मीटिंग में मंत्री और मुख्यमंत्री


संपादकीय-

छत्तीसगढ़ का शासन-प्रशासन पूरी तरह निरंकुश हो चला है। यहां न तो मंत्री काम करना चाहते हैं और न ही अधिकारी। कांकेर के दुर्गूकोंदल के कर्रामाड़ गौशाला में पिछले तीन माह में  भूख से 250 गायों की मौत हुई। 80 से ज्यादा गाएं अभी भी बीमार बताई जा रही हैं। इसके बावजूद भी कृषि मंत्री को पता नहीं होना इनकी गैर जिम्मेदारी को दर्शाता है। वैसे भी प्रदेश के कृषि मंत्री को भीड़ से घिरे रहने की आदत है। इतनी भीड़ आसपास देखकर उनको लगा कि अब वो इंसान से भगवान हो गए हैं। हिसाब से अगर उनकी सारी घोषणाओं और उनके क्रियान्वयन की पड़ताल की जाए तो पता चल जाएगा कि वे प्रदेश के किसानों के कितने हितैषी हैं? अलबत्ता बहाना यही होता है कि मंत्री जी मीटिंग में व्यस्त हैं। इतनी सारी मीटिंग्स तो होती हैं मगर उनका नतीजा कहीं भी नज़र नहीं आता। किसानों को धड़ल्ले से नकली बीज, खाद और कीटनाशक बेंचकर फर्जी कंपनियां किसानों के पैसे लेकर फरार हो जाती हैं,मंत्री जी मीटिंग करते रह जाते हैं।
ढ़ाई सौ से ज्यादा किसान सात महीनों में आत्महत्या करते हैं। किसानों को 1,2,3, 5 और 30 रुपए के फसल बीमा के चेक बांटे जाते हैं मंत्रीजी मीटिंग करते रह जाते हैं। राज्य में पशुधन का उत्पादन घटता है, पशुओं की तस्करी बढ़ती है, पड़ोसी राज्यों का धान छत्तीसगढ़ में खपाया जाता है और मंत्री जी मीटिंग कर रहे हैं। सवाल ये है कि आखिर मंत्रीजी कितनी मीटिंग करते हैं? उनकी मीटिंग से प्रदेश की जनता का क्या लाभ? क्या उनको सिर्फ मीटिंग करने के लिए मंत्री बनाया गया है? संभवत: इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के सुखिया मुखिया ने महानदी भवन को पुरानी राजधानी से इतना दूर बनाया। ताकि प्रदेश के मंत्री आराम से मीटिंग का सुख प्राप्त कर सकें। ऐसे में अपने चौथे कार्यकाल की उम्मीद लगाए मुख्यमंत्री लगातार अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। आदिवासी वोट तेजी से कट रहे हैं समर्थक पीछे हट रहे हैं। भीड़ में शामिल लोग घट रहे हैं और मुख्यमंत्री अगली बार मुख्यमंत्री बनूंगा रट रहे हैं। ढाई साल में जनता की बारी आएगी तो वो भी इनसे जरूरी मीटिंग करवाएगी।

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