सुराज के विकास की असलियत
सुराज की सरकार जिस विकास का ढोल पीट-पीटकर लोगों को सुना रही थी। एक ही बारिश में उसकी खोल फट गई। कहीं दरारें तो कहीं होल, खोल रहे हैं इनके भ्रष्टाचार की पोल। पानी के बहाव में कहीं सड़कें तो कहीं तटबंध बह गए। बाकी बचे निशान सरकार और उसके ईमानदार ठेकेदारों और इंजीनियरों की दास्तान कह गए। बारिश में हो गया करोड़ों का सफाया ये तो राज्य के कई जिलों का मंजर देखने के बाद समझ में आया।
इससे एक बात तो पक्की हो गई कि सरकार और उसके अहलकार एक साथ मिलकर मिशन कमीशन चला रहे हैं। उसका लाभ तमाम ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे लोग पा रहे हैं। उसी के बलबूते पर ये सुराज के विकास का राग मुख्यमंत्री उडऩ खटोले पर उड़-उड़ कर गा रहे हैं। जनता उनका भाषण सुनकर कभी तालियां पीटती है तो कभी अपना सर। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि सरकार आखिर उसको किस दिशा में ले जाना चाहती है? बदहाली की तस्वीरें एक ओर तो दूसरी ओर आदिवासियों और गरीबों की गरीबी का मंज़र। जहां उपजाऊ जमीन को प्रदूषित पानी बना रहा है बंजर। सरकार घोंप रही है किसानों की पीठ में खंज़र। राज्य में अभी सात महीनों में तीन सौ से ज्यादा किसान कर चुके हैं आत्महत्या। तो वहीं सरकार और उसके अफसरों का इससे कोई लेनादेना नहीं है। उनके लिए तो ये महज एक तमाशा है।यहां वातानुकूलित कमरों में आंकड़ों के घोड़े सरकारी फाइलों में दौड़ाए जाते हैं। इसके बाद उसी को सफलता बताकर उसका महिमा मंडन किया जाता है। जब कि वो योजना धरातल पर आने के पहले ही मर जाती है, तो यहीं से भ्रष्टाचार का मुंडन संस्कार शुरू होता है।
प्रदेश की जनता को अगर इस महान संकट से उबारना है तो सरकार को सबसे पहले ये सुनिश्चित करना होगा कि तमाम सरकारी योजनाओं की शुरुआत नया रायपुर में नहीं, बस्तर के उन सुदूरवर्ती गांवों में किया जाए जहां तक पहुंचते-पहुंचते वे दम तोड़ देती हैं। जनता उनको पाने की उम्मीद तक छोड़ देती है। ऐसे में अगर ये योजनाएं वहां से शुरू होंगी तो इनकी शहरों की ओर आने की रफ्तार भी तेज होगी। इनका क्रियान्वयन ईमानदारी से हो यह बात भी जिम्मेदारों को गांठ बांध लेती चाहिए। यदि सरकार ऐसा करती है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य का विकास वास्तव में होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।
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