एक कड़वा सच

ऊंची इमारतों को हर कोई देखता है मगर बहुत कम लोग होंगे जो उसके बुर्ज से गिरकर मरने वाले मजदूर और उसके परिवार की मुसीबत के बारे में सोचते हैं! यह एक कड़वा सच है की हमारे इर्द-गिर्द बनी इमारतों में से अधिकाँश किसी न किसी गरीब और मजबूर मजदूर के खून से पुती हुयी हैं! उन पर नकली रंगों-रोगन किया गया है ताकि उस गरीब का खून नज़र न आ जाये! शायद इसी का नाम भी बड़प्पन है की जो सामने है उसी को देखो और कबूल करो! परदे के पीछे का दर्द देखने और बांटने वाला कोई नहीं है! यही मंज़र गुजिस्ता दो दिनों से मेरी आँखों के आगे नाच रहे है और हमारे आका किसी और के कसीदे बांच रहे हैं! भाव बहुत गहरे हैं... मगर सुनेगा कौन इस बड़े शहर में लोग तो गूंगे और बहरे हैं! वो मगन हैं मलने में आयल और मैं बेंचने में मोबाईल ............!!!!!!!

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव