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Showing posts from August, 2016

Front and Last page of Hamari Sarkar of 31st August 16

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गुरूजी कुएं में गिर चुके हैं

कटाक्ष- निखट्टू- अंग्रेजी के एक मास्टर साहब ने गांव के ही एक गरीब लड़के को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए ट्यूशन कर लिया। बच्चे के माता-पिता गरीब थे लिहाजा उन्होंने एक छोटी सी रकम मास्टर साहब की फीस के लिए निर्धारित कर दी। बच्चे ने उनको अपना गुरू मान लिया, पर वो तो पूरे गुरूघंटाल निकले। अंगे्रजी तो सिखा नहीं सके अलबत्ता उसको दारू पीना सिखा दिया। गांव से चार किलोमीटर दूर बाजार से उसी के हाथों दारू मंगवाते और शाम को पढ़ाने के बहाने अपने छप्पर में बैठकर दोनों जाम से जाम टकराते थे। एक रात मास्टर साहब अपने शिष्य के साथ बाजार गए थे। दोनों ने उस रोज वहीं ठेके पर ही जमकर पी लिया और गांव की ओर रवाना हुए। जैसे ही खेतों से होकर गुजरने लगे तो उनके अंदर का शिक्षक जाग गया। उन्होंने बच्चे को फ्यूचर परफेक्ट टेन्स पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने अपने चेले को बताया कि ऐसे वाक्यों के अंत में चुका है, चुके हैं , चुकी है आदि आते हैं। इतना कहना था कि मास्टर साहब अंधेरे में एक सपाट कुएं में जा गिरे। झम्म की आवाज हुई तो चेला पीछे हट गया। उसकी समझ में आ गया कि गुरूजी कुएं में गिर गए। बचाओ....बचाओ....बचाओ मास्टर साहब चिल्ल

माटी के खांटी कलाकार

संपादकीय- छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर कही जाने वाली किस्मत बाई देवार की किस्मत इतनी खराब निकलेगी, कभी सोचा ही नहीं था। कभी लोक मंचों की शान रही ये कलाकार आज कोरबा के एक अस्पताल में जीवन मरण के बीच संघर्ष कर रही है। विडंबना ये है कि परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो इस महान कलाकार का पेट भर सकें। उनकी बड़ी बेटी रेलवे स्टेशन पर भीख मांग कर अपनी मां का पेट भर रही है। तो वहीं प्रदेश का संस्कृति विभाग बाहर के कलाकारों पर करोड़ों फूंक रहा है।  प्रदेश में जमे कुछ ठेकेदार किस्म के लोग हर साल विभाग से लाखों के कार्यक्रम करवा रहे हैं। इनको बाकायदा ठेका भी मिल जाता है और यहीं से शुरू हो जाता है माटी के खांटी कलाकारों का शोषण। इनके पास उनकी वकत महज एक मजदूर से ज्यादा नहीं रह जाती है। एक -एक कार्यक्रम के लिए कठिन परिश्रम करने और लोगों के मनोरंजन के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले समर्पित कलाकारों की पूछ-परख संस्कृति विभाग में नहीं है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर इन कलाकारों का क्या दोष है? बाहर से जाने वाले महंगे कलाकारों को नया रायपुर के राज्योत्सव में मोटे पैसों का भुगतान करने वाले संस्कृति

आर्ट सब्जेक्ट के परीक्षार्थी ने किया फोरेंसिक साइंस में टॉप!

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रायपुर। छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी में वर्ष 2014 से 15 के बीच  हुई 36 प्रशिक्षु पुलिस उपाधीक्षकों की परीक्षा के परिणामों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इसमें कला संकाय की दो छात्राओं ने फोरेंसिक साइंस जैसे क्लिष्ट विषय में टॉप किया है। तो वहीं लोग इसकी जांच  की मांग भी करने लगे हैं। यहां यह बात भी स्पष्ट कर देना जरूरी है कि फोरेंसिक प्रयोगशाला सरकार का वह विभाग है जहां तमाम जघन्य अपराधों के साक्ष्य जुटाए जाते हैं। जब अधिकारी होंगे ऐसे तो जांच करेंगे कैसे क्या है पूरा मामला ये वाकया छत्तीसगढ़ की पुलिस अकादमी में साल 2014 से 2015 के बीच 36 प्रशिक्षु पुलिस उपाधीक्षकों (डीएसपी) ने फोरेंसिक साइंस की परीक्षा दी थी।  इसमें सम्मलित होने वालों में जहांं एक ओर जंतु विज्ञान में एमएससी कांकेर की चंद्रकला गवर्ना, एमएसी रसायन जांजगीर के रामगोपाल करियारे, एमएसी जंतु विज्ञान और लाइफ साइंंस से नेट उत्तीर्ण चंचल तिवारी जैसे दिग्गज थे, वहींं ग्वालियर की गरिमा द्विवेदी थींं जो कि बीए और एमए थीं।  जब परीक्षा परिणाम आए तो हर कोई हैरत में था।  नेट जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा को साइंस जैसे विषय के साथ टॉप करने वाले

जामवंत को लगी तेल पीने की लत

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   कांकेर। कांकेर के गढ़पिछवाड़ी सहित आसपास के गांवों में इन दिनों जंगली जामवंत का भय व्याप्त है। इस भालू को तेल पीने की ऐसी लत लग गई है कि ये किसी के भी घर में बेधड़क घुस जाता है। इसके बाद खाद्य तेल पीकर चुपचाप निकल लेता है।  इस घटना को ये भोर में अंजाम देता है। ठीक दो से तीन बजे के बीच। जैसे पुलिस वाले रेड डालते हैं। वैसे ये भालू भी घरों में घुस जाता है। इससे इन गांवों के लोगों में    दहशत का माहौल है। डर से लोग  रात-रात भर जग रहे हैं। डर से लोग कर रहे हैं रतजगा, प्रशासन से की दूर जंगल में छोड़वाने की मांग क्या कहते हैं ग्रामीण- गांव वालों ने बताया कि करीब 8 दिनों से गांव में भालू की दहशत बनी हुई है। भालू गांव के बड़ेपारा तथा छोटेपारा के कई घरों के घुस चुका है तथा अधिकांश घरों में रसोई में घुस कर में रखे तेल को चट कर जाता है। बड़ेपारा के कैलाश पटेल ने कहा कि कल रात उनके घर में रात करीब 3 बजे भालू घुस गया था, घर में आवाज सुन के वो जब उठा तो देखा कि भालू रसोई घर में घुसा हुआ था। दहशत में ग्रामीण भालू के रोजाना घरों में घुसने से दहशत में जी रहे गड़पिछवाड़ी के ग्रामीणों ने भालू को पकड

भगवान ने ये क्या लिखा किस्मत बाई की 'किस्मतÓ में

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  लोग यूं तो उनको छत्तीगढ़ की लता मंगेशकर कहकर बुलाते हैं। उनके गाने जब रेडियो पर आते थे, तो राह चलने वाले लोग भी रुक जाया करते थे। उनके गाए गीत चौरा में गोंदा रसिया मोर बारी मा पताल रे चौरा मा गोंदा को लोग आज भी नहीं भूले। इसके अलावा चल संगी जुर मिल कमाबो रे .. और करमा सुने ला चले आबे गा करमा तहूं ला मिला लेबो, मैना बोले सुवाना के साथ रे मैना बोले...  जैसे गीत आज भी काफी पसंद किये जाते हैं। मगर अफसोस की इतनी लोकप्रिय गायिका और लोकनर्तकी के परिजनों के पास इलाज तक के पैसे नहीं है। बड़ी बेटी जतनबाई देवार रेलवे स्टेशन पर भीख मांग कर अपनी मां का पेट भरती है। राज्य का संस्कृति विभाग उनकी खबर तक नहीं ले रहा है। सवाल तो ये कि क्या प्रदेश के संस्कृति विभाग की इंसानियत मर गई है? आखिर कब टूटेगी इस प्रशासन की तंद्रा? बीमार है छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर, मां का पेट भरने बेटी मांगती है भीख, मदद में जुटी रमा दत्त जोशी रायपुर। कोरबा, छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर कही जाने वाली लोक कलाकार किस्मत बाई से जैसे उनकी किस्मत रूठ गई है। लम्बे समय से लकवा ग्रस्त चल रही छत्तीसगढ़ की लोक गायिका किस्मत बाई देवार क

Front and Last page of Hamari Sarkar of 30th August 16

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नशे में चूर गुरूर का गुरू

संपादकीय- शिक्षा दान एक महान दान है। हमारे समाज में गुरुओं का स्थान भगवान से भी ऊंचा बताया गया है। कबीरदास जी ने तो यहां तक कह दिया कि जब भगवान नाराज होते हैं तो गुरू की शरण में जाना चाहिए। अगर गुरू नाराज हों तो भगवान भी मदद नहीं करता। इतने बड़े सम्मान और सातवां वेतनमान लेने वाले कुछ गुरूघंटालों की वजह से पूरा शिक्षा विभाग कलंकित हो रहा है। कमाई के गुरूर में चूर ये लोग शिक्षा के मंदिर में शराब पीकर जाने लगे हैं तो कोई वहीं शराब पीने लगा है। भारत एक आदर्शवाद की भूमि है। यहां हम किसी को अपना आदर्श मानते हैं और उसके सत्कर्मो को अपने आचरण में उतारने की कोशिश करते हैं। ऐसे में समझ में नहीं आता कि इन शराबी शिक्षकों से प्रदेश के छात्र भला क्या शिक्षा ग्रहण करेंगे। बालोद की सरकारी आईटीआई के प्राचार्य को वहां प्रवेश लेने पहुंचे छात्र-छात्राओं ने कालेज के प्रांगण में ही बियर पीते पकड़ लिया। मगर उनका दुस्साहस देखिए कि उन्होंने बोतल लहराते हुए दावा किया कि उनका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता? और भला ऐसों का कोई क्या बिगाड़ेगा? बिगाड़ तो वे रहे हैं राज्य के छात्र-छात्राओं का भविष्य। शिक्षा का माहौल औ

शिक्षा के मंदिर में छलकती शराब

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शिक्षा के मंदिर में अगर खुद प्राचार्य ही नशे में धुत्त हों तो भला कोई क्या कहेगा? ऐसा ही नजारा सामने आया बालोद के शासकीय आईटीआई में जब प्राचार्य डीएस रात्रे को वहां प्रवेश लेने आए छात्र-छात्राओं ने बीयर पीते रंगे हाथों पकड़ लिया। जोश में होश खो चुके प्राचार्य रात्रे ने बोतल को हवा में लहराते हुए कहा कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उन्होंने गाना भी गाया कि थोड़ी सी जो पी ली है चोरी तो नहीं की है। ऐसे में सवाल तो यही है कि ऐसे शिक्षकों से भला कोई क्या शिक्षा लेगा? ये इस राज्य की शिक्षा को किस ओर ले जाना चाहते हैं? प्रिंसिपल साहब बीयर के नशे में चूर, छात्राओं के सामने लहराई बोतल सातवां वेतनमान लेने वालों का दिमाग भी सातवें आसमान पर, शिक्षा विभाग फिर भी नहीं आ रही शर्म बालोद।  जिले के शासकीय आईटीआई के प्रिंसिपल का कोई सरोकार नहीं  है । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता शिक्षा का स्तर ऊपर उठे या नीचे गिरे। तभी तो प्रिंसिपल साहब बियर के नशे में चूर हैं?  शिक्षा के मंदिर को मधुशाला बनाने में  प्रिंसिपल साहब कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कहने को तो वे  यहां बच्चे पढऩे आते हैं लेकिन प्रिंसिपल

Front and Last page of Hamari Sarkar of 29th August 16

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अपने कोटर के आगे की डींग

कटाक्ष- निखट्टू ंसंतों... अबूझमाड़ के जंगल में एक उल्लू एक पुराने पेड़ के कोटर के सामने बैठा लंबी-लंबी छोड़ रहा था। उसकी पत्नी उसकी बेसिर-पैर की बातें बड़ी देर से सुन रही थी। वो लगातार अपनी बहादुरी के किस्से अपनी पत्नी को सुनाए जा रहा था। पत्नी बेचारी सिर्फ हूं....हूं....हूं करती जा रही थी। जोश में आए उस उल्लू ने कहना शुरू किया कि जानती हो जंगल में मेरा ही राज चलता है। जब मुझे गुस्सा आता है तो इस हाथ से बाज़ मारता हूं, उस हाथ से बटेर। इतना सुनते ही उसकी पत्नी ने कहा अरे.....वो देखो एक बड़ा बाज़ इधर ही आ रहा है.... सुनते ही वो उल्लू गुप्प से कोटर में जा घुसा। उसकी पत्नी तो हंसते-हंसते पागल हुई जा रही थी। आधे घंटे के बाद पसीने-पसीने उल्लू जी बाहर निकले....। पत्नी की हंसी देखकर बुरी तरह झेंप गए। उनको पता चला कि सब इसी का किया धरा है। इसके बाद बोले नहीं पता था कि अपने कोटर के सामने भी कोई डींग नहीं हांक सकता। ऐसा ही एक विभाग है छत्तीसगढ़ शासन का जो आम आदमी को तो परेशान किए पड़ा है। मगर जैसे ही किसी नेता की बात आती है उसके हाथ पांव फूल जाते हंै। अपनी बिरादरी वालों तक का चालान काटने वाली प्

कर्रामाड़ की बहादुरी का ईनाम

संपादकीय- कांकेर के कर्रामाड़ गांव की कामधेनु गौशाला में भूख से 250 गायों की मौत हुई। इसको लेकर पूरे प्रदेश में कोहराम मचा। खुद को गौसेवक होने का दावा करने वाली सरकार की सारी कलाई इस मामले के बाद खुल गई। तो वहीं इस मामले के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इन गायों की मौत के जिम्मेदार कृषि और पशु पालन मंत्री का कद बढ़ाकर उनको कोर कमेटी का सदस्य बन दिया है।  भाजपा सरकार के इस फैसले से प्रदेश की जनता हैरान परेशान है कि ऐसा  कैसे हुआ?  प्रदेश की जनता अब ये जानना चाहती है कि क्या केंद्र सरकार ने उनको इस घटना से मुक्त मान लिया है? ये वही कृषि मंत्री हैं जिनके अधिकारियों ने किसानों से 5 सौ रुपए प्रति हेक्टेयर फसल बीमा की किश्त के रूप में लिया था तो वहीं सूखा पड़ जाने के बाद किसानों को 1,2, 3, 5, 20, 55 और 80 रुपए के चेक बांटे गए।  ये वही कृषि मंत्री हैं जिनके कार्यकाल में दाल 3 सौ रुपए किलो बिकी और उसी वर्ष में दलहन उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदेश को कृषि कर्मण पुरस्कार भी मिल जाता है। ऐसे में सवाल तो यही है कि अगर राज्य में दलहन का उत्पादन ज्यादा हुआ था तो दाम कैसे

कर्रामाड़ गौशाला पर सरकार ने जड़ा ताला

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  कांकेर। भूख से मरी 250 से ज्यादा गायों की हत्या का दंश झेल रही कर्रामाड़ गौशाला पर राज्य सरकार ने जड़वा दिया ताला। इस समाचार को हमारी सरकार ने सबसे पहले उठाया था। घटना के चार दिनों के बाद जागे पशुपालन मंत्री ने  दिया था बयान। उसके बाद तो इस घटना को लेकर पूरे देश में प्रदेश की भाजपा सरकार की जमकर बदनामी हुई। अब इतने बड़े पाप के बाद सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों ने कर्रामाड़ गांव की कामधेनु ग्रामीण विकास संस्थान ने इसको बंद करने का निर्णय लिया। इसके बाद यहां बची 202 गायों को बालोद, धमतरी, कोंडागांव, गुरुर, डौंडी की गौशालाओं में भेज दिया गया है। सवाल तो यही उठता है कि क्या इस बहाने प्रदेश सरकार आगे की कार्रवाई से बचना चाहती है? पशुपालन मंत्री की वो गर्जना कहां गई जब उन्होंने कहा था कि हम जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। क्यों नहीं जनता को बताया गया कि अब तक इस मामले में कौन-कौन सी कड़ी कार्रवाई की गई है? डॉक्टर को किया निलंबित राज्य की विपक्षी पार्टी कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) ने मवेशियों की मौत के लिए सरकार को आड़े हाथ लिय

पुलिस ने खोली चालान की दुकान

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    उधर होम्योपैथिक डॉक्टर के घर से निकला मौत का सामान, चौराहों पर दुर्घटना में घायल होकर तड़पते इंसान, शहर में खुलेआम घूमते अपराधी और डॉन,इनको छोड़कर पुलिस ने खोली चालान की दुकान। चौंकिए मत श्रीमान यहां हेलमेट के नाम पर गरीबों की जेब तराशी जा रही है। पुलिस वाले भी नहीं बख्शे जाते हैं, मगर नेताओं को पुलिस ने दे रखा है अभयदान, उनका नहीं कटेगा चालान। तिरंगा यात्रा या फिर हो कोई रैली जैसे ही इनकी ओर आती है पुलिस अपनी दुकान समेटकर झटपट सुरक्षा का दावा करती उनके ईदगिर्द खड़ी हो जा ती है। ऐसे में सीधा सा सवाल कि क्या चालान के अलावा इनके पास     कोई   दूसरा काम नहीं है? रायपुर। रविवार को में होम्योपैथ डॉक्टर के घर से हथियारों की बरामदगी के बाद पूरे शहर में सनसनी फैल गई। तो वहीं पुलिस पूरे दिन चालानी कार्रवाई में मस्त रही। उसको इन सभी बातों से कोई लेना देना नहीं। तो वहीं शनिवार को भाजपा की तिरंगा रैली में कुछ गिनेचुने लोगों को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी के भी सिर पर हेलमेट नहीं दिखाई पड़ी। उस वक्त ये जांबाज पुलिस  वाले कहां थे? हमारी सरकार ने उठाया था मुद्दा- हमारी सरकार ने इस मुद्दे

Front and Last page of Hamari Sarkar of 28th August 16

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माज़रा पत्थरों का

कटाक्ष- निखट्टू- संतो....हरम और दैर के झगड़े कहां तक कोई समझाए, जिसे हर तरह फर्सत हो वो इस मैदान में आए। इधर भी राह में पत्थर उधर भी राह में पत्थर। इधर काशी में हैं पत्थर उधर काबे में भी पत्थर। इधर पत्थर का पूजन है उधर पत्थर को बोसा है। समझ में कुछ नहीं आता कि आखिऱ माज़रा क्या है? इतने सारे पत्थरों के बीच एक जगह और भी पत्थर हैं वो हंै कश्मीर में। आजकल वहां भी पत्थरों को लेकर चर्चा गर्म है। कुछ दीगर मुल्क परस्त लोग वहां पत्थरों का व्यापार कर रहे हैं। भारत शुरू से ही पत्थरों को पूजता रहा है। हम पत्थरों को तराश कर मूर्तियां बनाते हैं। पत्थरों का इस्तेमाल आशियाने बनाने में करते हैं उजाडऩे में नहीं। हम पत्थरों को पूजते हैं, लेकिन जब कोई हम पर ये पत्थर उछालता है तो उसको सजा भी ऐसी दी जानी चाहिए कि वो दोबारा पत्थर देखकर थर-थर कांपने लगे। पैलेट गन को लेकर तमाम तरह की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन जो लोग वहां रहते हैं उनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। मु_ी भर बिके हुए लोग पूरे समाज पर दादागिरी नहीं कर सकते। अगर करते हैं तो उनको क्या सजा दी जानी चाहिए ये कानून मु$कर्रर करेगा। पत्थर फेंकने वालों

मांझी के दु:ख में साझी

छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में अब तक डायरिया से कुल 23 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में अधिकांश लोग मांझी जनजाति के बताए जा रहे हैं। तीन सौ से अधिक लोग अभी भी बीमारी की चपेट में बताए जा रहे हैं। इस मामले को सबसे पहले हमारी सरकार ने ही उठाया था। इसके बाद फिर प्रशासन की तंद्रा टूटी। तब जाकर प्रशासन ने वहां के गांवों में कैंप लगाना शुरू किया। हालांकि अभी भी वहां के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। लोगों का बीमार पडऩा अभी भी जारी है। प्रशासन अपने स्तर पर बीमारी को रोकने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। ऐसे में सबसे अहम सवाल तो यही है कि क्या इस बीमारी से लडऩे की तैयारी पहले नहीं की जानी चाहिए थी। क्या पहली बार मैनपाट में इस तरह की घटना हो रही है। हर साल यहां डायरिया से बड़ी तादाद में लोगों की मौत होती है। इसका सबसे बड़ा कारण भी प्रदूषित पानी ही बताया जा रहा है। सरकार बड़े-बड़े  दावे करती है। थोक में घोषणाएं की जाती हैं मगर धरातल पर काम कौड़ी का नहीं होता। अगर थोड़ी सी भी तैयारी पहले कर ली गई होती तो आज संभवत: ये नौबन ही नहीं आती कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती। अब न लोग मरते

मैनपाट के मरीजों की बांस पर टिकी आस

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    सरगुजा। जिस राज्य का मुखिया खुद डॉक्टर हो वहां की ये शर्मनाक व्यवस्था देखकर शर्म से सिर झुक जाएगा। यहां न एंबुलेंस न दवाएं, और न ही इनकी खबर लेने वाला कोई सलीके का डॉक्टर। उफनते नदी नालों को पार करने के लिए बांस पर मरीजों को ढोते हैं। उस पर भी तुर्रा ये कि यहां डॉक्टर से हाथापाई गैरजमानती अपराध की श्रेणी में आता है। भले ही उस डॉक्टर की लापरवाही से तमाम लोगों की जान चली जाए। सरकार उसको कुछ भी नहीं बोलने वाली। ये घटना है मैनपाट की जो एक प्रकार से मरघट बन चुका है । यहां डायरिया से अब तक 23 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और 350 से ज्यादा      मरीज सामने आए हैं। अब तक मिले 3 सौ मरीज ,यहां के लोगों ने नहीं देखी संजीवनी और महतारी एक्सप्रेस कहां-कहां है डायरिया     का प्रकोप- सुपलगा, नर्मदापुर, पैगा, सप्रादर, कर्महा, बंदना, बरीमा, असगांव जैसे तमाम गांवों में डायरिया फैला हुआ है। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि यहां अभी भी 350 से ज्यादा नए मरीज के सामने आए हंै। इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपने लोगोंं के वहां पहुंचने के दावे कर रहे हैं। पानी में पाई गई

Front and Last page of Hamari Sarkar of 27th August 16

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शिक्षकों को शिक्षा की जरूरत

कटाक्ष- निखट्टू संतों... हमारे देश में पहले गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करने का प्रचलन था। वहीं जाकर लोग वेद, आयुर्वेद, उपनिषद, अस्त्र- शस्त्र संचालन, व्याकरण, ज्योतिष और खगोलशास्त्र की शिक्षा ग्रहण किया करते थे। वहां रहने वाले गुरुजन इन छात्रों को नि:शुल्क ये शिक्षा दिया करते थे। जंगल का कंदमूल खाकर वहां बच्चे गुजारा करते थे। यह काल इनका ब्रह्मचर्य काल होता था। इसके बाद वहां से वापस आते थे तो इनका उपनयन संस्कार होता था। यही लोग आगे चलकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते थे और एक संस्कारी नागरिक बनते थे। समय बदला, शिक्षा बदली, लोग बदले, तरक्की भी खूब हुई। जिन गुरुजी को कभी अल्पतम पैसे बतौर दक्षिणा मिलते थे। उन्हीं को आज सातवां वेतनमान मिलने लगा। तो शिक्षा का स्तर इतनी तेजी से गिरा कि अब संभाले नहीं संभल रहा है। आलम ये है कि 85 फीसदी बच्चों को तो  जोड़ और घटाना तक नहीं आता। शिक्षा विभाग अपने विकास का राग लगातार अलापे ही जा रहा है। आठवीं के छात्रों को ठीक से 20 तक पहाड़ा भी नहीं आता। और तो और बीए के छात्र-छात्राओं को एक पन्ने ढंग से न तो हिंदी लिखनी आती है और न ही अंग्रेजी। व्याकरण की तो बा

सुशासन का सच

मौसमी बीमारियों से निपटने में स्वास्थ्य विभाग के इंतजामात नाकाफी साबित हो रहे हैं। आलम ये है कि प्रदेश में अब तक 24 से ज्यादा लोगों की मौत डायरिया से हो चुकी है। सबसे ज्यादा 21 मौतें मैनपाट में हुई हैं। तो वहीं स्वास्थ्य महकमे के पास इससे निपटने के कारगर उपाय तक नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों में दवाओं का पूरी तरह अभाव है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में अभी तक 50 से ज्यादा लोगों के भर्ती होने की खबर है। तो वहीं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मैराथन बैठकों में व्यस्त बताए जा रहे हैं। अधिकारी कर्मचारी भी बैठकों को लेकर ही मंत्री बंगले का चक्कर काट रहे हैं। दवाओं के अलावा अस्पतालों में अब तो जगह का भी अभाव होने लगा है। इसके कारण लोगों को जमीन पर लिटाकर इलाज किया जा रहा है। इस शर्मनाक व्यवस्था की जितनी भी मज़म्मत की जाए कम होगी। प्रदेश के मुखिया से लेकर तमाम कद्दावर मंत्री अपनी सरकार की सफलता के दावे करने से नहीं अघाते, लेकिन असलियत ये है कि ये सरकार जनता से कोई सरोकार ही नहीं रखती। सुराज का दावा सूरज की चुभती किरणों तक ही सीमित रह जाता है। जैसे ही गर्मी घटी कि सुराज खत्म जनता फिर उसी र

केशकाल के जाम ने किया जीना हराम

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केशकाल घाट शुक्रवार की रात से फिर बंद है । इसके प्रथम मोड़ पर  ट्राला पलट गया है।   महीने में ये मार्ग लगभग 20 दिन बंद ही रहता है कभी बस पलट जाती है तो कभी ट्राला.....विकल्प के तौर पर नई सड़क का सर्वे चल रहा है लेकिन वो कब तक चलेगा किसी को नहीं मालूम....। यहां जाम में फंसकर लोग आए दिन हलाकान होते हैं। कई बार तो इसी जाम में फंसे मरीज की जान भी चली गई थी। मगर लोगों की लाचारी है कि कुछ किया भी तो नहीं जा सकता है? कांकेर। कांकेर के पुलिस अधीक्षक एमएल. कोटवानी ने बताया कि वैसे तो ये कोंडागांव में आता है, मगर यहां आए दिन पलटने वाले भारी वाहनों के कारण जाम लगता आम बात है। ऐसे में इस जाम ने लोगों का जीना हराम कर रखा है। आदिवासियों ने किए तमाम आंदोलन हालात ये है कि इसको सुधारने के लिए तमाम आदिवासी संगठनों ने आंदोलन भी किया मगर कोई फायदा नहीं निकला। अभी भी सरकार उसी पुरानी रौ में बह रही है। ऐसे में सवाल तो यही है कि इस घुमावदार सड़क की समस्या से निजात पाने की क्या तरकीब लगाई जाए। नई सड़क का सर्वे कुछ लोग तो ये भी बता रहे हैं कि सरकार नई  शेष पृष्ठ 5 पर... सड़क का सर्वे भी करवा रही है, लेकिन ये

डायरिया के मरीजों से पटे अस्पताल,स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

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 रायपुर। मैनपाट में 21 मरीजों की मौत के बाद डायरिया ने दबे पांव गांवों में फैलता जा रहा है। तो वहीं स्वास्थ्य विभाग के सारे दावे बेकार साबित तो रहे हैं। आरंग के गोढ़ी गांव में दो मरीजों की मौत हो चुकी है और 20 से ज्यादा पीडि़त बताए जा रहे हैं। राजधानी रायपुर में पिछले चार दिनों में मेडिकल कालेज में 50 से ज्यादा मरीजों को भर्ती कराया गया है। ये जानकारी वहां के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दी। लापरवाही का आलम ये है कि यहां मरीजों को जमीन पर लिटा कर इलाज किया जा रहा है। तो वहीं स्वास्थ्य मंत्री पिछले एक महीने से मीटिंग में व्यस्त बताए जा रहे हैं। सवाल तो ये है कि आखिर गरीबों की सरकारी दवाई कहां गई? बारिश में होने वाली मौसमी बीमारियों से निपटने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इसका जवाब न तो प्रशासन के अधिकारियों के पास है और न ही स्वास्थ्य मंत्री के। आरंग में 2 की मौत -  डायरिया राजधानी रायपुर के करीब पहुंच गया है। आरंग के गोढ़ी गांव में दो की मौत के बाद वहां 25 से अधिक पीडि़त बताए जा रहे हैं। मौसम बिगडऩे के साथ खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद सरकारी अस्पतालों में डायरिया, उल्टी, बुखार और खां

वर्दी का असर

कटाक्ष- निखट्टू- एक थानेदार को गज़ल लिखने का शौक चर्राया। उसने सरकारी कागज उठाया और शुरू हो गया। कई गज़लें लिख लेने के बाद उसने इलाके के मानिंद शायर ज़नाब अख़्तर साहब को थाने बुलाया। उसने गज़ल का मतला यानि पहला शेर अर्ज़ किया। सुनते ही अख़्तर साहब उखड़ गए। बिदकते हुए बोले अमां मियां... ये भी कोई शेर है, न $काफिया न रदी$फ न बहर में और न ही वज्र में? मियां आपने तो शेर को चूहा बना दिया। अब थानेदार आखिर थानेदार ही ठहरा। उसका भी भेजा भन्ना गया उसने तत्काल दो सिपाहियों को बुलाया और बोले ले जाओ इस बिगड़ैल बुड्ढ़े को हवालात में बंद कर दो। सिपाहियों ने उन शायर मोहतरम को अंदर कर दिया। जैसे ही ये खबर फैली पूरे शहर के लोग थाने की ओर दौड़ पड़े। शहर में ज़नाब अख्तर के ढेरों चाहने वाले थे। तत्काल जमानत करवाई गई। पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे कि दोबारा थानेदार ने दूसरी गज़ल लिखी और फिर अख्तर साहब को थाने बुलाया और शायर मोहतरम के बिगडऩे पर उनको कैद कर दिया। इस बार छह दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से छूटे। अभी दस दिन ही बीता था कि थानेदार ने तीसरी मर्तबा उनको बुलवाया....जैसे जनाब अख़्तर थाने में तशरीफ ले गए त

सुस्त पड़े तंत्र की तंद्रा

लोक की सेवा के लिए बनाया गया तंत्र अब कूद कर उसी लोक के कंधे पर सवार हो गया है। अंधा बांटे रेवड़ी आप-आप ही देय की तर्ज पर मंत्रियों और सांसदों तथा विधायकों तथा अफसरों का वेतनमान जिस तरह से  बढ़ाया जा रहा है। उस रफ्तार से अगर जिम्मेदारियां बढ़ाई गई होतीं तो देश की जनता को ये दिन देखने न पड़ते। स्वास्थ्य विभाग के नाम पर आने वाला हर साल का मोटा बजट कहां जा रहा है, इसको देखने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है। हद तो तब हो गई जब उड़ीसा के बालासोर में टीबी की बीमारी से मरी एक महिला के शव को ले जाने के लिए कोई नहीं आया। लाचार और बेबस पति ने अपनी पत्नी का शव कंधे पर उठाया और अपने घर की ओर रवाना हो गया। हालांकि बाद में प्रशासन को शर्म आई और उसने एंबुलेंस भेजवाई। तो वहीं उसी जिले में दूसरी घटना भी देखने को मिली जहां रेल की चपेट में आने से एक महिला की मौत हो गई। उसको मर्ग ले जाना था पोस्टमार्टम के लिए। अस्पताल ने शव वाहन नहीं दिया तो रेलवे पुलिस के लोगों ने लाश की हड्डियां तोड़ी और उसकी गठरी बनाकर बांस से बांधा और उसको स्टेशन ले गए। तो वहीं मध्य प्रदेश के जबलपुर में दबंगों ने एक शव को श्मशान ले जाने क

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ठेकेदारों के ठेंगे पर आबकारी के नियम-कानून

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बेमेतरा में  सुबह शराब, शाम शराब, देर रात भी मिलती है शराब, आलम ये है कि इस शराब ने यहां का माहौल खराब कर रखा है। कुल मिलाकर असलियत ये है कि लाइसेंसी दुकानों के ठेकेदारों ने सराकारी नियम कायदे को ताक पर रख दिए हंै। उनका कहना है कि दो करोड़ के घाटे को पूरा करने के लिए ये सुविधा उनको अधिकारियों ने मुहैय्या कराई है। ऐसे में सवाल तो यही है कि फिर उन नियम कायदे का क्या हुआ जिसकी दुहाई आबकारी विभाग देता आ रहा था। बेमेतरा। जिले के तमाम इलाकों में शाम होते ही ठेले एवं गोपचे में शराब बेचने वालों का मेला सा लग जाता है। जिसके कारण ग्रामीण महिलाओं का घर से निकलना मुश्किल होता जा रहा है ।  नवागढ़ विधानसभा क्षेत्र में ऐसा कोई गांव नहीं है जहां शराब नहीं बिकती हो, जबकि लाईसेन्सी मदिरा शराब दुकान नवागढ़,दाड़ी,टेमरी और मारो में चलती है। खास कर नवागढ़ देशी मदिरा दुकान में यह अनिमितता दिखाई देता है जो शासन के निर्देशों का खुला उल्लंघन कर सरकारी नियमों को ताक में रखकर सुबह 7 बजे से अवैध रूप से खुलेआम बैखौफ होकर शराब बिक्री कर रहे हैं। ऐसा होने का कारण- संचालक शुभम जायसवाल एवं पण्डे राम प्रसाद ने  हमारे

तार-तार होती मानवता और लाश का भी सत्यानाश...!

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        पत्नी का शव पति को ढोने वाली घटना के बाद भी देश में मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाली दो घटनाएं सामने आईं। उड़ीसा के बालासोर में गुरुवार को अस्पताल के शव वाहन नहीं देने पर रेलवे पुलिस ने  मृत महिला के शरीर की हड्डियां तोड़कर उसकी गठरी बनाई और उसे बांस के डंडे में बांध कर स्टेशन पहुंचाया। बालासोर । ओडिशा के कालाहांडी में एंबुलेंस या मोर्चरी वैन न दिए जाने पर पत्नी की लाश को 12 किलोमीटर तक कंधे पर ढो कर ले जाने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है कि बालासोर जिले से एक और शर्मनाक खबर सामने आई है। बालासोर में भी गुरूवार को अस्पताल वालों के मोर्चरी वैन देने से इनकार करने के बाद रेलवे पुलिस ने महिला के मृत शरीर की हड्डियां तोड़कर, उसकी गठरी बनाकर बांस के डंडे और मजदूरों के जरिये उसे ढोकर स्टेशन पहुंचाया गया। तो वहीं मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के पाटन तहसील के बमनोदा गांव में गुरुवार को ही दबंगों ने शवयात्रा का रास्ता रोक दिया। लिहाजा लोगों को एक तालाब के बीच से होकर शव यात्रा निकालनी पड़ी। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या  अब अवाम की मानवता मरती जा रही है? बांस में बांध कर ढोई लाश- ब