सबसे बड़ा मजाक

इससे बड़ा मजाक मैंने आज तक नहीं देखा कि  देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी के रखवाले ध्वनिविस्तारक यन्त्र लगाकर झूठ बोलते हैं।और तथाकथित बुद्धिजीवियों का वर्ग उसको गौर से सुनता है। एक और बुद्धिजीवियों का वर्ग  उसको गुनता है।बहस और मुबाहिसे तो होते हैं। मगर कोई एकन्नी का काम नहीं करता। घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं मगर धरातल पर काम की बात जैसे ही आती है इनको सांप सूंघ जाता है। जब काम की जगह सिर्फ बहस हो और वादे करके उसे पूरे न करने के मजबूत इरादे हों तो ऐसे नाकारा तंत्र को रखकर क्या अचार डालेंगे?
देश और देशवासियों की भलाई इसी में है कि ऐसे नक्कारापंथियों को सिरे से नकार दें।वो चाहे कोई भी हो अगर काम नहीं कर रहां  तो उसे वेतन और भत्ते लेने का कोई अधिकार नहीं बनाता। अजीब बात है बेईमानी की भी हद पार कर गए हैं ये लोग और शर्म नामकी तो चीज ही नहीं बची। यहाँ करोडपति क्लर्क और लखपती चपरासी से अलावा अरबपति अफसरों की लम्बी जमात है। आजादी के बाद से इन्हीं लोगों का विकास हुआ है, बाकी सब हाशिये पर हैं। इस लिए ऐसे लोगों को नैतिकता के आधार पर देश में रहने का अधिकार तभी दिया जाए जब इनकी पूरी अवैध संपत्ति को राजसात कर लिया जाए।

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