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Showing posts from July, 2016
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बरी होने पर खरी-खरी

कटाक्ष- निखट्टू गांवों में एक कहावत है कि बकरे की जान गई खाने वाले को स्वाद नहीं आया। ठीक यही हुआ जोधपुर के चिंकारा कांड में। सारे सुबूत और दलील एक तरफ और दूसरी तरफ सुपर स्टार। कोई बता रहा गोली गलत तो कोई कह रहा है कि चाकू में नहीं थी धार। देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि 18 साल में भी सुबूत नहीं जुटा पाईं? सारे लोग अपना-अपना वेतन लिए और रिटायर्ड हो गए। हिरनों का कबाब खाकर लोग पूरे देश के मंचों पर धमाल मचाते रहे। 18 साल तक मुकदमा लडऩे वाले मुद्दई को अदालत से मिलती रहीं सिर्फ तारीखों पर तारीखें और आखिरकार आज मिली हार। इसके बाद भी प्रशासन सबके लिए समान कानून की बात करता है? इतने सालों तक वकील का एक भी तर्क नहीं चला और माननीय अदालत ने सुना दिया फैसला? गजब है हमारे देश का कानून- बेजुबानों का बयान सुनना चाहता है? सवाल तो ये भी है कि जो पांच कारण बताए गए हैं कुल मिलाकर कानून को सिर्फ बरगलाया गया है। ऐसा कोई ठोस प्रमाण ही नहीं दिखाई देता जिसके बल पर सलमान खान को बरी किया जाए। इससे एक बात तो साफ हो गई कि देश में दो तरह का नहीं कई तरह का कानून चलता है। नेताओं के लिए एक- मं

आदिवासियों का अधिकार

अंधेरा है या तेरे शहर में उजाला है, हमारे जख़्म पे क्या फर्क पडऩे वाला है। पूरे देश में एक कहावत मशहूर है कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। वास्तव में यहां की संस्कृति और यहां के लोगों की मिलनसार प्रवृत्ति का ही नतीजा है कि दूसरे राज्यों के लोग भी यहां आकर बसे और यहीं के होकर रह गए। भगवान श्रीराम का ननिहाल भी छत्तीसगढ़ में बताया जाता है। तो वहीं ऊपर वाले ने इस राज्य में खनिज और वन संपदा के साथ-साथ जड़ी बूटियों का अकूत भंडार दिया है। प्रकृति ने इस राज्य को जितना संपन्न बनाया है यथार्थ में यहां के लोग उतने ही गरीब और पिछड़े हुए हैं। शहरी इलाकों को अगर छोड़ दिया जाए तो गांवों में अभी भी गरीबी और बेरोजगारी चरम पर है। सरकार भी गरीबों को इससे उबारने को लेकर गंभीर नहीं दिखाई देती। यही कारण है कि यहां आए दिन गरीबों के साथ शासकीय मजाक होता ही रहता है। आदिवासियों और गरीबों को यहां लगातार प्रताडि़त होना पड़ता है। सरकार की तमाम सुविधाएं इन गरीबों की झोपडिय़ों में पहुंचने के पहलीे ही शहरों के धनी और मालदार लोगों को बांट दी जाती हैं। सुविधाओं के नाम पर इनको सिर्फ असुविधाएं ही मिलती हैं। सरकारी अफसर और बीमा

स्वाति ने किया चूर हाथी का गुरूर

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उल्टा पड़ा बसपा सुप्रीमो का मायाजाल  स्वाति सिंह ने आवाज उठाकर बिगाड़ दी राजनीति की चाल मायावती अपने अहंकार पर लगी चोट के बदले के लिए भी जानी जाती हैं। वो सरकार आने के बाद भी मुद्दे को नहीं छोडऩा चाहती। वो और उनके पदचिन्हों पर चलने वाले मिश्रा जी पहले ही सदन में खुलेआम कह चुके हैं कि आगे कुछ हुआ तो पार्टी जिम्मेदार नहीं होगी। धमकी देने की ये अदा और अनर्गल बातों की ये मायागिरी साफ कर रही है कि अपने अपमान से उत्साहित मायावती के हाथी का गुरूर स्वाति सिंह ने तोड़ दिया है। लखनऊ। स्वाति सिंह ने मायावती को बैकफुट पर धकेल दिया और अपने अपमान से मिले मुद्दे से खुश हो रही मायावती अब परेशान दिख रही हैं जो उनकी प्रेस कॉफ्रेंस में साफ छलका। बीएसपी के हाथी की हवा स्वाति सिंह के तेवरों के आगे निकलती दिखाई दे रही हैं। इस बीच अहम सवाल उस बच्ची का भी था जो इन नारों के बाद व्यथित है। डरी बेटियों की हो रही काउंसिलिंग- स्वाति सिंह ने कहा कि वो और उनकी सहेलियां उनकी बेटी की काउंसलिंग के प्रयास कर रही है। वो इस घटना से बहुत परेशान है और स्कूल भी नहीं जा रही। उनके बच्चे डरे हुए हैं। गौरतलब है कि रीता बहुगुण

गरीबों की आशा से ऐसा तमाशा क्यों?

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रायपुर। सुराज की सरकार लगातार प्रदेश के गरीबों बंटाधार किए जा रही है। कभी फसल बीमा के नाम पर 5 और 30 व 50 रुपए के चेक, तो कहीं नकली खाद और बीज। मध्यान्ह भोजन में छिपकली और सांप तो अमृत दूध के नाम पर बांटा गया जहर। 17 जिलों के 574 गांवों में फ्लोराइड युक्त पानी। जर्जर स्कूल और टपकते अस्पताल, कहीं कूड़े में मिलती बच्चों की दवाई तो कहीं दवा के अभाव में मरते बच्चे। गरीबी में और मनरेगा की सबसे कम मजदूरी देने में अव्वल छत्तीसगढ़। आदिवासियों को वन अधिकार पट्टे देने के नाम पर सरकार के दांत हो जाते हैं खट्टे। नेता करते हैं घोषणाएं और अधिकारी देते हैं झांसा। सवाल तो ये है कि आखिर गरीबों की आशा के साथ क्यों हो रहा है ऐसा तमाशा? क्या है प्रदेश के विकास की असलियत- प्रदेश में 39.93 प्रतिशत लोग गरीब हैं। मनरेगा  एक फीसदी लोगों को भी डेढ़ सौ दिनों का रोजगार नहीं दे पाई ये सरकार। मनरेगा में काम करने वालों को पूरे देश में सबसे मजदूरी छत्तीसगढ़ में मिलती है।  यही कारण है कि तीन सालों में 80 हजार लोग राज्य से पलायन कर गए।  फसल बीमा के नाम पर 5 सौ रुपए  शेष पृष्ठ 5 पर... प्रति एकड़ लेकर बीमे की किश्त क

Front and last page of Hamari Sarkar of 25th July 16

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लालटेन का लफड़ा

कटाक्ष -निखट्टू एक दिन लालटेन के सारे कलपुर्जांे में शुरू हुआ झगड़ा, वो भी हल्का नहीं तगड़ा। लोहे के ढांचे ने खुद को सबसे मजबूत बताया। तो मिट्टी के तेल की समझ में आ गया सारा खेल, उसने तत्काल ये कहकर खींची ढांचे की नकेल। बोला अगर लालटेन में नहीं रहेगा तेल, तो खत्म समझो खेल, आदमी तो यही कहेगा कि क्या इस ढांचे को लेकर नाचें? शीशे ने कहा अच्छा और जो मैं देता रहता हूं हवा और बारिश से सुरक्षा, इसीलिए तो इनके पास तक हवा नहीं पहुंच पाती। सुनते ही गुस्से में आई बत्ती। बोली तुम लोगों को शर्म भी आती है एक रत्ती? अरे मैं जलती हूं सारी रात और तुम लोग करते हो बड़ी-बड़ी बात? अरे एक दिन नहीं जली तो कोने में दिखोगे? तीसरे दिन ही किसी कबाड़ी के हाथ बिकोगे। और वो कबाड़ी जब हथौड़ी चलाएगा तो तुम सबको अपनी-अपनी मजबूती का पता चल जाएगा। लोग जो अपने-अपने गुणों पर इतना इतराते हंै, उनको पता होना चाहिए कि हम सब मिलकर इस लालटेन को बनाते हैं। ये बात सबको समझना जरूरी है कि एक भी पुर्जे के बिना लालटेन अधूरी है। यही बात समाज और देश पर लागू होती है। मुझे तो बहुत ही अच्छे लगे बत्ती के बैन...सही बात है इसी का तो नाम है

गरीबों के हाल पर सवाल

मेरे कंधे पे खुद्दारी का जो मैला अंगौछा है, उसे गर बेंच दूं उसमें कई कारें आ जाएं। सरकार और उसके अधिकारी गरीबों की व्यवस्थाओं पर पड़ रहे हैं भारी। अधिकारियों को मिली हुई है लूट की छूट और वो उसी पर पड़े हैं टूट। गरीबी हटाओ का नारा देकर गरीब हटाए जा रहे हंै। सरकार ने प्रदेश के डॉक्टर्स के हाथ में कानून का वो हथियार दे रखा है कि अब वो इसका प्रयोग करके किसी को भी  मौत के घाट उतार सकेंगे। इसको बड़ी ही सफाई से लापरवाही का नाम देकर धीरे से हत्या के कानून को चकमा दे दिया जाएगा। ज्यादा हुआ तो पोस्टमार्टम करने वाला भी तो डॉक्टर ही है। वो कोई बीमारी लिखकर दे देगा। ऐसे में न्यायपालिका उसका क्या बिगाड़ लेगी? ज्यादा तीन-पांच करने वाले पर सीधे हाथापाई करने और सरकारी सम्पत्ति के नुकसान का मामला जड़ दिया जाएगा। अब जाओ तीन साल के लिए अंदर। तो वहीं किसी की जान लेने के बाद भी वो डॉक्टर शान से इस लिए घूमता रहेगा क्योंकि उसके पास सरकार की डिग्री है। उसके साथ चिकित्सकों का पूरा कुनबा है। ऐसे में देश में हत्या के कानून का अनुपालन मेडिकल सेक्टर से लगभग खत्म हो जाएगा। अलबत्ता ये झोलाछाप डॉक्टर्स पर लागू रहेगा।

ढाई करोड़ की वसूली, सुनते ही सांस फूली

 अच्छे दिनों का दिखाकर सपना, जो काम बना रहे थे अपना-अपना, अब उनको पड़ेगा नपना, क्योंकि शासन ने जारी कर दिया रिकवरी का आदेश, तो देखते हैं कि किस करवट बैठती है बलौदाबाजार के 344 सरपंचों और सचिवों की भैंस। शासन से आया वसूली का आदेश पढ़कर सबकी सांस फूली। गरीबों के विकास का पैसा दबाकर जमकर किए ऐश और जरूरतमंदों को भगाया दिखाकर तैश। शिकायत पर जागे प्रशासन ने रुकवाया खेल, अक्टूबर तक पटाएं पैसा और नहीं तो जाएं जेल। तहसीलदारों को दिए गए निर्देश- पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर के फरमान के बाद जिला प्रशासन द्वारा सभी एसडीएम को पत्र जारी कर सालों से लंबित वसूली राशि करीब दो करोड़ 65 लाख 22 हजार 617 रुपए की वसूली कराने का फरमान जारी किया गया है। इसके लिए तहसीलदारों को निर्देशित किया गया है कि वे इसकी वसूली राजस्व वसूली की भांति करें। बकायादारों को इसके लिए अक्टूबर तक का समय दिया गया है, बकाया नही पटाने पर पंचायत अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाएगी जिसमें एक माह की जेल का प्रावधान है। अनियमितता कर किया गोलमाल- दरअसल कुछ पंचायत पदाधिकारी व सचिवों ने ग्राम विकास के लिए जारी की गई राशि में अनियमितता कर बिना

मौत के दोषी डॉक्टर पर कौन सी धारा लगेगी सीएम सर

डॉक्टर्स से हाथापाई और सरकारी नुकसान को सरकार ने गैरजमानती अपराध की श्रेणी में डाल कर थमा दिया हथियार। उसी का उपयोग करके वे अब रहे हैं गरीबों और उनके बच्चों को मार।  जिले के रघुनाथ अस्पताल में चिकित्सकों की लापरवाही से मरा 9 माह का अनाथ। अब अस्पताल प्रबंधन खड़ा है दोषी डॉक्टर्स के साथ। पहले तो उसको वार्ड दर वार्ड भटकाया, उसकी फाइल को खूब लटकाया। उसके बाद अब देकर मनमाना बयान बचने की फिरा$क में हैं श्रीमान। ऐसे में गरीब और बदहाल पूछ रहे हैं सवाल कि ऐसा काम करने वाले डॉक्टर पर कौन सी धारा लगनी चाहिए सीएम सर.....? अंबिकापुर। क्या है पूरा मामला- दरअसल, 13 दिनों तक अस्पताल के अलग-अलग वार्डों में दाखिल लगभग 9 माह का बेसहारा शिशु अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के चलते सिसक-सिसक कर दम तोड़ दिया।  इन 13 दिनों में कभी उसे बच्चा वार्ड, तो कभी पूरक पोषण पुनर्वास केन्द्र में चिकित्सक दाखिल कराते रहे। आखिरकार शुक्रवार को उसकी सांसें थम गईं। जानकारों ने तो यहां तक बताया कि डॉक्टर्स उस बच्चे को वार्ड-दर वार्ड तब तक भटकाते रहे जब तक कि उसके प्राण पखेरू उड़ नहीं गए। क्या कहते हैं डॉ. जेके. रेलवाण

33 बैगाओं की मौत पर प्रशासन बना दु:शासन

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 भ्रष्ट अफसरशाही और निकृष्ट प्रशासन किस कदर दु:शासन बना बैठा है । इसका नमूना  कवर्धा में देखने को मिला जहां 6 महीने में तमाम बीमारियों से 33 बैगाओं की मौत हो गई।  तो वहीं शासन प्रशासन कान में तेल डाल कर सोया रह गया। इन संरक्षित बैगाओं को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र माना जाता है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या सुराज की सरकार वनों के साथ-साथ बैगाओं की भी परवाह नहीं है?  राज्य सरकार ने इनका स्मार्ट कार्ड क्यों नहीं बनाया?  आखिर सरकारी बजट की दवाएं कौन खा गया? ये तमा ऐसे अनुत्तरित सवाल हैं जिनका जवाब सुशासन के अधिकारियों को देना होगा। 6 महीने में हुई मौतों से सकते में आदिवासी, शासन -प्रशासन ने साधी चुप्पी रायपुर । क्या है पूरा मामला-  कवर्धा जिले में पिछले छ: माह में ही 33 बैगाओं की मौत बीमारी से हो गई है।  इसमें सबसे ज्यादा 9 बैगाओं की मौत बुखार के कारण हुई है।  जबकि 4 बैगाओं की मौत कैंसर, आत्महत्या, विषधारी जंतु के काटने तथा अज्ञात कारणों से हुई है।  इसके अलावा 1-1 बैगा की मौत टीबी तथा मलेरिया से हुई।  ताज्जुब की बात है राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित होने के बावजूद इनमें से 3 बैगाओं की

Front and Last page of Hamari Sarkar of 24th July 16

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मश्वरा और काम

निखट्टू- एक आदमी फुटपाथ पर टहल रहा था। अचानक उसके पैर में ठोकर लगी और खून बहने लगा। वह बीच सड़क पर ही बैठ गया। इसके बाद एक-एक कर लोगों की भीड़ लग गई। वो आदमी पीड़ा से कराह रहा था। तो वहां खड़े लोगों में मंत्रणा शुरू हो गई। एक ने कहा भाई ऐसे घाव के लिए तो किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाना ही अच्छा रहेगा। दूसरे ने कहा अमां मियां भेजा खराब हो गया है तुम्हारा.....मैं तो कहरिया हूं कि बस किसी ट्रक का बे्रक ऑयल मिल जाए और उसको इसके घाव पर गिरा दें। तब तक तीसरे साहब से नहीं रहा गया। उन्होंने कहा कुछ नहीं ऐसे घावों पर तो दूब घास को कुचल कर बांध दें ठीक हो जाएगा। एक आदिवासी ने बताया कि इस पर बांस के ऊपर की हरी-हरी दिखने वाली पतली छाल को खुरच कर बांध दें ठीक हो जाएगा।एक माली जो मंदिरों में फूल मालाएं बेचता है उसने कहा कि इस पर गेंदे के फूल के पेड़ की पत्तियां पीसकर उसका रस टपका दें। घाव भी भर जाएगा और दर्द भी नहीं होगा। गुप्ता जी ने कहां अजी छोडि़ए जनाब....सरसों के तेल को गर्म करके उसको इसके घाव पर गिरा दो दर्द भी खत्म और घाव भी भर जाएगा। उनकी बात खत्म होती इसके पहले ही मूंछों पर ताव देते ठाकुर साह

Front and Last page of Hamari Sarkar of 23rd July 16

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राहत के नाम पर आहत करता प्रशासन

  सुशासन के कई नमूने तो उनके घर के बाहर ही देखने को मिले  जब दो महिलाओं ने जहर खाया तो तीसरे युवक ने आत्मदाह कर लिया। महिलाओं की मौत पर न तो महिला आयोग ने कुछ कहा और न ही प्रशासन ने किसी की सुनी। अलबत्ता 30 फीसदी जले उस विकलांग का देखकर हाल, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के अजीत जोगी ने ठोंकी ताल, तो कांग्रेस भी हो गया लाल। दिन में कांग्रेसी मुख्यमंत्री आवास मिट्टी का तेल लेकर पहुंचे तो शाम को अजीत जोगी ने जलाई मशाल। इसी बात का है मलाल कि मामले पर काम कम और सियासत ज्यादा हो गई। आर.पी. सिंह सुराज और सुशासन का नारा देकर चारा जुगाडऩे में उस्ताद छत्तीसगढ़ के मुखिया जहां सुखिया के लिए अलग शहर बसा रहे हैं। तो वहीं दुखिया की सुनने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता। सुशासन के कई नमूने तो उनके घर के बाहर ही देखने को मिले  जब दो महिलाओं ने जहर खाया तो तीसरे युवक ने आत्मदाह कर लिया। महिलाओं की मौत पर न तो महिला आयोग ने कुछ कहा और न ही प्रशासन ने किसी की सुनी। अलबत्ता 30 फीसदी जले उस विकलांग का देखकर हाल, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के अजीत जोगी ने ठोंकी ताल, तो कांग्रेस भी हो गया

देवी के भक्तों के कमाल पर सवाल

कटाक्ष -निखट्टू गुनहगारों में शामिल हूं गुनाहों  से नहीं वा$िकफ, सजा तो जानते हैं हम ख़ुदा जाने खता क्या है। ठीक यही हाल आजकल उत्तर प्रदेश की सियासत में चल रहा है। और कुछ बेगुनाह सांसत में पड़े हैं। कुछ गुनहगार किस्म के लोग अपनी जिद पर अड़े हैं। उत्तर प्रदेश की सियासत अब ताली, जुगाली से होती हुई गाली तक पहुंच गई? उस पर भी गाली दिलवाने वाली खुद को देवी बता रहीं हैं। अब मेरी मोटी बुध्दि में ये बात आखिर क्यों नहीं आती कि आखिर ऐसी कौन सी देवी हैं जिसके भक्त किसी की बहन-बेटी को सरेआम चौराहे पर गाली देते हों? ऐसी कौन सी देवी हैं जो चढ़ावे में बोरों रुपए लेती हों? ऐसी कौन सी देवी हैं जिनका चप्पल ढोने के लिए स्पेशल एअरक्राफ्ट मुंबई जाता हो? ऐसी कौन सी देवी हैं जो खुद को तो दलित बताती हैं मगर दलितों को ही दलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़तीं? ऐसी कौन सी देवी हैं जो थोक में मूर्तियों को बनवाने में सरकारी खजाने का सारा पैसा झोंक देती हैं? तो वहीं प्रतापगढ़ के मनगढ़ में गेट से दब कर मर गए गरीबों को देने के लिए उनके खजाने में एक पैसा नहीं था? घटना के 15 दिन बाद ही वही देवी लखनऊ में सरेआम हजार और पांच

लापरवाही और अफसरशाही

हमें खबर थी जुबां खोलने पे क्या होगा, मगर कहां-कहां आंखों पे हाथ रख लेते। दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाली अफसरशाही भी लापरवाही करने में पीछे नहीं है। वैसे भी लापरवाहियों और छत्तीसगढ़ की अफसरशाही का चोली-दामन का साथ है। चाहे वे शहीदों के शवों और उनकी वर्दियों का  हो या फिर जवानों का। भारत का यही वो राज्य है जहां कुछ वर्षों पहले नक्सली मुठभेड़ में शहीद जवानों को शवों को कचरे की गाडिय़ों में ढोया गया था। तो वहीं प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में शहीदों की वर्दियां और बूट कूड़े के डिब्बे में मिले थे। ये तो शहादत के बाद की बात है। कांकेर की कलेक्टर तो इन सबसे चार कदम आगे निकलते हुए उनकी सुरक्षा में तैनात जवान से ही अपनी चप्पलें उठवाईं। बेचारा जवान धुर नक्सलवाद प्रभावित इलाके दुर्गूकोंदल में कोटरी नदी पर बने चेकडैम जिसके ऊपर से पानी बह रहा था, उसको पार किया। सुरक्षा के सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए गए। ऐसे में अगर कहीं कोई नक्सली वारदात हो जाती तो फिर शासन -प्रशासन जवाब खोजने के लिए माथापच्ची करता नज़र आता। ठीक वैसे ही जैसे शहीदों के अपमान के मामले में हो रहा है। जांच कमेटी बनाकर महानदी स्न

Front and Last page of Hamari Sarkar of 22nd July 16

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अच्छे दिनों की आग

कटाक्ष -निखट्टू अच्छे दिन लाने का दावा करने वाली सरकार इतने अच्छे दिन लाएगी किसी ने भी सोचा नहीं होगा। मध्य प्रदेश में सुराज का दावा करने वाली सरकार 50 किलो गेहूं के कट्टे में 20 किलो मिट्टी मिला कर बांट रही है। तो छत्तीसगढ़ की रमन सरकार का चाउर गाड़ी और बंगले वाले खा रहे हैं। गरीबी रेखा का कार्ड भी धनवानों के कब्जे में है और अफसरशाही सुविधाओं को भोगने में मस्त है। यहां मध्यान्ह भोजन में बच्चों को छिपकली तो कहीं सांप खिलाया जा रहा है। जो इससे बच गए उनको अमृत दूध पिलाकर मारा जा रहा है। अफसरशाही की गवाही देने के लिए प्रदेश की दो घटनाएं ही काफी हैं। लगभग साल भर पहले एक महिला ने मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के आवास में चल रहे जनदर्शन में जहर खाकर खुदकुशी कर लिया था। उसके बाद कल भी उसी तरह की दूसरी घटना घट गई। एक नि:शक्त मुख्यमंत्री के जनदर्शन में गया था अपनी व्यथा सुनाने अब उसको अधिकारियों ने इतनी कथा सुना दी कि उसकी सहनशक्ति ही जवाब दे गई। उसने मुख्यमंत्री के दरवाजे पर ही आग लगा लिया। ये सातवां वेतनमान और कार बंगले में ऐश करने वाले अफसरों की संवेदनशीलता का जीवंत नमूना है। सरकार ने इनको गर

अच्छे दिनों की आग

कटाक्ष -निखट्टू अच्छे दिन लाने का दावा करने वाली सरकार इतने अच्छे दिन लाएगी किसी ने भी सोचा नहीं होगा। मध्य प्रदेश में सुराज का दावा करने वाली सरकार 50 किलो गेहूं के कट्टे में 20 किलो मिट्टी मिला कर बांट रही है। तो छत्तीसगढ़ की रमन सरकार का चाउर गाड़ी और बंगले वाले खा रहे हैं। गरीबी रेखा का कार्ड भी धनवानों के कब्जे में है और अफसरशाही सुविधाओं को भोगने में मस्त है। यहां मध्यान्ह भोजन में बच्चों को छिपकली तो कहीं सांप खिलाया जा रहा है। जो इससे बच गए उनको अमृत दूध पिलाकर मारा जा रहा है। अफसरशाही की गवाही देने के लिए प्रदेश की दो घटनाएं ही काफी हैं। लगभग साल भर पहले एक महिला ने मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के आवास में चल रहे जनदर्शन में जहर खाकर खुदकुशी कर लिया था। उसके बाद कल भी उसी तरह की दूसरी घटना घट गई। एक नि:शक्त मुख्यमंत्री के जनदर्शन में गया था अपनी व्यथा सुनाने अब उसको अधिकारियों ने इतनी कथा सुना दी कि उसकी सहनशक्ति ही जवाब दे गई। उसने मुख्यमंत्री के दरवाजे पर ही आग लगा लिया। ये सातवां वेतनमान और कार बंगले में ऐश करने वाले अफसरों की संवेदनशीलता का जीवंत नमूना है। सरकार ने इनको गर

जले विकलांग की कराह

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल करते हैं मगर चर्चा नहीं होती। प्रदेश की भ्रष्ट हो चुकी अफसरशाही किस कदर बेलगाम हो चुकी है। इसको नतीजा कल मुख्यमंत्री आवास के बाहर और अंबेडकर अस्पताल में देखने को मिला। जब एक विकलांग युवक ने सीएम रेजीडेंस के पास आत्मदाह की कोशिश की और उसको अस्पताल पहुंचाया गया। दर्द और जलन से कराह रहा वो युवक आधे घंटे तक चीखता रहा, मगर अस्पताल प्रबंधन आराम से अपनी रफ्तार से कामों को अंजाम देने में लगा रहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। हमेशा विवादों में रहने वाले मेकाहारा के डॉक्टर्स के  लिए ये आम बात है। उस युवक के शरीर से उठती सवालों की लपटों ने मुख्यमंत्री के जनदर्शन को भी अपने लपेटे में ले लिया। अब राज्य की जनता ये जनना चाहती है कि क्या ऐसे गैर संवेदनशील अफसरों और डॉक्टर्स को सातवां वेतनमान देना उचित है? जब ये काम नहीं कर सकते तो जनता इन पर इतना दाम क्यों खरचे? सरकारी नौकरियों का ये चरित्र बनता जा रहा है कि बिना काम के बढिय़ा दाम और पूरा आराम जहां मिले उसे ही सरकारी नौकरी कहते हैं। अगर मेहनत कर दी तो ऊपरी कमाई अलग से। हद तो तब हो जाती है जब किसी घुसखोर अधिक

सवालिया लपटों में सीएम का जनदर्शन

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सीएम आवास के आसपास बढ़ते सुसाइड को लेकर साइड होने की फिरा$क में लगी अफसरशाही, शासन-व्यवस्था की इस तबाही पर कुछ भी बोलने से बच रही है। विकलांग योगेश कुमार साहू के आत्मदाह की कोशिश और उसके बाद मेकाहारा में उसकी गूंजती कराह प्रदेश की तबाह हो चुकी प्रशासनिक व्यवस्था की अवस्था बताने के लिए काफी है। नि:शक्त योगेश के शरीर से उठ रही आग की शक्ल में सवालिया लपटों ने सीएम के जनदर्शन को भी अपनी चपेटे में ले लिया। ये कोई नया मामला नहीं है इससे पूर्व भी एक खिलाड़ी और एक रेप पीडि़ता भी यहीं मुख्यमंत्री निवास के बाहर जहर खा चुके हैं। ये घटनाएं प्रदेश की नकारा हो चुकी प्रशासनिक व्यवस्था की ओर इशारा तो करती ही हैं। पोल खुलती देख अफसरों ने साधी चुप्पी रायपुर। क्या है पूरा मामला- सीएम हाउस के सामने गुरुवार दोपहर को उस समय हड़कंप मच गया जब सरकारी नौकरी की फरियाद लेकर पहुंचे एक दिव्यांग युवक ने खुद पर पेट्रोल उड़ेलकर आग लगा ली। सीएम हाउस के सुरक्षाकर्मियों की नजर जैसे ही आग की लपटों में घिरे युवक पर पड़ी, उन्होंने दौड़कर युवक के ऊपर कपड़ा डालकर आग बुझाई और एक ऑटो में उसे तत्काल अंबेडकर अस्पताल भिजवाया। य

Front page of Hamari Sarkar of-21st July 16

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सदन में शयन

कटाक्ष -निखट्टू संतो...जागत नींद न कीजै। किसी बहुत पुराने कवि ने कहा था कि आलस और निद्रा किसान का नाश करती है। चोर का खांसी, हंसी-खुशी सन्यासी और ब्राह्मण का नाश दासी कर देती है। ऐसे में सोना कितना खतरनाक हो सकता है आप समझ गए होंगे न? और वहीं अगर कोई संसद में सोए तो? सदन चाहे नगरीय निकायों का हो या विधान सभाओं अथवा देश की संसद का, वहां तमाम महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। यहां रोना-धोना तो कई बार हुआ मगर सोना शायद इससे कम बार ही होता हुआ दिखा। जब कोई आराम से वहां भी नींद ले रहा हो। इस मामले में देश के कुछेक बूढ़े लोगों और कुछ राष्ट्रीय पार्टियों के अध्यक्ष ही अब तक आगे थे। तो वहीं एक युवा नेता भी कई बार संसद में सोते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरे में कैद हुए । अच्छा एक बात मेरी मोटी बुध्दि में ये नहीं आती कि भला संसद में कोई क्यों न सोए? आखिर बाहर ही कौन सा सागौन का पेड़ उखाड़ ले रहे हैं ये नेता? क्विंटल भर का नाम मगर तोले भर का काम नहीं। अब जब देश की सबसे सस्ती खाने की चीजें और अच्छी प्रजाति के बासमती चावल से बनी बिरियानी और दबा कर पकौड़े पेट में गए हों, और एसी चल रही हो। तो ऐसे में भल

सदन में शयन

कटाक्ष -निखट्टू संतो...जागत नींद न कीजै। किसी बहुत पुराने कवि ने कहा था कि आलस और निद्रा किसान का नाश करती है। चोर का खांसी, हंसी-खुशी सन्यासी और ब्राह्मण का नाश दासी कर देती है। ऐसे में सोना कितना खतरनाक हो सकता है आप समझ गए होंगे न? और वहीं अगर कोई संसद में सोए तो? सदन चाहे नगरीय निकायों का हो या विधान सभाओं अथवा देश की संसद का, वहां तमाम महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। यहां रोना-धोना तो कई बार हुआ मगर सोना शायद इससे कम बार ही होता हुआ दिखा। जब कोई आराम से वहां भी नींद ले रहा हो। इस मामले में देश के कुछेक बूढ़े लोगों और कुछ राष्ट्रीय पार्टियों के अध्यक्ष ही अब तक आगे थे। तो वहीं एक युवा नेता भी कई बार संसद में सोते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरे में कैद हुए । अच्छा एक बात मेरी मोटी बुध्दि में ये नहीं आती कि भला संसद में कोई क्यों न सोए? आखिर बाहर ही कौन सा सागौन का पेड़ उखाड़ ले रहे हैं ये नेता? क्विंटल भर का नाम मगर तोले भर का काम नहीं। अब जब देश की सबसे सस्ती खाने की चीजें और अच्छी प्रजाति के बासमती चावल से बनी बिरियानी और दबा कर पकौड़े पेट में गए हों, और एसी चल रही हो। तो ऐसे में भल

यूपी की सियासी बिसात

प्रशांत किशोर को कांग्रेस के हॉयर किए जाने के बाद से उत्तर प्रदेश में सियासी तूफान जोर पकड़ता जा रहा है। वहां चुनाव होने में अभी 7 महीने बाकी हैं। तो वहीं कांग्रेस में जाते ही प्रशांत किशोर ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष को बदल दिया। उसके बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का दावेदार शीला दीक्षित को घोषित कर उत्तर प्रदेश की भाजपा को दूसरा टेंशन दे दिया। इसी की आड़ लेकर अब वे धीरे-धीरे कर्मठ कार्यकर्ताओं की फिल्टरिंग शुरू करेंगे। तो वहीं मथुरा में मेनका गांधी ने ये कह कर सनसनी फैला दी कि अगले चुनाव में वरुण गांधी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं होंगे। इसके साथ ही साथ उन्होंने प्रियंका गांधी के खिलाफ वरुण गांधी के चुनाव लड़ाने की आशंकाओं को भी सिरे से खारिज़ कर दिया। ऐसे में प्रियंका और वरुण की नजदीकियां और भी पुष्ट होंगी। कयास तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि आने वाले चुनाव में वरुण गांधी कांग्रेस में प्रवेश न कर जाएं। मेनका गांधी का बयान कुछ हद तक इन आशंकाओं को बल भी देता दिखाई दे रहा है। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। तो वहीं भाजपा मे

गेहूं के कट्टे में मिट्टी मिला रहे थे प_े

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अच्छे दिनों का नारा देकर अपनी कई पीढिय़ों का चारा बटोरने वाले शिव राज में अधिकारी मिलावट, भ्रष्टाचार जैसे अंधेर करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पहले जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट में पत्थर और प्लास्टिक मिलाकर किसानों को ठग चुके अधिकारियों का पेट जब इससे नहीं भरा। तो भोपाल में आई बाढ़ पीडि़तों को बांटे जाने वाले गेहूं के कट्टे में मिट्टी मिला दिए मुख्यमंत्री के प_े। गरीबों को दिए जाने वाले 50 किलो के गेहूं के कट्टे में 20 किलो मिट्टी सुनकर गुम हो जा रही अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी। ऐसे में सीधा सा सवाल कि क्या प्रशासन से भी ज्यादा ताकतवर हो गए हैं दलाल.... जो व्यवस्थाओं को धत्ता बता कर हो रहे हैं मालामाल.... क्या इसी के चलते बिगड़ी है यहां कानून व्यवस्था की चाल....तब तो हर कोई यही कहेगा कि अरे वाह रे...भोपाल..!  ------- भोपाल। राजधानी में राशन दुकानों में सप्लाई होने वाले गेंहू की 25 बोरियों में से 2 बोरी गेहूं मिट्टी की मिलावट वाला होता था। इसमें मिलावट का काम एमपी स्टेट सिविल सप्लाई और एमपी वेयर हाउस कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों की सांठ-गांठ से होता था। यह खुलासा राजधानी के बाढ़ प्रभावित क्

गेहूं के कट्टे में मिट्टी मिला रहे थे प_े

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अच्छे दिनों का नारा देकर अपनी कई पीढिय़ों का चारा बटोरने वाले शिव राज में अधिकारी मिलावट, भ्रष्टाचार जैसे अंधेर करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पहले जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट में पत्थर और प्लास्टिक मिलाकर किसानों को ठग चुके अधिकारियों का पेट जब इससे नहीं भरा। तो भोपाल में आई बाढ़ पीडि़तों को बांटे जाने वाले गेहूं के कट्टे में मिट्टी मिला दिए मुख्यमंत्री के प_े। गरीबों को दिए जाने वाले 50 किलो के गेहूं के कट्टे में 20 किलो मिट्टी सुनकर गुम हो जा रही अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी। ऐसे में सीधा सा सवाल कि क्या प्रशासन से भी ज्यादा ताकतवर हो गए हैं दलाल.... जो व्यवस्थाओं को धत्ता बता कर हो रहे हैं मालामाल.... क्या इसी के चलते बिगड़ी है यहां कानून व्यवस्था की चाल....तब तो हर कोई यही कहेगा कि अरे वाह रे...भोपाल..!  ------- भोपाल। राजधानी में राशन दुकानों में सप्लाई होने वाले गेंहू की 25 बोरियों में से 2 बोरी गेहूं मिट्टी की मिलावट वाला होता था। इसमें मिलावट का काम एमपी स्टेट सिविल सप्लाई और एमपी वेयर हाउस कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों की सांठ-गांठ से होता था। यह खुलासा राजधानी के बाढ़ प्रभावित क्

माया ने देखकर मौका मार दिया चौका

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स्वामी प्रसाद मौर्य और आर.के. चौधरी के पार्टी छोड़कर जाने से हताश और निराश मायावती के हाथ में भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर ने विवादित बयान देकर एक मौका थमा दिया। सियासत की अनुभवी खिलाड़ी मायावती कहां चूकने वाली थी। उन्होंने लगे हाथ लोक सभा में ही चौका जड़ दिया। तो उधर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित भाई शाह की यूपी की राह अब कठिन होती दिखाई दे रही है। यूपी में भाजपा पहले से ही गुटबाजी की शिकार हो चुकी  है। बयान के सियासी उबाल से लाल हुए कार्यकर्ताओं ने दयाशंकर सिंह पर बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई और  हजरतगंज थाने में कर दिया एफआईआर। तो वहीं प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव भी भला कहां चूकने वाले थे। उन्होंने भी कड़ी कार्रवाई कर मायावती के हाथ गठजोड़ का दूसरा लड्डू भी थमा दिया। उनके इस बयान से सपा और बसपा की पुरानी खटास दूर होती दिखाई दे रही है। रायपुर।  दयाशंकर पर एफआईआर- बसपा सुप्रीमो के खिलाफ असंसदीय बयान देने वाले प्रदेश भाजपा के नेता एवं पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया गया है। ये जानकारी मायावती के दिल्ली कार्यालय ने हमारी सरकार को दी। फ

पलायन को मजबूर छत्तीसगढ़ के मजदूर

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 सुराज की सरकार धुआंधार दावे किए जा रही है। दिल्ली से सम्मान पर सम्मान ढो कर ला रही है, मगर असलियत ये है कि मजदूरों को मजदूरी देने और मनरेगा के तहत काम देने में छत्तीसगढ़ सरकार फिसड्डी साबित हुई है। ये हम नहीं सरकारी आंकड़े कहते हैं। यही कारण है कि पिछले तीन सालों में 80 हजार से ज्यादा मजदूरों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया। मनरेगा के तहत 0.77 फीसदी मजदूरों को ही सरकार सौ दिनों का रोजगार दे सकी। जब कि मुख्यमंत्री ने डेढ सौ दिनों के रोजगार की घोषणा की थी। तो वहीं राज्य में मनरेगा की मजदूरी भी पूरे देश से कम है। यहां मजदूर को 159 रुपए दैनिक मजदूरी मिलती है। ऐसे में सवाल तो ये है कि ये सरकार ऐसा करके किसका भला कर रही है?   3 सालों में 80 हजार करने गए दूसरे राज्यों में काम, मजदूरी की दर और मजदूरों को काम देने में छत्तीसगढ़ सरकार फिसड्डी रायपुर। क्या है मनरेगा की सच्चाई राज्य की डॉ. रमन सिंह की सरकार मनरेगा के तहत डेढ़ सौ दिनों का रोजगार देने का दावा किया था, मगर 0.77 फीसदी लोगों को ही सौ दिनों का काम दे सकी। जब कि राज्य में 39 लाख 30 हजार 617 जॉब कार्डधारी हैं। 13 लाख 95 हज

मजदूरों के पलायन की असलियत

सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर,मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।  सुराज की सरकार के मुखिया को न गरीब की पुकार सुनाई देती है और न दिखता है रोता हुआ दुखिया। वे तो बस माइक पकड़े धुआंधार घोषणाओं पर घोषणाएं किए जा रहे हैं। ये कर देंगे... वो कर देंगे। छत्तीसगढ़ को यहां से कहां पहुंचा दिया, लेकिन असलियत इसके बिल्कुल उलट है। प्रदेश की असलियत ये है कि छत्तीसगढ़ गरीबी में अव्वल, मनरेगा के तहत सबसे कम मजदूरी देने और सबसे कम दिनों का रोजगार उपलब्ध करा पाने वाला राज्य है। यही कारण है कि पिछले तीन सालों में 80 हजार से ज्यादा मजदूरों ने यहां से पलायन किया। प्रदेश में सूखा पड़ा तो मुख्यमंत्री ने गरीबों को डेढ़ सौ दिनों का रोजगार मनरेगा के तहत देने की घोषणाएं कई बार की। इसके बाद भी सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि ये सरकार एक फीसदी लोगों को भी डेढ़ सौ दिनों का रोजगार मनरेगा के तहत नहीं दिलवा पाई। उसके अलावा अभी भी तमाम जिलों में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी के पैसे बकाया हैं। सबसे कम मजदूरी वो भी तीन-चार सालों तक न मिलना। इसके अलावा खेती की अच्छी भूमि पर रसूखदारों और उद्योगों का कब्जा

Front and Last page of Hamari Sarkar of 20th July 16

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तस्वीरों के नेपथ्य में

कटाक्ष- निखट्टू आज मुझे कोलकाता के प्रसिध्द कवि जयकुमार रुसवा की एक क्षणिका याद आ रही है कि- छिपकली...कीट पतंगों को खाती है, और फिर गांधी-नेहरू की तस्वीर के नीचे छिप जाती है। छत्तीसगढ़ वन संपदा सम्पन्न राज्य है। ऐसे में यहां ऐसी छिपकलियों का पाया जाना स्वभाविक है। सियासत में महापुरुषों की तस्वीरों के पीछे छिपने का ट्रेड काफी पुराना हो गया है। कोई गांधी के तो कोई लोहिया और कोई भीमराव अम्बेडकर की तस्वीरों का सहारा ले रहा है। तो वहीं कोई श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा के पीछे छिपता आ रहा है। इसके बाद सब के सब तस्वीर के पीछे छिपकर पक्के हो जा रहे हैं। कई बार तो छिपकलियों में एक ही शिकार के लिए टकराव की नौबत आ जाती है। तो दूसरी छिपकलियों की छीछालेदर तक हो जाती है। जनता का क्या है वो कभी जातिवाद और संप्रदायवाद के विवाद में भिड़ी हुई है। उसके इसी टकराव का फायदा उठाया जा रहा है। मशहूर शायर एज़ाज के लफ्ज़ों में कहेंं तो बस ह$कीकत इतनी सी है कि-किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है। आलम यही है कि जिम्मेदार घोषणाएं कर-कर के मर रहे हैं। जनता कभी मिलावट तो कभी अदावत तो कभी

मित्रों.... आज हमारी सरकार के पेज नंबर 7 की लीड को हमने कुछ यूं बना डाला। कैसा लगा आप अपनी बेबाक राय दीजिएगा। आपकी हरेक राय हमारे लिए बहुमूल्य है। हम उसका तहेदिल से इस्त$कबाल करते हैं।

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Front and last page of Hamari Sarkar of 19th July 16

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