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वर्तमान भारत एक कविता

वर्तमान भारत उल्लूक बैठते आमों पर , तोतों की बनती बात नहीं , यहाँ कौए मोटी खाते हैं, हंसों को मिलता भात नहीं । । करते हैं राज शृगाल यहाँ वनराज डरे से फिरते हैं , चूहों को हाथ लगाने कि है बिल्ली की औकात नहीं ॥ नेताजी की आजादी तो विधवाओं जैसी रोती है , निर्भीक हुई निश्चारीवृत्ति यहाँ लम्बी ताने सोती है । गांधीजी कल्पित रामराज्य अब दुर्लभ है पकवानों सा , आजाद खुदी से पूंछ रहा आजादी कैसे होती है॥ अनुशासन है बिक रहा यहाँ कौड़ी छदाम के दामों पर , मनमानी चलाती मंत्री की और रोक लगी है कामों पर । मिल जता है अब न्याय यहाँ कुछ राशन की दुकानों पर, मंदिर से ज्यादा भीड़ जमी है नेता के मकानों पर । । क़ुतुब मीनार की चोटी पलर अधिकार दिखाते हैं कौए , कोयल बेचारी को देखो कूड़े में मारी फिरती है । अब चना घास पर घोड़ों के हैं हाथ फिराते कुछ खच्चर , गदहे कपूत से कहते हैं मेरी तो अच्छी चलाती है ॥ हिंसा का दानव ठोंक ताल है खडा हुआ चौराहों पर , क़ानून देवता रोते हैं दुबके -दुबके दुकानों में । दुखियारी भारत माता की चीखों को सुनता कौन भला, न्यायालय बिरहा गाता है अंगुली दे दोनों कान