ले लिए पैसे तो जानकारी नहीं दे रहे कैसे


   मुंगेली। श्रम विभाग के जनसूचना अधिकारी ने सूचना के अधिकारों का मजाक बना कर रख दिया है। गरीब आवेदकों से पहले मनमानी रकम की मांग की जाती है, ताकि वो डर कर चुप हो जाएं। इसके बावजूद भी जो उनकी मुंह मांगी रकम जमा कर देते हैं  तो उनको जानकारी देने के नाम पर टरकाया जाता है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब ले लिए पैसे तो जानकारी नहीं दे रहे कैसे? पैसे जमा करने वाला आवेदक है हलाकान, परेशान तो श्रम विभाग भी सोया है लंबी तान। सूचना देने की आड़ में भी लंबा खिलवाड़, विभागीय अधिकारियों को नहीं पता कि कितनी रकम लेनी चाहिए
क्या है पूरा मामला-
सूचना का अधिकार कानून का खुलेआम माखौल उड़ाने से बाज नही आ रहे अधिकारी इसका ताजा उदाहरण मुंगेली के श्रम विभाग में देखने को मिला जहां आवेदक मोहित जाटवर के द्वारा जिले में लोक सुराज के दौरान विभाग को मिले आवेदन पत्रों की जानकारी मांगी थी जिस पर श्रम पदाधिकारी एवं जनसूचना अधिकारी  ज्योति शर्मा ने आवेदक को जानकारी के एवज में सर्वप्रथम 1,29,584/- (एक लाख उन्तीस हजार पॉच सौ चौरासी) रुपए का बिल भेजा गया। इसके बाद आवेदक ने अपना रुख स्पष्ट किया कि उसे सिर्फ आवेदन पत्रों की सत्यापित प्रति चाहिए । इसके बाद उन्होंने 32396 रुपए का बिल थमा दिया।  जब आवेदक उक्त रकम जमा करने विभाग पहुंचा तो उससे कहने लगे कि दस्तावेजों का आंकलन नहीं किया गया है । उतनी रकम की जानकारी नहीं होगी ऐसा कहकर 25000 रुपए लेकर उसकी रसीद आवेदक को थमा दी। इसके बावजूद  भी आवेदक को जानकारी नहीं दी जा रही है। आवेदक के पूछने पर 2-4 दिन में जानकारी लेने का हवाला दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आवेदक मोहित जाटवर ने श्रम विभाग में लोक सुराज अभियान के दौरान  27अप्रैल  से 24 मई तक निर्माण श्रमिकों के रूप में पंजीयन हेतु जो आवेदन विभाग को मिला है उसकी सत्य प्रतिलिपि प्राप्त करने 7 जून को सूचना का अधिकार के जानकारी मांगी थी। इस पर श्रम पदाधिकारी/ जनसूचना अधिकारी ने 15 जून को पत्र के माध्यम से राशि 129584 रुपए जमा करने हेतु निर्देशित किया ।  विभाग ने इतनी बड़ी रकम का हवाला देकर अपना नजरिया स्पष्ट कर दिया गया था कि वे आवेदक को जानकारी नही देना चाहते ।  जिस पर आवेदक द्वारा पुन: एक आवेदन पत्र संलग्न कर यह अवगत कराया गया कि उसे सिर्फ आवेदन पत्रों की जानकारी चाहिए। इसके बाद विभाग ने 26जुलाई को पुन: एक पत्र आवेदक के नाम पर भेजा। उसमें श्रमिकों के पंजीयन संबंधी आवेदन 8099 होना बताया और कुल पेज 16198 उल्लेखित किया गया जिसकी राशि 32,396 रुपए बताई गई।  आवेदक 10 अगस्त को 32,396 रुपए जमा करने श्रम विभाग पहुंचा। तो श्रम पदाधिकारी आश्चर्य की मुद्रा में नजर आए क्योंकि उनका अनुमान यही था कि इतनी राशि देखकर आवेदक के होश उड जाएंगे और आवेदक जानकारी नहीं मांगेगा। इसके बाद जानकारी के एवज में मांगी गई राशि 32,396 रुपए लेने से इंकार करते हुए यह कहा गया कि दस्तावेजों का आंकलन नहीं किया गया है एवं अस्थायी तौर पर 25000 रुपए जमा कर रसीद दी गई।
पैसे पटाने के बाद भी नहीं दे रहे जानकारी-
ज्ञात हो कि सूचना का अधिकार कानून में जानकारी देने के लिए निर्धारित अवधि का उल्लेख है। ऐसे में श्रम विभाग      शेष पृष्ठ 5 पर...
 मुंगेली के जनसूचना अधिकारी जानकारी नहीं देने की फेर में आवेदक से राशि लेने के बाद भी जानकारी उपलब्ध करा नही पा रहे हैं।



कड़े हैं प्रावधान
आरटीआई जानकारों की मानें तो आवेदक के लिए भ्रम की स्थिति पैदा करना, जानकारी देने के एवज में मोटी रकम का बिल थमाना ये ऐसे कृत्य हैं जो आरटीआई कानून के खिलाफ हंै। ऐसे मामलों में जनसूचना अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान है। तो वहीं पैसे लेकर जानकारी न उपलब्ध कराने के मामले में आवेदक जनसूचना आयोग के जिला फोरम में जा सकता है। उसके बाद राज्य और फिर केंद्रीय फोरम में अपील दायर कर सकता है।
आप उनको बोलिए वो कलेक्टर मुंगेली से मिल लें काम हो जाएगा।
-ओंकार सिंह
सचिव छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग
मैं अभी तत्काल मामले को देखती हूं कि क्या मामला है।
-किरण कौशल
कलेक्टर मुंगेली।






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