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Showing posts from February, 2013

सबसे बड़ा मजाक

इससे बड़ा मजाक मैंने आज तक नहीं देखा कि  देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी के रखवाले ध्वनिविस्तारक यन्त्र लगाकर झूठ बोलते हैं।और तथाकथित बुद्धिजीवियों का वर्ग उसको गौर से सुनता है। एक और बुद्धिजीवियों का वर्ग  उसको गुनता है।बहस और मुबाहिसे तो होते हैं। मगर कोई एकन्नी का काम नहीं करता। घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं मगर धरातल पर काम की बात जैसे ही आती है इनको सांप सूंघ जाता है। जब काम की जगह सिर्फ बहस हो और वादे करके उसे पूरे न करने के मजबूत इरादे हों तो ऐसे नाकारा तंत्र को रखकर क्या अचार डालेंगे? देश और देशवासियों की भलाई इसी में है कि ऐसे नक्कारापंथियों को सिरे से नकार दें।वो चाहे कोई भी हो अगर काम नहीं कर रहां  तो उसे वेतन और भत्ते लेने का कोई अधिकार नहीं बनाता। अजीब बात है बेईमानी की भी हद पार कर गए हैं ये लोग और शर्म नामकी तो चीज ही नहीं बची। यहाँ करोडपति क्लर्क और लखपती चपरासी से अलावा अरबपति अफसरों की लम्बी जमात है। आजादी के बाद से इन्हीं लोगों का विकास हुआ है, बाकी सब हाशिये पर हैं। इस लिए ऐसे लोगों को नैतिकता के आधार पर देश में रहने का अधिकार तभी दिया जाए जब इनकी पूरी

दैनिक का पत्रकार बताकर वसूली

पत्रकारिता किस दौर से गुजर रही है इसका उदहारण आज एक घटना ने दिखाया। एक पत्रकार खुद को किसी ऐसे दैनिक का पत्रकार बताकर वसूली कर रहा है जो काफी पहले यहाँ से बंद हो चुका है। इसकी शिकायत एक पीडिता ने की .उस भद्र महिला को ये शख्स लगातार प्रताड़ित करता आ रहा है। पैसे नहीं देने पर किसी दूसरे अखबार में उसके खिलाफ मनगढ़ंत  खबरें छपवाता है। अरे ये तो कुछ भी नहीं तकरीबन तीन साल पहले जब मैं प्रोविंशियल  डेस्क पर काम करता था तो मेरे ही समाचार पत्र के एक हाकर  यानि रिपोर्टर ने मेरे ही भैया से उनकी  जमीन  को आदिवासी की बताकर खबर छपने की धमकी देकर 5 हजार रुपये की मांग की। जब उन्होंने पूंछा की किस अखबार से हो तो उसने उसी अखबार का नाम बताया जिमें मैं प्रोविंशियल डेस्क पर काम करता था। तो मेरे भैया का भी साहस बढ़ गया उन्होंने उसे बताया की वहाँ मेरा भाई काम करता है। आश्चर्य, नाम बताने पर उसने एक भद्दी सी  गली दी और कहा की मैं उसको देख लूंगा। इसकी शिकायत जब एडिटोरियल डिपार्टमेंट में की गई तो वहाँ से कुछ भी नहीं किया गया। बाद में मैंने उसके बॉस को व्यक्तिगत रूप से अपना परिचय दिलाया तो वो रुक। सवाल तो

बयानवीरों की संसद में तूती

हैदराबाद विस्फोट के बाद अब बयानवीरों की संसद में तूती  बोल रही है। हर कोई देश की जनता की हमदर्दी बटोरने के लिए कड़ी दिखा रहा है। गृहमंत्री को दोषी बताया जा रहा है और वो हैं भी।सवाल ये है की जब भी सांसदों और अधिकारीयों के वेतन और भत्तों को बढाने की बात आती है तो वो तो इनको अमेरिका और ब्रिटेन के बराबर चाहिए? मगर जैसे ही जिम्मेदारी की बात आती है तो उसको लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं दिखता। सीधी से बात ये है की देश के खजाने से अगर पैसे लेते हो तो इमानदारी से ड्यूटी भी करों वर्ना घर ही रहो। अब बहुत  हो चुकी ये बयानबाजी की नौटंकी। जनता को अब धरातल पर दिखने वाला काम चाहिए संसद में कोरी बकवास नहीं। जिनको संसद का पिछला सत्र याद होगा इन्हीं लोगों ने संसद में लोकपाल को लेकर कहा था की कानून बनाना संसद का काम है किसी आम आदमी को ये हक नहीं दिया जा सकता। जैसे ही कोई इनके ऊपर प्रहार करता है तो सभी दल एक होकर एक सुर में बोलने लगते हैं। आज संसद में कोई भी ये नहीं बोल कि मैं इस हमले में प्रशासन की विफलता की जिम्मेदारी लेता हूँ? अगर कोई देश की सुरक्षा और आम अवाम की सुरक्षा का जिम्मा नहीं ले स

ये दोगली नीति आखिर कब तक?

जब तक जियो सुख से जियो, कर्जा लेकर खूब घी पियो की राजनीति कर रही केंद्र सरका। इनको सिर्फ चिन्ता है पूंजीपतियों की, इनको चिंता है अपने वोट बैंक की, इनको चिंता है अपने बच्चों के भविष्य की, मगर इनको देश पर बढ़ रहे विश्व बैंक के कर्ज की परवाह कतई  नहीं है। देश के उन कुपोषित बच्चों, बीमार बुजुर्गों, दवाओं के लिए करह रहे गरीबों और असहायों, कचरा चुन कर परिवार का भरण-पोषण करने वाले मासूम बच्चों जिनकी जिन्दगी शुरू होने के पहले ही ढलनी  शुरू हो जाती है।जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए था वे गरीबी के कारण ढाबों पर बर्तन धो रहे हैं। किसान आत्म हत्या को मजबूर हो रहे हैं। मगर इन सब के बाद भी देश की सरकार बड़ी बेहयाई से दांत निपोर कर कहती है की हम विकास कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये है की आखिर इस देश के लिए क्या जरूरी है - जनता को रोटी या फिर वीवीआईपी हेलीकाप्टर ?चीन और पाकिस्तान से खुद को घिरने से बचाना या फिर कोरी बयानबाजी? समझ में नहीं आता कि आखिर चीन के खिलाफ बोलने में इनकी जुबान हालक ,में क्यों अंटक जाती है? उद्द्योगपतियों को सुविधाओं के अम्बारों के नीचे ढँकने  वाली सरकार का समुद्

भैया आप इतने चुप क्यों रहते हो?

पहले किसी समाचार की गुणवत्ता  देखने के लिए उसको सह संपादक  के बाद संपादक की पैनी नज़रों से गुजरना पड़ता था। जहां उसके गूढ़ अर्थों और उसके  प्रभाव के साथ ही साथ उसकी कसावट और वर्तनी की कड़ी परख होती थी। वहीं  उस संवाददाता की अग्नि परीक्षा होती थी।मगर समय के साथ ही साथ मीडिया में परिवर्तन हुआ। आज किसी समाचार को संपादक से ज्यादा प्रबंधन इस मापदंड से मापता है की ये किसके खिलाफ लिखी गई है और इससे कितना अर्थ तिजोरी में आ सकता है। वहीं जानकारों की अगर मानें तो आप कुछ भी लिखिए मगर उससे आय होनी चाहिए। और हाँ , किसी लेखक या फिर स्वतंत्र पत्रकार को एकन्नी भी देना न पड़े। कुल मिलकर कलम पहले मुग़ल शासकों के इशारे पर चला करती थी और आज कुछ मुट्ठी भर लोगों के इशारे पर। पहले तो बड़े -बुजुर्ग लक्ष्मी को सरस्वती की वैरिणी बताते थे मगर आजकल तो दोनों की गाढ़ी  छनती है। और छने भी क्यों न जब कलम को तिजोरी भरने का एक कारगर हथियार बना लिया गया है। पहले पत्रकार कलम का सिपाही हुआ करता था आज महज दरवान बनकर रह गया है। दुनिया की समस्याओं से दिन रात लड़ने वाला पत्रकार आज तक  मजीठिया वेतन बोर्ड की राह देख रहा ह

रेल कैसे ठेल रहा है रेल मंत्रालय

रेल कैसे ठेल रहा है रेल मंत्रालय इसका नजारा आज रायपुर रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला, जब महाकुम्भ स्पेशल पूरे 7 घंटे लेट आयी। एक घंटे रुकी और फिर रवाना हो गई। श्रद्धालुओं का जो हश्र यहाँ के प्लेटफार्म पर हुआ  उसे देखने के लिए न तो रेलवे विभाग के  पास समय था और न ही रेल अधिकारियों के। सब अपनी-अपनी में मगन दिखे। मनमाना किराया चुकाने के बाद भी आम आदमी की सुननेवाला वहां कोई भी नहीं नजर आया। देख कर लग रहा था की आम आदमी यहाँ मुसीबत मोल खरीद रहा है। जो रेलवे में सुविधाओं के नाम पर ढोल-नगाड़े पीटते हैं उनको यहाँ के स्टेशन का दौरा एक बार जरूर करना चाहिए। 

मीडिया मोर्चा पटना में प्रकाशित मेरे एक पोस्ट

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मीडियामोरचा ____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार मुखपृष्ठ हमारे बारे में/ सम्पर्क साहित्य खबरें मुद्दा पत्रकार असंगठित मजदूरों से भी गये बीते! 2013.02.17 कभी सुना है कि प्रेस क्लब की कोई टीम श्रमायुक्त अथवा श्रम मंत्री से मिला हो ? रमेश प्रताप सिंह / जो कार पर है वो पत्रकार नहीं हैं और जो पत्रकार है उसके पास कार नहीं हैं। कलमकार तो कबका बेकार हो चला! इन्टरनेट के आने के बाद से इस क्षेत्र में चोरी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि संकट पैदा हो गया! पहले अखबारों में लिखने वालों को मानदेय मिलता था मगर अब तो मुफ्तखोरी हावी हो गई है! बड़े- बड़े तथाकथित सम्पादक कलमकारों की इस कमाई को भी बंद कर चुके हैं! लिखिए आप खूब मगर जैसे कुछ देने की बात आती है इनकी नानी मर जाती है! पत्रकारों को भी वेतन देने के नाम पर जो मजाक चल रहा है वो भी किसी से छिपा नहीं है। मगर ये पत्रकार नामक जीव बिलकुल असंगठित मजदूरों से भी गया बीता हो चला है! बड़े-बड़े प्रेस क्लब भी अखबार मालिकों से पंगा लेने से डरते हैं! चार साल रायपुर आये हो

लोकतंत्र का दुर्भाग्य

देश के शहीदों की आत्मा जहां भी होगी आज  नेताओं के कर्मों को देख कर क्या सोचती होगी हमारे विद्वान् नेताओं ने ये भी नहीं सोचा। जब मिशन कमीशन  देश के रक्षा विभाग तक में आ धमाका तो फिर अब इस देश की रक्षा कौन करेगा सबसे बड़ा सवाल है। यही काम अगर कोई आम आदमीं करता तो उसका जीना मुहाल हो जाता।इतने कानून की धाराएं उसपर लाद  दी जातीं कि उसकी जिन्दगी नर्क बन जाती। मगर इनका कुछ भी होनेवाला नहीं है। अब नया पेंच ये है की इटली की अदालत ने इनको साक्ष्य देने से मना  कर दिया। बस हो गई जांच और मिल चुकी सजा।  लाख  टके का सवाल तो ये है की क्या ये देश द्रोह नहीं? अगर है तो फिर सरकार इसपर चुप क्यों रही? क्या इसके लिए सरकार भी जिम्मेदार है? अगर हाँ तो महामहिम उच्चतम न्यायालय उसके खिलाफ क्या कार्यवाही कर रहा है यह देखने की बात होगी। सांसदों के चुनावी योग्यता में दर्शाया गया है की प्रत्यासी पागल- कोढी  दिवालिया या फिर सजा आफती न हो। मगर यहाँ तो सौ -सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली वाली बात है। तमाम ऐसे सांसद देश की संसद में मौजूद हैं जिनपर अदालतों में कई-कई मामले लंबित हैं। शायद यही इस देश के लोकतंत्र

Page no- 6 of Jandakhal- Feb-7

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Editorial Which published in Jandakhal Hindi evening daily's todays edition

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वाह रे कृषि प्रधानदेश !

वाह रे कृषि प्रधानदेश ! जिन किसानों के बैंक का कर्ज माफ़ करने की बात कहकर केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी उसका आलम ये हैं की 35 लाख से भी ज्यादा किसानों को उसका लाभ मिला ही नहीं। यानि हो गई बन्दर बाँट ! इससे एक बात तो साफ़ हो गई की ये सरकार गरीबों और किसानों की बजे पूंजीपतियों की हमदर्द है। उसे माल्या और अम्बानी की चिंता तो है मगर देश के उस आम आदमीं की नहीं जिसने उसको सत्ता सौंपी है। ये सिर्फ एक ही काम ईमानदारी से कर पाए हैं वो है घोटाले और अपना वेतन भत्ता बढ़ने का काम। इन्होंने सांसदों, मंत्रियों और अन्य कर्मचारियों का तो वेतन मनमाने ढंग से बाधा दिया मगर आम आदमी को महंगाई का तोहफा देते आ रहे है। ऐसे में देश की जनता की और से अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जी से निवेदन है की महामहिम जो बढ़ाना हो एक बार ही बाधा डालिए किसने रोक है? ये रोज-रोज  अठन्नी-चवन्नी और दस रुपये बढ़ने का तमाशा क्यों लगा रखे हो! इससे भी नहीं होता तो देश ही उद्द्योगपतियों को दे दो न? आखिर भारत कांग्रेस की प्रोपेरिटी जो समझ बैठे हैं आप- धन्य हैं माई -बाप।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का एक राज

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मित्रों आज आपसे एक राज शेयर करने जा रहा हूँ। बात उन दिनों की है जब मैं कोलकाता से हरिभूमि हिंदी दैनिक में नया-नया आया था। एक दिन मेरा पता पूंछते-पूंछते वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित अवध नारायण तिवारी और आजाद हिन्द फ़ौज के कंपनी कमांडर सरदार दिलीप सिंह बरार जी आये। मैंने उनका समाचार भी हरिभूमि के लिए लिखा। इसके बाद मिलना-जुलना जारी रहा। मैं उनको आदर से बाबूजी कहा करता था। एक दिन उन्होंने मुझको बताया की बेटा फैजाबाद वाले गुमनामीं बाबा ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस थे। उन्होंने यह भी बताया की इनको देखने के बाद उनकी आँखों में एक विशेष चमक दिखी थी जो यह साबित करने के लिए काफी थी। उन्होंने यह भी बताया कि  वे बरार जी को पहिचान भी गए थे। अब ये लोग उनको खोजने में 27 वर्ष जाया कर चुके हैं अभी और पता नहीं कितना वक़्त लगायेंगे।

Netaji Subhash Chandra Bose ka raj

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मित्रों आज आपसे एक राज शेयर करने जा रहा हूँ। बात उन दिनों की है जब मैं कोलकाता से हरिभूमि हिंदी दैनिक में नया-नया आया था। एक दिन मेरा पता पूंछते-पूंछते वरिष्ठ अधिवक्ता पंडित अवध नारायण तिवारी और आजाद हिन्द फ़ौज के कंपनी कमांडर सरदार दिलीप सिंह बरार जी आये। मैंने उनका समाचार भी हरिभूमि के लिए लिखा। इसके बाद मिलना-जुलना जारी रहा। मैं उनको आदर से बाबूजी कहा करता था। एक दिन उन्होंने मुझको बताया की बेटा फैजाबाद वाले गुमनामीं बाबा ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस थे। उन्होंने यह भी बताया की इनको देखने के बाद उनकी आँखों में एक विशेष चमक दिखी थी जो यह साबित करने के लिए काफी थी। उन्होंने यह भी बताया कि  वे बरार जी को पहिचान भी गए थे। अब ये लोग उनको खोजने में 27 वर्ष जाया कर चुके हैं अभी और पता नहीं कितना वक़्त लगायेंगे।