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Showing posts from 2009

दो चौके कपूत के

ग़ज़ल हो गई इसने तोड़ा सहारा ग़ज़ल हो गई । उसने तुमको दुलारा ग़ज़ल हो गई॥ प्रेमिका ने "कपूत" एक दिन प्यार से । हमको दो लात मारा ग़ज़ल हो गई ॥ लिख दिया तुमने चलो अच्छा हुआ हमको नकारा लिखा दिया तुमने । एक झटके में ही सीधे आवारा लिखा दिया तुमने ॥ हमारे आठ बच्चे और उनकी बीस खालायें । बताओ हमको फिर कैसे कुंवारा लिखा दिया तुमने ?

एक कता

गोंद में बैठ ऊधम मचाते रहे, भाई -भाई के जिनसे ही नाते रहे । सूई उनको लगी चीखता मैं रहा , मेरी गर्दन कटी मुस्कुराते रहे ॥

एक छंद

पानी में पड़े मगर न धुआं दे उबाल खाए , फेंकिये निकाल के तुरंत ऐसे चून को । रक्षा न गरीब की हो दुष्टों को न दंड मिले , आग में जला देन मित्र आप उस कानून को ॥ दोस्ती का हाथ तो बढ़ाये चले जा रहे हैं , देख नहीं पा रहे हैं उसके नाखून को । घाटियों की चीख पे उबाल खा न आँख चढ़े , मेरा है प्रणाम ऐसे नेताजी के खून को ॥

ग़ज़ल

जो कुछ हम सोच न पायें वही अक्सर निकलते हैं । यहाँ तो रहजन भी बनके अब रहबर निकलते हैं ॥ ये ऊंचे अम्बार कूड़े के न घबरा देख कर भाई । सफाई करके देखोगे की इसमे घर निकलते हैं ॥ चले थे पूजने जिनको मसीहा शान्ति का माना । उन्हीं की जेब से छूरे और खंज़र निकलते हैं ॥ न जाने किस ने तोड़े उनके शीशों के महल साहब । यहाँ तो टेंट से लूलों के अब पत्थर निकलते हैं।। तुम्हें जंगल में जाने की "कपूत" अब क्या जरूरत है। यहाँ तो दिन में ही सडकों पे अब अजगर निकलते हैं ॥

चौथेपन का दर्द

शिवसेन प्रमुख बालठाकरे को अब तो अपने ही परिवार में विरोध झेलना पडेगा । वह भी किसी और से नहीं बल्कि अपनी ही पुत्रवधू स्मिता ठाकरे से । अगर कांग्रेस की मानें तो शिसेना के कार्यकर्ताओं को बालठाकरे को छोड़ कर किसी अन्य पर भरोसा ही नहीं है । ऐसे में स्मिता ने सारे विकल्प खुले रखे हैं । अब तो देश का हर आदमी यही कहेगा कि अपना घर तो सम्हालता नहीं चले हैं महाराष्ट्र सम्हालने ? ठाकरे साहब हिन्दी भाषियों पर तो खूब हेकड़ी दिखाई अब ज़रा अपने बहू को सम्हाल कर दिखाओ । जो घर नहीं सम्हाल सकता वह राज्य क्या सम्हालेगा ।

चौथपन का दर्द

shivsena

अपने ही घर में फजीहत

पतन का एहसास

शहर के धनकुबेर दौलतराम धाकड़ चंद ने मुझे बताया कि मह्यं हेहर हिन्दी दैनिक के नाम से एक अखबार निकाल रहा हूँ। जिसके संपादक आप होंगे। सुनते ही जीवन में पहली बार मुझे अपनी विद्वत्तता पर गर्व होने लगा। मेरा मन कल्पना के आकाश में सूर्यकिरण विमानों की तरह कलाबाजियां खाने लगा। देखते ही देखते शहर के तमाम थेथर पत्रकारों के लम्बे चौडे व्यौरों वाले आवेदन आने लगे। जो कभी मेरे प्रणाम का उत्तर तक नहीं देते थे। वे साष्टांग दण्डवत करने लगे। पहली बैठक में मैंने पिछले दरवाजे से चयनित संवाददाताओं को बुलाया। बैठक में जैसे ही हिन्दी में समाचार लेखन की बात आई। तो कुछ पत्रकारों ने दी अंग्रेजी की दुहाई। कुछ ने पत्रकारिता की अलग भाषा की वकालत की। भाषा का मापदण्ड तय करते -करते अचानक बात इतनी बिगड़ी कि पता नहीं कब बाहर छिपाकर रखे दण्ड और पादुकाएं हॉल में चलने लगीं। पूरा हॉल महाराष्टÑ का विधान सभा भवन बन गया। इस आकस्मिक संकट में मेरी उपस्थित बुध्दि काम आई। सेठ जी को आलमारी में बंदकर, मैंने शौचालय में छिपकर अपनी जान बचाई। जब हॉल में पसर गया सन्नाटा तब मैंने शौचालय को कहा बॉय-बॉय टाटा। वहां का दृश्य रंगीन था, मेरे 25

पिस्तौल मांगता बचपन और हाशिए पर सदाचार

पहले बच्चे गुड़िया, गुड्डे व लकड़ी या मिट्टी के खिलौनों के लिए रोते थे। समाज में हिंसा, आत्महत्या, बलात्कार जैसी चीजें न के बराबर हुआ करती थीं। लोगों में अपनत्व की भावना रहती थी। गांव में एक छप्पर उठाने के लिए हर कोई कंधा लगा देता था। लोग अनुशासित ढंग से रहते थे। मसलन किसी को देखकर प्रणाम करना,जाते समय गांव के बाहर तक जाकर विदा करना आदि प्रथाएं प्रचलन में थीं। बदलते परिवेश और पाश्चात्य सभ्यता तथा चीनी खिलौनों ने बच्चों को इस कदर बिगाड़ दिया है कि अब का बच्चा बाप से पिस्तौल के लिए झगड़ा करता है। या यूं कहें कि लेकर ही दम लेता है। अश्लील वीडियोगेम्स का मायाजाल जो है सो अलग। परिणामत: लगभग दो दशक पहले हमारे पाठ्यक्रमों से श्यामनारायण पाण्डेय, महाकवि भूषण, रामधारी सिंह दिनकर की ओज की कविताओं को आउटडेटेड करार देकर विदा कर दिया गया। उनके बदले अल्लम गल्लम साहित्य बच्चों के सामने परोसा जा रहा है। ऐसे में बच्चों का बिगड़ना स्वाभाविक है। कहते हैं बच्चे देश का भविष्य हैं अब उनके बिगड़ने से हमारा वर्तमान खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। क्योंकि इस बढ़ती हिंसा, पढ़ाई के प्रति अरुचि यह इस पीढ़ी को कहां ले जाएगी,

सस्ती लोकप्रियता हासिल कारने का मंत्र

यह कोई नई बात नहीं है कि राज ठाकरे ने विधान सभा भवन में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान हिंदी में शपथ लेने वाले को अपने पालतू गुंडों से पिटवाया, बल्कि उसे पीटने वालों को सम्मानित भी करवाया गया। शिवसेना के महानायक बालासाहब ठाकरे ने भी उन्हीं का अंधा अनुकरण करते हुए सचिन को चुनौती तक दे डाली। ठीक तीन दशक पहले यही काम उत्तर प्रदेश में मायावती ने किया था। जब उन्होंने महात्मा गांधी को शैतान की औलाद कहकर विवाद खड़ा कर दिया था। उस समय भी इसकी खूब निंदा हुई थी। लेकिन दोनों ही घटनाओं के पीछे उद्देश्य एक ही है। सस्ती प्रसिध्दि पाना। बाद में माफी मांगकर मामले को रफादफा करना तो परंपरा बन गई है। किसी को सभा में जमकर पीट लेने के बाद गली में जाकर हाथ जोड़ लेना। इनकी फितरत बन गई है। यह सिर्फ घटिया राजनीति के कुछ टेलर हैं असली फिल्म तो अभी बाकी है। क्योंकि अब लोग यह भूलते जा रहे हैं। कि हम त्यागवादी भूमि पर निवास करते हैं। जहां हमारे आदर्श होते हैं हम जिनका अनुकरण करते हैं। तो कहीं न कहीं आने वाली पीढ़ी में कोई और राज ठाकरे से भी क्रूर व्यक्ति पैदा हो जाए। इसमें किंचित संदेह नहीं होना चाहिए। बड़े भाई हुल्लड़ मु

चौथे स्तंभ पर हावी राजनीति

बहके लोगों की बचकानी बातें मनसे द्वारा की जाने वाली पंजीकृत गुंडागर्दी पर शिवसेना ने भी न केवल अपनी मुहर लगा दी। बल्कि आईबीएन 7 के कार्यालय में पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। जिसका जीवंत प्रसारण भी दिखाया गया। इसके बाद शुरू हुआ थू-थूकरण का वही पुराना दौर। जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। क्योंकि बहके लोग ही ऐसी बचकानी बातें करते हैं। इसके लिए जिम्मेदार जितने वे मराठी मानुस हैं। उससे ज्यादा वहां रहने वाले हिंदी भाषी व भोजपुरी भाषी लोग हैं। क्योंकि इनका विरोध मर चुका है। या यूं कहें कि हिंदी भाषी समाज मर चुका है। तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कहां गए वे आग उगलने वाले पत्रकार? जिनकी लेखनी से निकलने वाले शरारों से बडे से बड़े राजनेता कांप जाया करते थे। इतने बड़े- बड़े लोगों के रहते इन तीन कौड़ी के नकारा नेताओं की ये मजाल? लेकिन यह सा बातें तो जिंदा लोग समझते हैं मुर्दों को आप क्या समझाएंगे? अगर समझते तो सारे हिंदी भाषी समाज के लोग उन लोगों को यह भी तो कह सकते थे। कि ठीक है यहां कोई हिंदी भाषी नहीं रहेगा। लेकिन दुनिया से मराठी मानुस तुम महाराष्ट्र में भुला लो। इसके अलावा हिंदी भाषियों

ग़ज़ल

परिंदा आस का देखो उड़ान छोड़ गया ! आख़िरी संग भी जैसे ढलान छोड़ गया !! जिन्हें समझे थे आकाए-आशियाना यहाँ ! कल वही शख्स ही अपना माकन छोड़ गया !! शेर तो आया था मरने के वास्ते लेकिन ! इस से पहले ही शिकारी मचान छोड़ गया !! अकब में आग का दरिया है सामने जंगल! किस इम्तहां में मेरा मेहरबान छोड़ गया !! "कपूत "उस काली हवेली में न जाने क्या था ! कि जो भी ठहरा वो आख़िर ईमान छोड़ गया !!

कृषि प्रधान देश (व्यंग्य )

उनके सब्र की उस दिन फूट गयी गगरी , जब दो रोटी की खातिर , बिकी बेचारी डंगरी , ब्याज की एवज में जवान बेटी को ले गया साहूकार ! तब किसी को नहीं सुनाई दी ममता की सिसकियाँ , मानवता का चीत्कार !दवावों के अभाव में माँ को आ रही खांसी ! कर्ज में डूबे बाप ने जवान बेटों के साथ लागाली फांसी ! जानवरों को उठा ले कसाई ! घर छोड़कर भाग गया छोटा भाई !! कमर झुकाए सत्तर साल की दादी ! अदालत के चक्कर लगा रही है बनकर फरियादी ! मैले टुकड़े में बंधी सुखी रोटियाँ और एक छोर पर बंधा कुछ पैसा ! घर में बंचा एक अदद भैंसा !! उस बूढी इतवारी बाई को वकील फटकारता है पेशकार गुर्राता है ! कोर्ट का चपरासी भी पचास रुपये के लिए मुंह बनाता है ! सत्तर सालों से चल रहा मुकदमा आज फिर हुआ पेश है ! और सात हजार किसानो की आत्महत्या के बाद प्रधानमंत्री जी पत्रकारवार्ता में कहते हैं की भारत एक कृषि प्रधान देश है! कृषि प्रधान देश है !!

हज़ल

वो फिर से हमें आजमाने लगी हैं ! पुरानी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी हैं !! कमर पकडे मेरी चहकती थी हरदम ! वही देखिये भुनभुनाने लगी हैं !! होटल के खाने की लालच में देखो ! वो तावे पे रोटी जलने लगी हैं !! उन्हें देखकर दिल उछलता था बांसों ! मगर खोपडी सनसनाने लगी हैं !! जो कोयल से कानों में रस घोलती थी ! दुनाली सी अब दनदनाने लगी हैं !! "कपूत " इस मोहब्बत से कर डालो तौबा ! वो गाडी सी अब हनहनाने लगी हैं !!

एक चौका कपूत का

वो सन चालीस का माडल भी मेकप में हूर बन बैठी ! वो काज़ल से बदलकर किस तरह सिन्दूर बन बैठी !! अजब चक्कर है इन सौंदर्या की चमकी दुकानों का ! कि नौ बच्चों की अम्मा करिश्मा कपूर बन बैठी !!

ग़ज़ल

लबों पे सिसकी हाथ उसका भर आया होगा ! उसने जब -जब कोई मक्कार बनाया होगा !! सूखती जा रही सेहत क्यों गंगा मैया की ! गन्दगी तुमने जरुर इसमें बहाया होगा !! दोस्त के कत्ल का इल्जाम बहन के सर पर ! उसने रिश्ते पे कोई दाग लगाया होगा !! बुलबुलें बदहवास उड़ रही हैं गुलशन में ! जरुर फिर कोई सैयाद इधर आया होगा !! जब भी मातम हमारे घर में मना होगा "कपूत" ! नाम भाई का मेरे सामने आया होगा !! अपनी बात * एक सड़क दुर्घटना में दाहिना पैर खोने के बाद भी आज आप के सामने हूँ ! यह शायद आपकी दुआओं का असर है !इस लिए पहली ग़ज़ल आपकी पेशेनज़र है ! आप ही बताएं गे की ऐ कैसी है !! आपकी राय जरुरी है इस गरीब रचनाकार के लिए धन्यवाद * सदर कपूत