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Showing posts from 2012

चरित्र खोजने निकले हैं लोग

अजीब पागल लोग हैं ये ! आज चश्मा लगाकर चरित्र खोजने निकले हैं। इनको लगता है की देश के कानून की तरह इसको भी खरीद लेंगे मगर अफ़सोस की वे आश्रम अब बंद हो चूका हैं जहां इनकी खैरात बंटती थी। बाकी की रही सही कसर तो सरकार ने पहले ही पूरी कर दी थी। अब अचानक जरूरत पडी तो इनको याद आया चरित्र ? अरे भाई साहब जो चीज अब उँगलियों पर गिनने भर के लोगों के पास बची है उसको इतनी बड़ी मात्रा में कहाँ से लाओगे? और करो शिक्षा में परिवर्तन? और पढ़ो पश्चिम का इतिहास? अभिज्ञान शाकुंतलम जैसे नाटकों को आज विश्व की तमाम भाषाओँ में अनुवादित किया गया और दुर्भाग्य का विषय है की उसको भी इन तथाकथित विद्द्वानों ने आउट डेटेड करार देकर कोर्स से हटा दिया। रामचरित मानस की चौपाइयां भी गायब कर दी गईं। लो अब भोगो-- वरना उसमें तो स्पष्ट रूप से लिखा है कि -- अनुज बधू भगिनी सूत नारी,सठ सुनु कन्या सैम ये चारी। इनहि कुदृष्टि बिलोकी जोई, ताहि बढे कछु पाप न होई।। अर्थात - छोटे भाई की पत्नी छोटी बहन पुत्र की स्त्री ये तीनों ही अपनी बेटी के सामान होती हैं जो भी इन पर कुदृष्टि डालता है उसका वध करने से कोई पाप नहीं लगता है।

आत्मीयमित्रों- अपना आशीष मेरे यश को जरूर दीजिएगा।

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 आत्मीय मित्रों व सुहृदों , मेरी भतीजी रूचि को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और चार महीने बाद हमारे नाती की फोटो हम तक पहुँची है वो आप सभी मित्रों से शेयर कर रहा हूँ अपना आशीष मेरे यश को जरूर दीजिएगा।

एक क़ता

एक क़ता देखो तो मुझे खुद से कैसे बाँट रहा है। खाता है नमक फिर भी लहू चाट रहा है।।                   जिसको उठाके बीहड़ों से घर में दी जगह।                   वो पालतू कुत्ता ही मुझे काट रहा है।। --- कपूत प्रतापगढ़ी

तेजी से दौड़ो या फिर सिंहासन छोडो

एक ओर  में  सामूहिक अनाचार की घटनाएं, राष्ट्रपति भवन जा रहे छात्रों और छात्रों पर लाठियां चटकाती पुलिस, न्याय माँगने की ये सजा किसने मुक़र्रर की ? खुद को जनता का सेवक बतानेवाले नेता और तथाकथित मानवाधिकारवादी नदारद? क्या ये मंज़र देखकर रायसीना हिल्स का सीना नहीं हिला? अपनी नाकामी और हरामखोरी को छिपाने के लिए तंत्र लाठियां लेकर लोक पर पिल पडा ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का यह शर्मनाक चेहरा देश की जनता के साथ मैंने भी देखा। गजब के लोक तंत्र में जीते हैं हम? जहां आलसी और कामचोर बहानेबाजों की चलती है? एक झूठ को सच साबित करने के लिए पवित्र गीता और कुरान  जैसे  ग्रंथों की कसमें खिलाई जाती हैं? अरे बहुत हो गया कहाँ है वो आंबेडकर द्वारा अनुवादित किया क़ानून ? उसे जितनी जल्दी बदल सकते हो बदल डालो। वरना फिर सिंघासन छोडो अब देश को बुद्धों की नहीं युवाओं की जरूरत है। जय जवान जय किसान जय विज्ञान।

20 दिसंबर के जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी संपादकीय

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पत्नी से ऐंठा तो अमरूद के पेड़ पर जा बैठा

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पेड़ पर रहने वाले चोलापुर ब्लाक के रामगांव के संजय का कहना है, 'मैं अपनी पत्नी तारा से बहुत प्यार करता था। उसे मुंबई भी ले गया। पर मेरी पत्नी तारा बेवफा निकली। उसने वहां पड़ोस के एक लड़के से चक्कर चला लिया। उसको मैंने एक दिन उस लड़के के साथ उसकी बांहों में देख लिया।'घटना 2012 मार्च की है तब से लेकर आज तक संजय उसी अमरूद के पेड़ पर ही बैठा है प्लीज़ संजय की मदद कीजिये मानवता का यही तकाजा है शायद उसका मन बदल जाए और वो पेड़ से नीचे उतर आये ?

शिक्षाकर्मी की बेशर्मीं

 मित्रों ! छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मी छठवें वेतनमान की मांग लेकर आन्दोलन कर रहे हैं। राज्य का शिक्षा विभाग भी ऊंघ रहा है।मगर एक कड़वी सच्चाई ये है की ये शिक्षाकर्मी आखिर पढ़ते कितना हैं? कक्षा पांच के बच्चे से पूंछ लीजिये तो ढंग से हिंदी ,में वो  अपना नाम तक नहीं लिखा पाता। बच्चे मारपीट करते हैं और शिक्षाकर्मी घर का हालचाल बतियाते आपको अक्सर मिल जायेंगे। वहीं दुसरे हैं मास्टर साहब जो स्कूल का मुंह विशेष अवसरों पर ही देखने जाते हैं।देश में शिक्षा का क्या हाल है ये बताने की जरूरत नहीं है। जिस अविभावक की क्षमता अपने बच्चो को  पढ़ा पाने  की नहीं है वही भगवन भरोसे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजता है। अजीब बात है, बिना काम के मजदूरी? और सही भी है जब देश का नेता संसद में हंगामा करके पूरा वेतन और भत्ता भुनता है। तो फिर इनको क्यों न दिया जाये। लाख टके का सवाल है कि  वो सरकारी विभाग बताओ जहां ईमानदारी से काम होता हो? शायद नहीं मिलेगा। अरे जब लूट ही मची है तो इनको क्यों रोक रहे हो  भाई? लूटने दो इनको भी?

चीन के चश्में का असर

मैं चीन के चश्में का असर देख रहा हूँ। हर ज़ेर को भी पूरा ज़बर देख रहा हूँ।। उल्टा लगाया तो हुआ कुछ ऐसा करिश्मा। कुत्ते को भी अब शेर बाबर देख रहा हूँ।।

क्या हमारे राजनेताओं की यही नैतिकता है

क्या हमारे राजनेताओं की यही नैतिकता है कि कोई  कुछ हरे पत्ते दिखाकर इनका ईमान खरीद ले? हद हो गई बिकाऊपन की,समझ में नहीं आता क्या कहा जाए इनको? नैतिकता - आदर्श और सदाचार जैसे शब्द तो इनके शब्दकोष से पता नहीं कब के गायब हो चुके हैं। देश की सबसे बड़ी पंचायत में  जब विपक्ष इस मुद्दे पर चिल्ला रहा था। तो वहीं एक खबर और आती है कानपुर से जहां लगभग  सवा लाख से भी ज्यादा लोगों ने राष्ट्रगान गाया। खबर पढ़कर दिल भर आया की देश की जनता और जनप्रतिनिधियों में क्या अंतर है।एक निःस्वार्थ भाव से  राष्ट्रगान गाने सर्दी की सुबह ग्रीनपार्क स्टेडियम की जानिब दौड़ जाता है। दूसरा उसी देश को विदेशियों के हाथों बेंचने की जुगत भिड़ता है। तब  मुझे अपना ही एक शेर याद आता  है कि -- कपूत उस काली हवेली में न जाने क्या था! कि जो भी ठहरा वो आखिर ईमान छोड़ गया !!

एक कड़वा सच

ये सच है कि जिसका जन्म गलत होता है उसके कर्म भी गलत ही होते हैं। देश की आजादी के लिए बनी कांग्रेस को नेहरू जी ने जबरदस्ती गांधी जी के कहने के बावजूद भी ज़िंदा रखा।  आजादी के सम्बन्ध में सरदार दिलीप सिंह बरार जी ने मुझसे एक बार  बताया था की देश की आजादी का सच क्या था? इनको उस शर्त पर आजादी दी गई थी की तुम मुझे नेता जी सुभाष चन्द्र बोसे दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।और इन लोगों ने वो समझौता भी किया था । चीन ने आठ हजार किलोमीटर हमारी जमीन हथिया ली कोई कुछ नहीं बोलता, क्योंकि वहाँ से एक पैसा भी मिलनेवाला नहीं है। अंग्रेजों ने इनको नेताजी की एवज में आजादी दी थी। और इन लोगों ने उसको डॉलर्स के लिए बेंच दी। आखिर बिना काम किये पैसा कब तक मिलेगा? देश की सबसे बड़ी संस्था में गंवारों से भी बदतर अंदाज में चिल्लाने वाले खुद को उच्च शिक्षित बताते हैं इनके पास रंगीन कागज़ तो हो सकते हैं मगर ज्ञान और अनुभव नाम की चीज नहीं है। लाख टके  का सवाल ये है की क्या ये देश के साथ गद्दारी नहीं है?

अमर शहीदों का संसद से सवाल

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एक और देश की संसद में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को लेकर महाबहस जारी हैं तो दूसरी और 30 जुलाई  1857 के संग्राम में  अमृतसर के पास  अजनाला के कालियां वाला खूह में शहीद हुए 282 शहीदों की अस्थियाँ मिली हैं यानि शहीदों से भी ये अन्याय देखा नहीं गया और उनकी अस्थियाँ बगावत करके बाहर निकल आयीं ! आज देश की संसद से लगा की वे अस्थियाँ चीख-चीख कर पूंछ रही हैं ये सवाल कि ऐसा तुम क्यों कर रहे हो मेरे लाल ? मगर इनके सर पर तो अमेरिकी डालरों का भूत सवार है। लिहाजा इनको उन अमर शहीदों की आत्मा की आवाज सुने नहीं दे रही। दोस्तों यही इस देश का दुर्भाग्य है।  मगर संतोष है की चलो  155 वर्ष के बाद हमारे इन जांबाज पुरखों को  'आत्मिक आजादी' मिली है। मंगलवार को इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ व उसके साथियों ने इस खूह [एक बड़ा कुआं] के एक कोने की खुदाई की। थोड़ी खुदाई के दौरान ही शहीदों की अस्थियां मिल गई। कोछड़ के अनुसार खूह काफी गहरा है। यह खूह मुगलई ईटों से बना है। इसकी दीवारें दो से तीन फुट चौड़ी हैं।

हमारी भारत माता की जान बचाओ

दोस्तों कल रात मैंने एक सपना देखा एक बहुत बड़े बाग़ में एक ज़िंदा गाय को गिद्ध और  कौए नोंच रहे हैं। बाबर शेर कोने में बैठे कुछ सोच रहे हैं। गाय जोर-जोर से रांभ रही हैं, कोयल रो रही है चील चिल्ला रही है,पेड़ों पर गर्दन शान से ऐंठे कुछ बगुले भी हैं बैठे जो ध्यान लगाये मौन है। समझ में कुछ आया की वो गाय कौन हैं? मेरे तो दिमाग में बस यही आता है की वो गाय ही हमारी भारत माता है। जब ये स्वप्न मैंने एक नेता जी को बताया तो वो बोले चुप रहो आखिर तुम्हारे बाप का क्या जाता है? अब तो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, बिस्मिल, आजाद, भगत सिंह को बुलाऊंगा की ये मेरे देश के अमर शहीदों एक बार फिर से भारत भूमि पर आओ और हमारी  भारत माता की जान बचाओ। जय हिन्द -जय भारत।

रोटी के लिए नीयत खोटी?

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जिन्दगी के लिए क्या चाहिए सिर्फ चार रोटियाँ,कुछ छोटी मोटी जरूरतें, एक घर और कुछेक कपडे तन ढंकने के लिए। बस इसी के लिए दौड़ मची है, कोई पैदल तो कोई साईकिल, मोटरसाइकिल तो कोई कार और कुछ लोग तो जहाजों और हेलीकाप्टर का प्रयोग कर रहे हैं। बड़े-बड़े आशियाने वो सुकून नहीं दे सकते जो एक फूस की झोपडी देती है। समझ में नहीं आता कि महज चार रोटी के लिए कोई नीयत खोटी क्यों करता है? आखिर क्या हासिल हो जाता है उसे? अपना और अपने बच्चो का पेट भरने के लिए औरों के खाने में मिलावट करना, अपनी कार, और हवाई जहाज को मेंटेन करने के लिए दूध में जहरीले रसायन मिलाना, और तो और अपने आराम के लिए देश तक से गद्दारी करना कहाँ तक ठीक है? अगर इस कीमत पर कोई रकम आती तो तो भूंखे मर जाना उससे कई करोड़ गुना बेहतर है। मैं आख़िरी सांस तक भारतीय हूँ और रहूँगा। मुझे अपनी भारत माता की कीमत पर ऐसी चीजें नहीं चाहिए। अगर आप भी सच्चे भारतीय है तो आइये शपथ लें कि हम ऐसा खुछ भी नहीं करेंगे जिससे हमारे देश की आन-बान और शान को नुकसान हो .... जय हिन्द!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

रायपुर का मेकाहारा अस्पताल

जहां मरीज फिरता हो मारा-मारा, प्रशासन बना बैठा हो दुहशासन  और बेसहारा, बीमार लोगों के परिजनों को दिन में ही दिखाई देता हो तारा। राज्य के उस असपताल का नाम है मेकाहारा। जहां का वार्ड ब्वाय खुद को समझता है बॉस अच्छे अच्छों को नहीं डालता घास। गरीब यहाँ घिघियाता है, हर चौथे अधिकारी की गलियाँ खाता है। काम के नाम पर सिर्फ बहाना। अनपढ़ पूंछते फिरते हैं डॉक्टरों के ठिकाने तो नर्सें दौड़ती हैं काट खाने। सेक्योरिटी वाला भी लगता है सेठ , किसी का कान तो किसी का हाथ देता है उमेठ। सारे सरकारी दावे यहाँ पानी भरते हैं ....कभी मौक़ा   मिले तो वहाँ जाकर देखिये कि स्वास्थय विभाग के कर्णधार रोज कितनों का उद्धार करते हैं?

जनदखल का आज का एडिटोरियल आपके लिए।

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आज के जनदखल का प्रथम पेज जिसको मैंने लगवाया हैं

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इस जज्बे को सलाम करो यारों !!!!!

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कारगिल के इस मेजर को लोगों ने शहीद हुआ समझ लिया था मगर डॉक्टरों की सलाह पर फिर से अस्पताल ले जाया गया जहां उनका दाहिना पैर तो काट दिया गया मगर हौसले पर भला कौन  ब्लेड चला  पाता ? ऐसे में ये पूर्व मेजर डी पी सिंह ब्लेड वाले प्रोस्थेतिक पैर के सहार मैराथन दौड़ रहे हैं। ऐसे ही हम अपनी सेनाओं और उनके जवानों पर गर्व नहीं करते हैं, कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी। सलाम है मेजर साहब के जज्बे को !!!!!!

26/11 आखिर कब तक?

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26/11 के चार साल बाद भी लाचार दिखती सरकार, वादों की बौछार, मंहगाई और भ्रष्टाचार, विरोधियों पर प्रहार। न सफाई, न दवाई, आम आदमी की सुरक्षा हवाहवाई चाहे वो दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, रायपुर, या फिर हो मुंबई। राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी की एक भी बैठक आज तक नहीं हुयी। न ही हमारी बहादुर और तेज तर्रार ख़ुफ़िया विभाग की कोशिश से कोई बड़ा हमला टला। ऐसे हालत में तो भगवान ही करे हिन्दुस्तान का भला।एक सूत्री कार्यक्रम चलाया जा रहा है हमारे नेताओं द्वारा अपना काम बनाता तो भाड़ में गई जनता!!!!! मगर ऐसा कब तक? हमारी सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर ये नुक्कड़ नाटक कब तक? देश की सीमाओं की सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ कब तक। सेना के जवानों को हत्यारों पर राजनीति कब तक, बेहद जरूरी, समस्याओं को टालने की आदत आखिर कब तक? वेतन और भत्ते के नाम पर देश के खजाने से मोटी रकम निकाल कर अपना घर तो चलते हैं मगर हमारा घर क्यों जलाते हैं? क्या ये अन्याय नहीं है? अगर है तो कोई इसपर कुछ बोलता क्यों नहीं? कुछ करता क्यों नहीं?

ढेर होते क्रिकेट के शेर

हमारे शेर एक बार फिर वानखेड़े में ढेर होने की तैयारी में लगे हैं। पनेसर की फिरकी की फांस में फंस कर अंतिम सांस ले रहे हैं।अब ये तो पता नहीं की और कितनी नाक कटवाएँगे ये हमारे बहादुर बब्बर शेर ? देश और देश की जनता की भावनाओं से इनका कोई लेनादेना नहीं है? एक बार तो एक हरफनमौला खिलाड़ी ने यहाँ क\तक कह दिया था की क्रिकेट को दिल से क्यों जोड़ते हो? मेरी मोटी बुद्धि में उनकी बारीक बात आज तक नहीं घुसी अलबत्ता असर ये जरूर हुआ कि मैंने क्रिकेट देखना छोड़ दिया। और सही बताऊँ तब से बहुत खुश- और सुखी हूँ।

कड़वी सच्चाई

गरीबों के आँगन में एक बार फिर से चुनावी चौसर जारी है कोई भड़का रहा है तो कोई लालच दिखा रहा है। खबर आ रही है की अब सब्सिडी नकद बीपीएल कार्डधारियों के बैंक खातों  में सीधे ट्रांसफर हो  जाएगा । इसतरह हर गरीब परिवार को लगभग 3 से 4 हजार रुपए हर माह मिलेगा।योजना का लाभ भी 1 जनवरी 2013 से मिलाना शुरू हो जायेगी। समाचार तो अच्छा है मगर अब ज़रा इसके सरोकारों पर के नजर डाल लें ? गरीबों को अब अपाहिज बनाने और नई  पीढी को 50 वर्ष पीछे ले जायेगी ये योजना। अच्छा होता सरकार कि सरकार इसी पैसे से मेडिकल या फिर इंजीनियरिंग  कॉलेज खोल देती। जिसमें गरीबों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती। गरीबों को हाथ का काम सिखाया जाता अच्छी तकनीक हस्तांतरित की जाती। मगर सरकार को तो वोट चाहिए थे न ! इसलिए उसने जोरदार दांव भाजपा के सर पर दे मारा। भगवान ही जाने ये लोग देश को किस और ले जा रहे हैं?

पैसे लेकर झूठ बोलना

पैसे लेकर झूठ बोलना और देश की भोलीभाली जनता को गुमराह करना   कुछ बड़े चैनल्स की आदत में शुमार होता जा रहा है। किसी के भी ऊलजुलूल  उत्पाद को बेंचने के लिए किसी बड़े सिने अभिनेता को मोटा पैसा देकर उससे झूठ बोलावाया जाता है। मामूली उत्पादों की कीमत को कई सौ गुना कीमत लेकर बेंचा जा रहा है। विशेषकर आयुर्वेदिक औषधियों के नाम पर। ऐसे तथाकथित वैद्यों से मेरी प्रार्थना है की अगर उनहोंने चरक संहिता को पढ़ा होगा तो उसमें महर्षि चरक ने साफ़-साफ़ लिखा है की आयुर्वेद लोक कल्यान के लिए धरती पर आया है। जिनको व्यवसाय करना है वे आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग इसकेलिए न करें। मेरे लिए नहीं तो कम से कम भगवान धनवन्तरी के लिए ऐसे नाटकों को तुरंत बंद कर दें बड़ी कृपा होगी।

जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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जनदखल सांध्य दैनिक में प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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उनके ठाठ और अदालत गंज घाट

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क्या किसी की  की कीमत मात्र दो लाख रुपये है? देश में भगदडो में अब  हजारों लोगों की जान जा चुकी है। हर बार  अपनी जिम्मेदारी से बचने का एक मात्र यही बहाना बनाता है। अब तो वो आम आदमी की जान की भी कीमत धड़ल्ले से लगाने लगा है। लाख टके का सवाल तो ये है कि क्या यही रेट अगर किसी मंत्री का बेटा  या फिर बेटी मरेगी तो भी लागू रहे गा या फिर   रेट लिस्ट बदल दी जायेगी? रही बात जांच की तो आज तक इस देश में कितनी जांचों की रिपोर्ट आ पाई है ? भोपाल गैस  काण्ड इसका  जीता जगता उदाहरण है। क्या  बाद भी हम इस पर विस्वास कर लें? क़ानून में एक खून करनेवाले को फांसी की सजा दी जाती है तो क्या जिसकी गलती से देश में हजारों लोगों की जानें गई हैं उसको सजा नहीं दी जा सकती? अगर हाँ तो अबतक दी क्यों नहीं गई?  घटनाओं पर राजनीति की रोटी सेंकनेवाले अपनी घटिया हरकत बंद क्यों नहीं करते? हम ऐसे स्वार्थी और कामचोरों को कब तक ढोते  रहेंगे?

पटना में छठ के दौरान भगदड़, 18 मरे

पटना में चारा तो खाने वाले मंत्री हैं, घूंस खाने वाले अधिकारी हैं। मगर आम जनता की सुरक्षा का दावा करने वाला प्रशासन क्या कर रहा था उस वक़्त जब छठ के श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा घाटों पर पहुँची। क्या प्रशासन को पता नहीं था कि यहाँ अगले दो तीन दिनों तक भीड़ रहेगी? आम आदमी के इन हत्यारों के ऊपर तो हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए वो भी एक -दो नहीं पूरे 18 लोगों की हत्या का। वोट माँगने के लिए पहुँच जाते हैं दांत निपोरे मगर जहां असल में जरूरत होती है वहाँ से नदारद? अरे इस थर्ड जेंडर प्रशासन और लकवाग्रस्त निजाम को बदलने की जरूरत है। आइये वादा करें की जब ये वोट माँगने आयेंगे तो इनसे इनके कर्मों का हिसाब पहले मांगेंगे उसके बाद ही यह    की इनको वोट  भी  या  नहीं?

शब्दों की ताकत

बात और हल्दी जहां भी लगाइए लगती है? बात अच्छी हो तो मिठाई खिलादे, बिगड़ा काम बना दे। बहुत अच्छी हुई तो किसी आम को ख़ास बना देती है। मगर यही बात अगर बिगाड़ जाए तो उसका बतंगड़ बनाते देर नहीं लगती। और अगर  वक्ता फिर भी नहीं सुधरा तो फिर समझ लीजिये प्रतिष्ठा साफ़। गुस्ताखी माफ़  यही है शब्दों की ताकत। शब्द ही मंत्र हैं अब ये तो उस वक्ता पर निर्भर करता है की वो शब्दों को कितना साध पाटा है। हम तो  यही  कि --- बात अच्छी हो तो उसकी हर जगह चर्चा करो। हो बुरी तो दिल में रक्खो फिर उसे अच्छा करो।। रौशनी करने का मतलब ये नहीं हरगिज़ की आप। जो भी पर्दे में पडा हो उसको बेपर्दा करो।।

एक क़ता -

मैं चीन के चश्में से शहर देख रहा हूँ। कुत्ते को भी अब शेर बबर देख रहा हूँ।।       होकर के खडा पतली सी नाली के किनारे।  मैं तो " कपूत" स्वेज नाहर देख रहा हूँ।।

एक क़ता

पेट भूँखा है जेब खाली है।  कैसे कह दूं कि शुभ दिवाली है ।।  आज बाजार फिर से निकला हूँ । हाथ में देखो  कि माँ  बाली है।। .. - कपूत प्रतापगढ़ी

एक मुक्तक महंगाई के नाम

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दफ्तर में भिड़ा हूँ मुझे बोनस की पडी हैं। घरवाली मेरी झुमके और कंगन पे अड़ी है।। गाड़ी की टंकी खाली है पेट्रोल ख़तम है ।. वो सोच रही हैं कि धन्नासेठ सनम है ।। ** कपूत प्रतापगढ़ी ..

मेरी कीमत

मुझसे किसी ने पूछा की इतनी उम्र निकल गई क्या कमाया ? वो आदमी काफी पैसे वाला है मगर कैसे पैसे बनाए ए बताने की जरूरत नहीं है। ऊपर से ताव ये की तुम्हारे जैसे आदमी को खड़े-खड़े खरीदने की हिम्मत रखता हूँ। मुझे उसके बचपने पर हंसी आ गई वो देखने लगा गोया मैं कोई पागल हूँ मगर उसे क्या मालूम कि -- मैं एक फ़कीर के होठों की मुस्कराहट हूँ ! किसी से भी  अदा नहीं होती !!

एक कड़वा सच

ऊंची इमारतों को हर कोई देखता है मगर बहुत कम लोग होंगे जो उसके बुर्ज से गिरकर मरने वाले मजदूर और उसके परिवार की मुसीबत के बारे में सोचते हैं! यह एक कड़वा सच है की हमारे इर्द-गिर्द बनी इमारतों में से अधिकाँश किसी न किसी गरीब और मजबूर मजदूर के खून से पुती हुयी हैं! उन पर नकली रंगों-रोगन किया गया है ताकि उस गरीब का खून नज़र न आ जाये! शायद इसी का नाम भी बड़प्पन है की जो सामने है उसी को देखो और कबूल करो! परदे के पीछे का दर्द देखने और बांटने वाला कोई नहीं है! यही मंज़र गुजिस्ता दो दिनों से मेरी आँखों के आगे नाच रहे है और हमारे आका किसी और के कसीदे बांच रहे हैं! भाव बहुत गहरे हैं... मगर सुनेगा कौन इस बड़े शहर में लोग तो गूंगे और बहरे हैं! वो मगन हैं मलने में आयल और मैं बेंचने में मोबाईल ............!!!!!!!

तीन कौड़ी के लोगों की मस्ती

प्रशासन के पास चाटुकारों की कमीं नहीं है, और हमें अपने हुनर पर यकीन है! भले ही उनकी निगाह में हम कौड़ी के तीन हैं मगर तीन कौड़ी के लोगों की मस्ती भरी तिजोरी वालों को नहीं मालूम! वो नीद की दवाइयां खाकर तनाव में जलते है या फिर रोते हैं! हम फकीरी मस्ती वाले लोग पैर फैलाकर आराम से सोते हैं! और बकौल कौसर परवीन कोलकाता कि-- हम फकीरी में ऐश करते हैं! ये हुनर बादशाह क्या जानें!! और --- एक झोपडी बची थी वो सैलाब ले गया! हमको किसी तूफ़ान का अब डर नहीं रहा!!

सरकार की पैसों की बढ़ती भूख और मिटता गरीब

पहले यूरिया खाद भारत को देकर अन्न का उत्पादन बढाया जाता है। फिर कीटनाशक छिडाकवाकर हमें बीमार बनाया जाता है। इसके बाद बाजारों में लाई जाती है दवाई , विदेशी दोनों ही हाथों से कर रहे हैं कमाई। सरकार का दावा  की वो कर रही है देश के किसानों की भलाई? मजबूर मजदूर  और  गरीब किसान हो रहा है हैरान परेशान। विदेशियों का ये आइडिया सरकार के काम आया। उसने भी बेंचने का मार्ग अपनाया, पहले जमीन, जंगल और फिर पानी बेचकर लिख डाली एक नई कहानी। गरीब अब तो इस देश में सकते में जीते हैं पानी का नाम पर आर्सेनिक जैसा जहर पीते हैं। सरकार का खजाना इससे भी नहीं भर रहा है और गरीब यही पानी पी-पीकर मर रहा है।ऐसे में याद आते हैं दादा कैसर शमीम साहब जो फरमाते हैं कि - इंसान घटाए जाते हैं सायों को बढाया जाता है, दुनिया में हमारी यह कैसा अंधेर मचाया जाता है ! पहले तो जताई जाती है हमदर्दी प्यास के मारों से, फिर आँख बचाकर पानी में कुछ ज़हर मिलाया जाता है!!

China ka sattaa pariwartan aur bharat ki chainta

चीन में सत्ता परिवर्तन की जो आ रही हैं उनसे साफ़ जाहिर होता है कि भारत को घेरने के उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आनेवाला। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हु चिनथाओ ने स्पष्ट कर दिया कि आनेवाले समय में उनका देश सामरिक प्रतिरक्षा को विकसित करने से नहीं चूकने वाला। ऐसे में उसकी मंशा साफ़ तौर पर समझ में आ जाती है।अब भारत को भी अपनी सामरिक तैयारियों में तेजी लाने की जरूरत है। इससे एक ओर जहां इस महाद्वीप में सैन्य साजो-सामानों का बड़ा बाजार तैयार होगा, वहीं हमारी सीमाओं पर भी खतरा बढेगा।चीन के जे-31 जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की काट हमारे डीआरडी ओ के पास आरा जैसे स्वचालित लड़ाकू विमान हैं जो रडार को चकमा देने का माद्दा रखते हैं। जरूरत है तो सिर्फ उनके उत्पादन को शुरू करने की। तो अब इसको तेजी से किया जाए ताकि हमारे देशवासी निर्भय होकर जनगनमन गायें!

नश्तर पर चल रहा बस्तर

नई राजधानी में जहां खास लोगों के लिए बेहद खास  व्यवस्था की गई मुफ्त की बसों को भीड़ बटोरने में लगाया गया, मोटा पेमेंट देकर मुंबई से कलाकारों को बुलवाया गया उसी राज्य की राजधनी से दूर बस्तर के जंगलों में 18वीं शताब्दी की जिन्दगी जी रहा एक आम आदिवासी जिसके दोनों और फांसी। नक्सलियों की सुने तो पुलिस जेल में ठूंस दे और पुलिस की सुनें तो नक्सली काट डालें। आदिवासियों के दोनों ही और है नश्तर और यही दंश झेल रहा है बस्तर। उसकी तो बहू-बेटियों की इज्जत तक खतरे में हैं। कभी पुलिस उठा ले जाती है तो कभी नक्सली। बूढ़े बाप का सहारा बनाने की लेकर आस पाले गए बेटे की देख कर लाश उसकी आत्मा रोती है और सरकार जांच का नाच नाचती है। राजधानी में बैठ कर क़ानून की पोथी बांचती है। लाख टके का सवाल तो ये भी है की क्या आदिवासी इस देश का नागरिक है अगर हाँ तो उसके साथ ये दोहरा बर्ताव क्यों? कब मिलेगा उस मासूम और सरल ह्रदय वाले आदिवासी को उसके हिस्से का न्याय। वो तो यही कह रहा है कि - अन्धेरा है या तेरे शहर में उजाला है ! हमारे जख्म पे क्या फर्क पड़ने वाला है !!

बाहरी कवियों के ठेकेदार

यूं तो उनपर मेहरबान है छत्तीसगढ़ सरकार इसी लिए वो बन बैठे हैं बाहरी कवियों के ठेकेदार, चुटकुलों के बल पर चमकाए बैठे है अपनी बाजार। मुझे लग रहा ये छत्तीसगढ़ के हिदी कवियों का दमन है, चूंकि उनके पीछे खड़े डॉक्टर रमन हैं इसलिए उनको नमन है! उम्मीद करता हूँ की आज की शाम जब ये धाकड़ कवि राज्योत्सव के पवित्र मंच पर आयेंगे तो कोई वजनदार स्वरचित कविता जरूर सुनायेंगे जो छंद बद्ध हो।मजेदार बात तो ये की इतना कुछ करने के बाद भी राज्य के साहित्यकार और पत्रकार ही नहीं मीडिया हाउस भी उनको मोटे लिफ़ाफ़े थमाते हैं। आगे तो जय जैकार करते हैं।मगर पीठ के पीछे भुनभुनाते हैं। मुखमंत्री की आड़ लेकर ये महाकवि बच रहे हैं तो विरोधी नाकों के बल नाच रहे हैं। बुरा लगे तो लग जाए मगर कह हम सौ फीसदी सच रहे हैं।

एक टीस

अजीब सी बात है की इतनी बड़ी बात कहने के बावजूद भी राजधानी के कवियों में से किसी एक ने भी दो शब्द कह पाने का दुस्साहस नहीं दिखाया --दोनों हाथ जोड़कर इनकी लेखनी को नमन करता हूँ! अफ़सोस की अगर किसी लड़की ने एक भद्दा सा शेर डाला होता तो तीन सौ कमेंट पड़ते. और कवि जी पूरे दिन पीले रहते- मगर मैं इसकी परवाह भी नहीं करता - लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि-- मैं आइना था टूट कर भी आइना रहा ! कैसा लगेगा तुमको जब पत्थर कहेंगे लोग!!

नश्तर पर चल रहा बस्तर

नई राजधानी में जहां खास लोगों के लिए बेहद ख़ाक व्यवस्था की गई मुफ्त की बसों को भीड़ बटोरने में लगाया गया, मोटा पेमेंट देकर मुंबई से कलाकारों को बुलवाया  गया उसी राज्य की राजधनी से दूर बस्तर के जंगलों में 18वीं शताब्दी की जिन्दगी जी रहा एक आम आदिवासी जिसके दोनों और फांसी। नक्सलियों की सुने तो पुलिस जेल में ठूंस दे और पुलिस की सुनें तो नक्सली काट डालें। आदिवासियों के दोनों ही और है नश्तर और यही दंश झेल रहा है बस्तर। उसकी तो बहू-बेटियों की इज्जत तक खतरे में हैं। कभी पुलिस उठा ले जाती है तो कभी नक्सली। बूढ़े बाप का सहारा  बनाने की लेकर आस पाले गए बेटे की देख कर लाश उसकी आत्मा रोती  है और सरकार जांच का नाच नाचती है। राजधानी में बैठ कर क़ानून की पोथी बांचती है। लाख टके  का सवाल तो ये भी है की क्या आदिवासी इस देश का नागरिक है अगर हाँ तो उसके साथ ये दोहरा बर्ताव क्यों? कब मिलेगा उस मासूम और सरल ह्रदय वाले आदिवासी को उसके हिस्से का न्याय। वो तो यही कह रहा है कि - अन्धेरा है या तेरे शहर में उजाला है ! हमारे जख्म पे क्या फर्क पड़ने वाला है !!

मुंबई पुलिस कमिश्नर का तुगलकी फरमान

 अब सावधान !! पुलिस पर हमला किया तो जब्त होगा आधार, चरित्र प्रमाण  प्रत्र , ड्राइविंग लाइसेंस, और शास्त्र का लाइसेंस आदि ! यह आदेश मुंबई पुलिस कमिश्नर  डॉ. सत्यपाल सिंह ने जारी किया है! ये बात तो ठीक है कमिश्नर साहब मगर यदि रात में किसी गरीब के घर में घुसकर पुलिस उसकी बहन-बेटियों को बेइज्जत कर दे? किसी निर्दोष को अचानक पकड़ कर लेजाये और बदमाश बता कह एन्कौन्तर कर दे? किसी के केस के जांच के नाम पर उसकी जिन्दगी ही खत्म कर दे मगर जांच खत्म न हो? तो ऐसी पुलिस की क्या जनता पूजा करे? अगर इतने ही इमानदार बनाना चाहते हैं तो जितने पुलिस वाले तनख्वाह लेकर अपनी ड्यूटी नहीं करते उनकी तनख्वाह सरकारी खजाने में जमा क्यों नहीं करवा देते? क्या किसी पुलिस कमिश्नर को ये पावर है की वो खुद क़ानून बना ले? अगर हाँ तो फिर देश की सर्वोच्च संस्था संसद का क्या औचित्य ? अब क्या पुलिस इतनी असहाय हो गई है की वो अपनी भी सुरक्षा नहीं कर पा रही? तब तो बहादुरी का सबसे बड़ा तमगा मुंबई पुलिस को मिलना चाहिए.  अरे जब आप अपने जवानों की रक्षा नहीं कर पाए तो फिर आम जनता की रक्षा क्या करेंगे.? मैं उन लोगों को भी पूरा

आह और कराह को मेरी ये सलाह

अजीब बात है ! एक डेढ़ सौ रुपये रोज कमाने वाले मजदूर पर हम जमकर निगाह रखते हैं और जरूरत पड़ने पर जमकर फटकारते भी हैं. ज्यादा तीन-पांच किया तो कह देते हैं की कल से मत आना ! मगर जिसको लाखों रूपये महीने की तनख्वाह और ढेरों सुखा सुविधाएँ देते हैं वो उलटे हमीं को दुतकारता है. बोलने पर लतियाता भी है. यहाँ तक की हमारी आवाज तक को अनसुना कर देता है. लगता है उसे लोक की आवाज सुनाई ही नहीं देती , या फिर जान बूझ कर अनसुना करने की आदत डाल चुका है. ऐसे में अब बारी आपकी है जब वो आपके दरवाजे पर हाथ जोड़े पांच इंच का मुंह फैलाए बड़ी बेशर्मी से खडा होगा. तकाजा तो यही है की आप भी उसकी बात अनसुनी कर दें. अरे जब देश का पैसा लेकर जो आदमी ठीक से काम नहीं करता हो ऐसे निकम्मे आदमीं को हम जिम्मेदारी क्यों दें? जो लोग पांच साल से आह और कराह भर रहे हैं उनको मेरी ये सलाह है! अब आपलोग भी चुप्पी मार लीजिये. क्योंकि जिस भाषा में सवाल हो उत्तर की भाषा भी वही होनी चाहिए .... जय हिन्द .. जय भारत.

विदेशी निवेश का क्लेश

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बीमा --पेंशन पर चढ़ा, जब निवेश का रंग ! पीएम मुस्की मारते , जनता होगई दंग  !!      जनता होगई दंग, किसानी करें फिरंगी !      लूट मुनाफा खांय, मरे ये पब्लिक नंगी !! कह कपूत कविराय, देश का करके कीमा ! मनमोहन मुसकाय,रट रहे बीमा -बीमा !!  कपूत प्रतापगढ़ी --

द पायोनियर के चीफ एडिटर माननीय चन्दन मित्रा जी आज रायपुर के कार्यालय में पधारे उनके साथ श्री विजय बुधिया व स्थानीय संपादक श्री सुजीत जी के साथ सम्पूर्ण परिवार की ये ग्रुप फोटो - इस मौके पर श्री मित्रा जी ने सभी का परिचय भी लिया. आज की शाम हम लोगों के लिए विशेष रही . आर पी सिंह

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मोहन लाहिरी अमर रहें ! आज़ाद हिंदी फ़ौज के सबल सेनानी तथा नेता जी सुभाष चंद बोस के अनन्य सहयोगी मोहन लाहिरी का ३० अगस्त २०१२ का उनके कांकेर स्थित आवास पर निधन हो गया. वे १०७ वर्ष के थे. आइये हम इस अमर सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित करें --- जय हिंद ,

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१८ अगस्त के जनदखल संध्या दैनिक में प्रकाशित मेरी खबर पहली लीड बनी पेश है खबर-

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१८ अगस्त के जनदखल संध्या दैनिक में प्रकाशित मेरी खबर पहली लीड बनी पेश है खबर-

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ये भी है मेरे फेस बुक प्रोफाइल में लगी मेरी फोटो

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On 12th of August my biline story has become Jandakhal's first lead

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खट्टा हो रहा अन्ना का गन्ना !

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रमेश प्रताप सिंह इसमें कोई दो राय नहीं है की टीम   अन्ना का आन्दोलन जिस भ्रष्टाचार को लेकर शुरू हुआ था उससे अब वह भटकता नज़र आ रहा है ! यही कारण है की अब आम अवाम का मन भी इस आन्दोलन से खट्टा होता जा रहा है! वहीं कांग्रेस इसको अपनी काम लटकाओ नीति की जीत मान रही है! अन्ना के आन्दोलन को अपनी इस नीति से कांग्रेस ने जिस प्रकार लटकाया और उसका बंटाधार किया इसे हर भारतीय जानता है ! इससे यह भी सन्देश जा रहा है की अन्ना का आन्दोलन एक न एक दिन अपने आप ख़त्म तो जाएगा , आप तो अपने इस काम टालू रवय्ये पर अड़े रहो बस ! अन्ना के अनशन में लोगों की घटती भीड़ से कांग्रेस के खेमे में जिस प्रकार की हलचल है उससे तो यही पता चल रहा है. इस बार जिस चमत्कार की उम्मीद कांग्रेस के लोग कर रहे थे वो नहीं रही. तीसरे दिन ही अन्ना का जादू फीका हो गया. तो उन्हों ने बाबा रामदेव का सहारा लिया! बाबा  की भागीदारी से भले ही थोड़ी हलचल मची हो और भीड़ भी बढ़ी हो, लेकिन फिलहाल भ्रष्टाचार के खिलाफ नए सिरे से छेड़ी गई यह मुहिम किसी नतीजे पर पहुंचती नहीं दिख रही है। इस स्थिति के लिए टीम अन्ना ही अधिक उत्तरदायी है।

२५ जुलाई २०१२ के कही अनकही हिंदी दैनिक के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित मेरी रिपोर्ट पाताल के पानी पर पलीता

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कही अनकही हिंदी दैनिक के प्रथम पृष्ट पर प्रकाशित मेरी नामांकित रिपोर्ट -

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कैसे बचेगी लाडो की लाज !

खूंटाघाट  का खौफ कैसे आयेगा कोई इस राज्य में पर्यटन के लिए.जहां सरेआम नीलाम होती है बेटियों की आबरू, गुंडे बजा रहे हैं आतंक का डमरू, जवान बेटियों का बनाया जा रहा है अश्लील एम एम एस और बांटा जा रहा है सभ्य समाज को, अपराधी  हैं यहाँ  मस्ती में , बेटियाँ सिसक रही हैं बस्ती में, बट्टा लग रहा है गरीबों की हस्ती में, छेड़ हो गया है क़ानून की कश्ती में, मत आना लाडो इस प्रदेश क्योंकि गुंडे यहाँ पल रहे है पुलिस की सरपरस्ती में... *हम तो बस यही कहेंगे की-- किसे लड़की पे आँख उठाने के पहले सोच ये लेना,की अपने घर में भी अपनी कोई बेटी सयानी है.* बिलासपुर के रतनपुर स्थित खूंटाघाट में पिछले दिनों एक लड़की को उसके प्रेमी के सामने ही कुछ गुंडों ने हथियारों के बल पर लड़की के कपडे उतरवाकर उसका  एमएम एस  बनाया और इसके बाद उसे सभ्य समाज में बाँट दिया. पुलिस मामले पर अनभिज्ञता जताती रही. हैरत की बात तो यह है की उस एमएम एस में आरोपी भे दिखाई दे रहे हैं. घटना लगभग १५ दिनों पुराणी है. सुनाने में उनकी भाषा हरियाणवी लग रही है. पश्चिम बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना में एक स्कूल में आठवीं की छात्रा के

लाडो मत आना इस प्रदेश!

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बिलासपुर में धड़ल्ले से जारी है भ्रूण का लिंग परीक्षण सोने का नाटक कर रहा स्वास्थय विभाग, मुख्या चिकित्साधिकारी को भी नहीं मालूम रायपुर/ अजीब इत्तिफाक है एक ओर तो राज्य के कलाकार, समाजसेवी एकजुट होकर बेटी बचाओ आन्दोलन कर रहे हैं तो उन्हीं की नाक के नीचे बिलासपुर में भ्रूण के लिंग परिक्षण का गोरखधंधा जोरों पर है. यहाँ सारे क़ानून को नून की तरह खाया जा रहा है. आलम यह है की शहर में भ्रूण के लिंग परीक्षण की दुकाने जमकर चलाई जा रही हैं, और चलें भी क्यों न जब एक भ्रूण परिक्षण के ५००० से लेकर १०००० रुपये तक आसानी से मिल जाते हों! मुख्या चिकित्साधिकारी डॉक्टर अमर सिंह कहते हैं की उनको पता नहीं है और इस तरह की कोई शिकायत नहीं मिली है अगर शिकायत मिलाती है तो कार्यवाही की जायेगी. वाह रे स्वस्थ्य विभाग, कहाँ जाएँ भाग बेटियों की मां?

जनसंदेश टाइम्स के लखनऊ अंक में रविवारीय परिशिष्टि में प्रकाशित मेरी कविता को वहाँ के पाठकों ने भरपूर प्यार दिया.मैं उन सभी विद्वान् पाठकों का ह्रदय से आभारी हूँ -८ जुलाई -२०१२ का वह अंक आपके लिए भी हाज़िर कर रहा हूँ.

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२ जुलाई २०१२ के अंक में मेरी बाई लाइन खबर प्रकाशित हुई इस पेज को मैं ही लगवाता हूँ.

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कही अनकही में २६ जून २०१२ को प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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कही अनकही में २७ जून २०१२ को प्रकाशित मेरी सम्पादकीय

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My Exclusive repot Published in The Pioneer English daily on 9 th June2012

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८ जून २०११ को जनसत्ता के रायपुर अंक में प्रकाशित मेरा एडिटोरिअल

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जनासंदेश टाइम्स के लखनऊ के ३१ मई के अंक में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट महंगाई से बचाएंगी गौ माई

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३० अप्रैल को प्रकाशित सम्पादकीय

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२३ अप्रैल को जनदखल में प्रकाशित मेरा स्तम्भ -खटर-पटर

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