एक मुक्तक महंगाई के नाम

दफ्तर में भिड़ा हूँ मुझे बोनस की पडी हैं।
घरवाली मेरी झुमके और कंगन पे अड़ी है।।
गाड़ी की टंकी खाली है पेट्रोल ख़तम है ।.
वो सोच रही हैं कि धन्नासेठ सनम है ।।
** कपूत प्रतापगढ़ी
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