कृषि प्रधान देश (व्यंग्य )

उनके सब्र की उस दिन फूट गयी गगरी ,
जब दो रोटी की खातिर ,
बिकी बेचारी डंगरी ,
ब्याज की एवज में जवान बेटी को
ले गया साहूकार !
तब किसी को नहीं सुनाई दी ममता की सिसकियाँ ,
मानवता का चीत्कार !दवावों के अभाव में माँ को आ रही खांसी !
कर्ज में डूबे बाप ने जवान बेटों के साथ लागाली फांसी !
जानवरों को उठा ले कसाई !
घर छोड़कर भाग गया छोटा भाई !!
कमर झुकाए सत्तर साल की दादी !
अदालत के चक्कर लगा रही है बनकर फरियादी !
मैले टुकड़े में बंधी सुखी रोटियाँ और एक छोर पर बंधा कुछ पैसा !
घर में बंचा एक अदद भैंसा !!
उस बूढी इतवारी बाई को वकील फटकारता है
पेशकार गुर्राता है ! कोर्ट का चपरासी भी पचास रुपये के लिए मुंह बनाता है !
सत्तर सालों से चल रहा मुकदमा आज फिर हुआ पेश है !
और सात हजार किसानो की आत्महत्या के बाद प्रधानमंत्री जी पत्रकारवार्ता में कहते हैं की भारत एक कृषि प्रधान देश है! कृषि प्रधान देश है !!

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