हज़ल

वो फिर से हमें आजमाने लगी हैं !
पुरानी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी हैं !!
कमर पकडे मेरी चहकती थी हरदम !
वही देखिये भुनभुनाने लगी हैं !!
होटल के खाने की लालच में देखो !
वो तावे पे रोटी जलने लगी हैं !!
उन्हें देखकर दिल उछलता था बांसों !
मगर खोपडी सनसनाने लगी हैं !!
जो कोयल से कानों में रस घोलती थी !
दुनाली सी अब दनदनाने लगी हैं !!
"कपूत " इस मोहब्बत से कर डालो तौबा !
वो गाडी सी अब हनहनाने लगी हैं !!


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