एक कारगर कारागार की कहानी
हमारे इतिहास में महर्षि बाल्मीकि की कथा सभी को मालूम है, कि कैसे उनका हृदय परिवर्तन हुआ और वे एक खूंखार अपराधी से संस्कृत के विद्वान बन गए। अब यही काम राज्य की रायपुर केंद्रीय कारागार में शुरू हो चुका है। इस जेल में बंद तमाम कैदियों को संस्कृत की शिक्षा दी जा रही है। इनको ज्योतिष, आयुर्वेद, हस्तरेखा, प्रवचन एवं वेद मंत्रों की तालीम दी जा रही है। इसके अलावा उनकी सजा पूरी होने के बाद उनको रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा। कैदियों के रेस्टोरेंट में उनके हाथों से बने स्वादिष्ट नाश्ते तो तमाम लोग कर चुके हैं। अब जल्दी ही कोई जेल से छूटा कैदी किसी मंदिर में वैदिक रीति से किसी यजमान को भगवान की पूजा कराता दिखाई देगा। यही नहीं राज्य की इस जेल में इस वक्त कुल 839 कैदी तमाम विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। तो वहीं कई लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण देकर भी दक्ष बनाया जा रहा है। राज्य सरकार की इस शानदार कोशिश को देखने के बावजूद तो कोई भी कहेगा कि वास्तव में ये कारागार तो कैदियों के लिए कारगर साबित हो रही है। अपराधी मानसिकता और अपराध से उबरने की कोशिश कर रहे इन लोगों की पूरी जीवन शैली ही यहां बदल जाएगी। इतनी अच्छाइयों को समेटे ये विशाल भवन और यहां रहने वाले अधिकारी लगातार इसी बदलाव की कोशिश में पूरे मनोयोग से लगे नजर आते हैं। ऐसे में इसको सुधारगृह यदि कहा जाए तो काफी अच्छा लगेगा। वैसे भी रायपुर जेल के आगे पूरे देश की जेल फेल हैं। सरकार की कोशिश यही होनी चाहिए कि कैदियों को हाथ के हुनर सिखाकर ही वहां से बाहर निकालें ताकि जेल से बाहर आने के बाद उनको अपराध की दुनिया में दोबारा कदम रखने की जरूरत ही महसूस न हो। तो वहीं यहां से छूटने के बाद उनको अपनी गृहस्थी चलाने के लिए किसी का मोहताज न होना पड़े।
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