एक टीस
अजीब सी बात है की इतनी बड़ी बात कहने के बावजूद
भी राजधानी के कवियों में से किसी एक ने भी दो शब्द कह पाने का दुस्साहस
नहीं दिखाया --दोनों हाथ जोड़कर इनकी लेखनी को नमन करता हूँ! अफ़सोस की अगर
किसी लड़की ने एक भद्दा सा शेर डाला होता तो तीन सौ कमेंट पड़ते. और कवि जी
पूरे दिन पीले रहते- मगर मैं इसकी परवाह भी नहीं करता - लेकिन इतना जरूर
कहूंगा कि--
मैं आइना था टूट कर भी आइना रहा ! कैसा लगेगा तुमको जब पत्थर कहेंगे लोग!!
मैं आइना था टूट कर भी आइना रहा ! कैसा लगेगा तुमको जब पत्थर कहेंगे लोग!!
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