शंख ने उगाए पंडिताइन के पंख

कटाक्ष-

निखट्टू-
संतो... एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण के पास एक शंख थी। उसको ये वरदान प्राप्त था कि उसे बजाकर उससे जो कुछ भी मांगोगे वो मिल जाएगा। विडम्बना ये थी कि मांगने वाले को तो एक ही चीज मिलेगी मगर उनके पड़ासियों को दो-दो मिलेगी। अब वो ब्रह्मण ठहरा ईष्र्यालु लिहाजा उसकी पूरी जिंदगी अभावों में गुजरी मगर उसने न तो ये बात किसी को बताई और न कभी उस शंख को बजाकर कुछ मांगा। उसको पता था कि मुझे तो एक ही मिलेगा मगर पड़ोसी मालामाल हो जाएंगे। एक दिन पंडिताइन को एक सेठानी ने बादाम का हलवा दिया था। उसको पंडिताइन ने पंडित के लिए रख दिया। पंडित जी शाम को घर पहुंचे, तो पंडिताइन ने उनकी सेवा में वो हलवा पेश किया। पंडित तो हलवा देखते ही प्रसन्न हो गए। रात को जब वे सोए तो उनसे नहीं रहा गया और उन्होंने वो राज़ अपनी पत्नी को बता दिया। अब बारिश का महीना था जोर-जोर से पानी बरस रहा था और छप्पर कई जगह से टपक रही थी। पंडिताइन से नहीं रहा गया उन्होंने सोचा क्यों न शंख देवी से कुछ मांगा जाए? इसी बहाने इनकी परीक्षा भी हो जाएगी और हमारा काम भी बन जाएगा। शाम को जब पंडित जी गांव में लौटे तो वहां का नजारा बदला-बदला सा दिखा अब बड़ी मुश्किल से पूछते-पूछते अपने घर आना पड़ा। आते ही पंडिताइन से पूछा कि क्या तुमने वो शंख बजाई थी। पंडिताइन ने मान लिया कि हां। पंडित जी कुछ नहीं बोले। पंडित जी को नहाने के लिए दूर दूसरे के तालाब में जाना होता था। एक दिन जब पंडित जी भ्रमण करने अपने यजमानों के यहां गए थे तो पंडिताइन ने शंख देवी से एक तालाब मांग लिया। उनके तो एक ही तालाब हुआ पड़ोसियों के दो-दो हो गए। पंडित जी ये देखकर चुप रहे। इसके बाद एक दिन फिर पंडिताइन ने अपने लिए एक कुआं मांग लिया। पड़ोसियों के दो-दो कुएं हो गए। ये देखकर पंडित जी का क्रोध सातवें आसमान पर चला गया। उन्होंने तत्काल स्नान किया और शंख देवी को बजाकर कहा...हे शंख देवी मेरी एक आंख फोड़ दो। बस फिर क्या था पड़ोसी अंधे हो गए...अब कोई घर के आगे बने कुएं में गिरा तो कोई तालाब में डूबने लगा। हाहाकार मच गया तो फिर बेचारी पंडिताइन ने पंडित की आंख  ठीक होने का वरदान मांगा और लोग ठीक हो गए। तो ज्यादा ईष्र्या का यही होता है असर समझ गए न सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।

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