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Showing posts from 2010
पेश है मेरी एक दूसरी रिपोर्ट कृपया इस पर अपनी राय जरूर दीजिएगा मुझे इंतज़ार रहेगा.
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यह कीड़ा गावों में जुर्रा कहा जाता है बच्चे इसके दीवाने होते है.
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सर्कस करना इंसान ही नहीं जनता शायद यही कह रहा है यह कीड़ा .
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यह काजू कि नई किस्म है जिसे इंदिरागांधी कृषि विश्वाविद्द्यालय ने आविष्कृत किया है
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काजू कि नई क़िस्म है यह
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Indira Kaju-1 (CARS - 10) Varietal Development Process: Clonal Selection MethodReproductive Advantage: Fruiting started within 4 yearsYield: High yielding, 15.53 kg/tree per annumMorphological advantages" Colour of mature nut is Grey " Crotch angle of nut is Wide (Obtuse)Special Attributes:" Big size nut weight (10.50 g) as the export quality nut weight requirement is more than 8.0 g." 52.94 % Yield increase over National Check V- 4 (Year 2008-09)" 23.33 % yield increase over National Check V- 4 in cumulative yield of 9 years." Better shelling percentage (28.65%) as compared to national check V- 4.Abiotic Stresses: Best in terms of low temperature tolerance coupled with medium maturity.Biotic Stresses: Field tolerant to Tea mosquito bug and Cashew stem and root borerRecommended Regions: Recommended by Zonal Research and Extension Advisory Committee for Bastar Area of Adoption: Bastar plateau Zone and Narthen hill regions of Sarguja Developed by : Dr. Dhana...
दोस्तों के उत्त्साह्वर्धन के बाद यह पहला प्रयास राज्य की एक बड़ी समस्या को ले कर .....
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गौरव गाथा महतारी के (छत्तीसगढ़ी कविता )
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ये नाग मन के धरती जिंकर ले नग घलो थररात रिहिस। फणीं अऊ छिन्दक राजा मन के ध्वज हा लहरात रिहिस।। पाण्डव के पार्थ पौत्र परीक्षित ल जेन हा ललकारिन। लड़त मेरठ के तीर रण में तक्षक हा उनला मारिस।। अड़बड़ वीर मन के धरती ये छत्तीसगढ़ महतारी हे। ज्ोमां रत्न भरे खान, सरल-सुघर- सुन्दर सुजानी हे।। अइसन मनखे के माटी में बारुद बोवत हे मक्कार। अइसन मनखे के चिंहारी कर करना हे नक्कार।। ये वीरनारायण की धरती दाऊ दयाल के माटी हे। इंकर रक्षा हित बर मिटना वीर मन के परिपाटी हे।। मांदर के थाप सुनके इहां शेर के टांग घलो कांपथे। आदिवासी के तीर विरोधी के देह घलो वोहा नापथे ।। काबर येमन भोला-भाला के मन मा जहर घोरथें। लोहा के सिक्का के बल मा ईमान ला तोलथें।। अउ कतका दिन तुमन अइसने कटवाहू? जेन दिन सब संभलहीं कुटका में बंट जाहू।। वो दिन माटी के बेटा धरती के करजा उतारहीं। अउ खोज-खोज के सब मक्कार ला मारहीं।। जंगल मा कोयली मैना पंख अपन फहराही। धरती धान के बाली ले चारों मुड़ा लहराही।। ताला के रुद्र छोड़ ताण्डव तब मंद-मंद मुस्काहीं। छत्तीसगढ़ के वासी कपूत जनगणमन ला गाहीे।। द
काम आई सहायता
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अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् ने एक कपूत को विकलांग स्कूटर वाहन प्रदान किया । जिससे अब मैं चलने लायक हो गया । इसके लिया विकलांग चेतना परिषद् के प्रांतीय अध्यक्ष रामानंद अग्रवाल जी डॉ डीपी अग्रवाल भैया सत्येन्द्र अग्रवाल, अनुराधा दुबे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वीरेंद्र पाण्डेय व मेरे बड़े भैया गिरीश पंकज तथा डॉ सुधीर शर्मा जी सहित तमाम मित्रों ने भरपूर सहयोग किया । इसके लिया रायपुर के प्रेस क्लब के सभी भाइयों हरिभूमि परिवार , व शुभचिंतकों का हार्दिक आभार । धन्यवाद
गौरव गाथा महतारी की
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यह धरती नागों की धरती जिनसे नग भी थहराते थे, जहां फणीं और छिन्दक राजाओं के ध्वज ही लहराते थे। पाण्डव के पार्थ पौत्र परीक्षित को जिसने ललकारा था, मेरठ के निकट हुए रण में तक्षक ने उनको मारा था।। उनके साहस से सहमें साधू उन्हें सर्प बतलाते हैं, भागवत में क्षेपक जोड़ हमें यह कल्पित कथा सुनाते हैं। तोपों तीरों का साथ और तेगों से जिनकी यारी है, ऐसे ही वीरों की माता यह छत्तिसगढ़ महतारी है।। जिसमें रत्नों की भरी खान, कुछ सरल सुघर सुन्दर सुजान, आगन्तुक को भगवान मान, करते उनकी सेवा सम्मान। ऐसे मनखों की माटी में बारूद बो रहे मक्कारों, नाकों के बल बजने वाले नक्सल के नकली नक्कारों।। यह वीरनारायण की धरती दाऊ दयाल की माटी है, इसकी रक्षा हित मिट जाना इन वीरों की परिपाटी है। मांदर की थापें सुन जिनकी शेरों की टांग कांपती है, जिन आदिवासियों की तीरें बाघों की देह नापती हैं।। तुम उन भोले-भाले लोगों के मन में जहर घोलते हो, कुछ लोहे के सिक्कों के बल पर उनका ईमान तोलते हो। मुझको मेरे ही लालों से कितने दिन तुम कटवाओगे, जिस दिन ये सम्भल गए उस दिन तुम टुकड़ों में बंट जाओगे।। उस दिन इस माटी का बेटा धरती का कर्ज उतारे...