कर रहे हैं। अब बैंक और सरकार मिलकर उनकी संपत्ति का खरीददार खोजते फिर रहे हैं। सवाल तो ये है कि इतना मोटा कर्ज एक दिन में तो नहीं हुआ होगा? उस वक्त ये बैंक और उनके तमाम जिम्मेदार अधिकारी क्या कर रहे थे? जाहिर सी बात है कि हमने इसको लेकर गंभीरता नहीं दिखाई लिहाजा ऐसे नतीजे सामने आने शुरू हो गए। दुर्घटना घट जाने के बाद जागने की आदत पाल चुके सरकारी विभागों ने भी अब लकीर पीटनी शुरू कर दी है। अब जाकर ईडी ने ब्रिटेन पलायन कर चुके उद्योगपति विजय माल्या के सारे शेयर फ्रीज़ कर किए। सवाल तो यही है कि ये कार्रवाई तीन साल पहले क्यों नहीं की गई? छत्तीसगढ़ के किसानों पर सहकारी बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। तो वहीं प्रदेश में दस से ज्यादा किसानों ने महज इस लिए आत्महत्या कर ली कि उनको बैंक के अधिकारियों ने कर्ज वसूली के नाम पर इतना प्रताडि़त किया कि इन किसानों

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सियासती सांसत में उद्योगपति घराने

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो $कत्ल तो करते हैं पर चर्चा नहीं होती। देश के उद्योगपतियों को एक-एक कर जेल में ठेल दिया जा रहा है। वजह बताई जा रही है कि उन पर बैंकों का कर्ज बकाया था और वे भर पाने में असमर्थ थे। तो वहीं इसके पीछे का सारा गणित ये है कि जिन उद्योगपतियों ने सरकार को चुनावी सहयोग नहीं किया था। उन्हीं को किनारे लगाया जा रहा है। इनमें सुब्रत रॉय सहारा और किंगफिशर के विजय माल्या प्रमुख रूप से शामिल हैं। मजेदार बात तो ये है कि इन से भी बड़े तमाम बकाएदार  आराम से अपना कारोबार कर रहे हैं मगर सरकार उनको कुछ बोलने को तैयार नहीं है। ये हर कोई जानता है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने जिस जेट प्लेन का उपयोग चुनावों के तूफानी दौरे के दौरान किया था। वो अदानी ग्रुप का बताया जाता है। इस ग्रुप पर 44 हजार 840 करोड़ रुपए का कर्ज है। इसके अलावा लैंको ग्रुप पर भी 39 हजार करोड़ से ज्यादा का बकाया है। तो वहीं जीके पॉवर और सुजलॉन पर भी काफी मोटी रकम बकाया बताई जाती है। इन पर कार्रवाई नहीं की गई।  तो मजबूरन भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसे डिफाल्टरों की सूची सुप्रीम कोर्ट को दिया। ए

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मेरे पूज्य पिता जी स्व. राजनारायण सिंह उर्फ गोसाईं सिंह वैद्य जी । अपने ज़माने के जाने-माने धावक और लंबी कूद और झाबर खेल के माहिर खिलाड़ी रहे।

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रिश्तों की डोर का मजबूत छोर है मां

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है, मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।  मां शक्ति का स्वरूप है, सृष्टि की निर्माता है। बाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अर्थात मां और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर है। हमारे देश में साल के 12 महीने में मां के 13 स्वरूपों की पूजा की जाती है। हमारे इतिहास में मां के बलिदानों की अनेकानेक कहानियां भरी पड़ी हैं। हम अपनी धरती को भी मां मानते हैं। ऐसे में उस पर किसी दूसरे का अतिक्रमण कतई बर्दाश्त नहीं करते। मां की जितनी भी बड़ाई की जाए वह बहुधा कम होगी। यह भी अकाट्य सत्य है कि चोट बच्चे को बाद में लगती है मगर मां की चीख पहले निकल जाती है। पर कष्ट इस बात का है कि आज के उच्च शिक्षित बच्चे अपनी मां को वृध्दाश्रमों की ओर धकेलते जा रहे हैं। उनको ये समझना चाहिए कि मां आखिर मां होती है। पहले कम पढ़ी लिखी बहुएं आती थीं तो वे सास की खूब सेवा करती थीं। उनको ताउम्र सम्मान मिलता था, यही नहीं बहुओं को डांट- फटकार कर गृहस्थी के सारे हुनर सास ही सिखाया करती थी। बच्चों के पालन -पोषण से लेकर तमाम संस्कार दादी और दादा से ही मिला करते थे। मगर

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