लोकतंत्र का दुर्भाग्य

देश के शहीदों की आत्मा जहां भी होगी आज  नेताओं के कर्मों को देख कर क्या सोचती होगी हमारे विद्वान् नेताओं ने ये भी नहीं सोचा। जब मिशन कमीशन  देश के रक्षा विभाग तक में आ धमाका तो फिर अब इस देश की रक्षा कौन करेगा सबसे बड़ा सवाल है। यही काम अगर कोई आम आदमीं करता तो उसका जीना मुहाल हो जाता।इतने कानून की धाराएं उसपर लाद  दी जातीं कि उसकी जिन्दगी नर्क बन जाती। मगर इनका कुछ भी होनेवाला नहीं है। अब नया पेंच ये है की इटली की अदालत ने इनको साक्ष्य देने से मना  कर दिया। बस हो गई जांच और मिल चुकी सजा।
 लाख  टके का सवाल तो ये है की क्या ये देश द्रोह नहीं? अगर है तो फिर सरकार इसपर चुप क्यों रही? क्या इसके लिए सरकार भी जिम्मेदार है? अगर हाँ तो महामहिम उच्चतम न्यायालय उसके खिलाफ क्या कार्यवाही कर रहा है यह देखने की बात होगी। सांसदों के चुनावी योग्यता में दर्शाया गया है की प्रत्यासी पागल- कोढी  दिवालिया या फिर सजा आफती न हो। मगर यहाँ तो सौ -सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली वाली बात है। तमाम ऐसे सांसद देश की संसद में मौजूद हैं जिनपर अदालतों में कई-कई मामले लंबित हैं। शायद यही इस देश के लोकतंत्र का दुर्भाग्य है।

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