वाह रे कृषि प्रधानदेश !

वाह रे कृषि प्रधानदेश ! जिन किसानों के बैंक का कर्ज माफ़ करने की बात कहकर केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी उसका आलम ये हैं की 35 लाख से भी ज्यादा किसानों को उसका लाभ मिला ही नहीं। यानि हो गई बन्दर बाँट ! इससे एक बात तो साफ़ हो गई की ये सरकार गरीबों और किसानों की बजे पूंजीपतियों की हमदर्द है। उसे माल्या और अम्बानी की चिंता तो है मगर देश के उस आम आदमीं की नहीं जिसने उसको सत्ता सौंपी है। ये सिर्फ एक ही काम ईमानदारी से कर पाए हैं वो है घोटाले और अपना वेतन भत्ता बढ़ने का काम। इन्होंने सांसदों, मंत्रियों और अन्य कर्मचारियों का तो वेतन मनमाने ढंग से बाधा दिया मगर आम आदमी को महंगाई का तोहफा देते आ रहे है। ऐसे में देश की जनता की और से अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जी से निवेदन है की महामहिम जो बढ़ाना हो एक बार ही बाधा डालिए किसने रोक है? ये रोज-रोज  अठन्नी-चवन्नी और दस रुपये बढ़ने का तमाशा क्यों लगा रखे हो! इससे भी नहीं होता तो देश ही उद्द्योगपतियों को दे दो न? आखिर भारत कांग्रेस की प्रोपेरिटी जो समझ बैठे हैं आप- धन्य हैं माई -बाप।

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