बड़ा कौन सुप्रीम कोर्ट या राज्यमंत्री


 मथुरा वाले बयान से पलटे छगनलाल मूंदड़ा

महादेव घाट स्थित हनुमान मंदिर का सियासी महाभारत लगातार करवटें बदलता जा रहा है। पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का परिपालन करने पहुंची निगम के दस्ते को भीड़ ने रोका। उसके बाद राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त छत्तीसगढ़ औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष छगनलाल मूंदड़ा ने फोर्स को चुनौती दी कि वापस चले जाओ नहीं तो इसको भी मथुरा बना दिया जाएगा। तो वहीं मंगलवार की शाम को वे अपने उस बयान से साफ पल्टी मार गए। उसने जब हमारी सरकार की टीम ने दूरभाष पर सवाल किया कि  क्या आप रायपुर के रामवृक्ष बनने वाले हैं तो एकाएक श्री मूंदड़ा सकपका गए। इसके बाद वे अपने बयान से साफ पल्टी मार गए। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या किसी राज्य मंत्री को ये अधिकार है कि वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन को रोके? यदि वो ऐसा करता है तो क्या ये देश की सर्वोच्च अदालत की अवमानना नहीं माना जाएगा? और अगर ऐसा है तो फिर श्री मूंदड़ा के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने और माननीय अदालत की अवमानना करने का मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया? आखिर कौन बड़ा है सुप्रीम कोर्ट या फिर एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त व्यक्ति?
रायपुर।
क्या है पूरा मामला-
धर्मिक स्थलों को तोडऩे में अव्वल प्रदेश सरकार के जांबाज पुलिस वालों के हाथ पैर उस वक्त फूल गए, जब वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राजधानी के महादेव घाट स्थित हनुमान मंदिर को तोडऩे पहुंचे। ये मंदिर प्रदेश की विधान सभा के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के पारिवारिक ट्रस्ट का मंदिर बताया जाता है। श्री अग्रवाल ही उस ट्रस्ट के अध्यक्ष भी बताए जाते हैं जिसको हटाने का आदेश देश की सर्वोच्च अदालत ने दिया है।  अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों पर तड़ातड़ लाठियां भांजने वाली राजधानी की पुलिस की सारी मर्दानगी धरी की धरी रह गई। उसको बैरंग लौटना पड़ा। कार्रवाइयों के नाम पर खुद को बहादुर बताने वाले रायपुर कलेक्टर ओपी. चौधरी भी भीड़ देखकर हांफ गए।  अलबत्ता अल सुबह जाकर 19 दुकानें तोड़ कर कार्रवाई के नाम पर कागजी खानापूरी कर ली। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के नाम पर ये हाईवोल्टेज़ ड्रामा खेला गया?

सारे विरोधों के बावजूद भी हटा दिया गया मौली माता मंदिर-
राजधानी का ऐतिहासिक मौली माता मंदिर तेलीबांधा तालाब के सौंदर्यीकरण में बाधा बन रहा था। उसको बुध्दिजीवियों और पत्रकारों के तमाम विरोध के बावजूद भी आसानी से हटा दिया गया, क्योंकि उसको हटाने की राज्य शासन की मंशा थी। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर उस हनुमान मंदिर को हटाने में ऐसी कौन सी अड़चन आ गई कि प्रशासन के हाथ पैर ढीले हो गए?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की महज खानापूरी-
जानकारों ने बताया कि वहां जितनी भीड़ थी उससे दोगुनी फोर्स और तमाम अफसर वहां पहुंचे थे। ऐसे में सवाल तो ये भी उठना लाजिमी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के नाम पर महज खानापूरी की गई? आखिर क्यों इस  प्रशासन ने देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवमानना की?
12 सालों में हटाए गए 12 सौ धार्मिक स्थल-
जानकारों का कहना है कि अपने 12 साल के कार्यकाल में राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूरे प्रदेश से 12 सौ से ज्यादा धार्मिक स्थलों को हटाया गया। तो वहीं रायपुर में भी 80 से ज्यादा धार्मिक स्थलों को कहीं सड़क के चौड़ीकरण तो कहीं सौंदर्यीकरण के नाम पर हटाया गया।
कलेक्टर को सौंपा शिकायती पत्र-
आरटीआई कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने रायपुर के कलेक्टर ओपी चौधरी को एक शिकायती पत्र दिया है। उसमें श्री शुक्ला ने कलेक्टर से जानना चाहा है कि जिन लोगों  ने वहां शासकीय कार्य में बाधा डाली उनके खिलाफ मामला क्यों नहीं कायम किया गया? जब कि यही राजधानी की पुलिस है कि अगर किसी गरीब के अतिक्रमण का मामला होने पर तत्काल लाठी भांजना शुरू कर देती है?
सरकारी स्कूल में बने चर्च की चर्चा तक नहीं-
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बुध्दिजीवी ने तो यहां तक बताया कि राजधानी के एक सरकारी स्कूल में सामुदायिक भवन के नाम पर चर्च बना दिया जाता है। जब कि नक् शा सामुदायिक भवन का बोलकर नगर पालिक निगम से पास कराया जाता है। ऐसे में सवाल तो यही है कि आखिर ये शासन -व्यवस्था क्या सिर्फ गरीबों और असहायों पर ही कार्रवाई करना जानती है? रसूखदारों पर कार्रवाई के नाम पर इसके हाथ पैर क्यों फूल जाते हैं?
फोन पर क्या बोले छगनलाल -
राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष छगन लाल मूंदड़ा घटना के बाद से अपने बयान से साफ मुकर गए। उन्होंने हमारी सरकार को दूरभाष पर बताया कि  मैंने पुलिस को कहा कि अभी हाल ही में मथुरा में ऐसा ही मामला हुआ है जिसमें बीसियों लोगों की जान चली गई। यहां इतनी भीड़ मौजूद है ऐसे में इससे पहले यहां भी कोई बुरी घटना हो आप लोग यहां से चले जाइए? उन्होंने बार-बार वही बात दोहराई कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है।
धार्मिक स्थलों के मामले में भी भेदभाव-
 ऐसे में ये बात साफ समझ में आ जाती है कि मौली माता मंदिर और महादेव घाट के हनुमान मंदिर के धार्मिक स्थलों के साथ एक जैसी स्थिति नहीं थी। मौली माता मंदिर को बचाने के लिए सारे बुध्दिजीवी लोग खड़े थे तो वहीं हनुमान मंदिर को बचाने के लिए प्रदेश भाजपा का पूरा सियासी कुनबा खड़ा था।

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