करजा लेकर मर जा





प्रदेश के जांजगीर जिले के 15 हजार 488 किसानों की कुर्की कभी भी हो सकती है। इसके पीछे का कारण ये है कि ये वो किसान हैं जो करजा लेकर मर जा की नीति पर कायम रहते हैं। सरकारी पैसा लेते वक्त तो बहुत अच्छा लगता है। जब उसका ब्याज भरना पड़ता है तो भारी पडऩे लगता है। इस बार रहने दो अगली बार पूरा एक साथ भर देंगे। अरे भागे थोड़े ही जा रहे हैं, दे -देंगे आज नहीं तो कल। इसी के चक्कर में ये बोझ लगातार  बढ़ता गया।
आलम ये है कि मजबूरन बैंकों को इन लोगों को डिफॉल्टर घोषित करना पड़ा। अब इनको नोटिस तामील की जा रही है। इसके बाद इनकी संपत्ति की कुर्की की कार्रवाई होगी। प्रदेश के ज्यादातर किसान कम पढ़े लिखे अथवा अशिक्षित हैं। तो कुछ सरकारी और दलालों की साजिश का भी शिकार बने होंगे। राज्य के रायगढ़ में कुछ आदिवासियों को जमींदार बताकर सचिवों और पटवारियों के साथ बैंक अफसरों ने मिलकर मोटा गोलमाल किया था। मामले का खुलासा होने पर बैंक के आलाअधिकारियों की आंखें फटी की फटी रह गईं कि ऐसा भी हो सकता है क्या?
मजेदार बात जिनके ऊपर बैंक का छह लाख रुपए का लोन था उनकी लुंगी नौ जगह से सिली हुई थी। बनियान की हालत ऐसी कि अगर कोई सूंघ ले तो उल्टियां करते-करते थक जाए। इसका भी मूल कारण गरीबी है।
तो यहां कर्जा लेने वाले लोग दो तरह के हैं एक तो किसान और दूसरे वो लोग जो अपनी अचानक पडऩे वाली जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैं। अब काम निकल जाने के बाद उस कर्जे को लेकर एक धारणा पाल लेते हैं कि सरकारी कर्जा है आज नहीं तो कल दे  ही देंगे। बस इसी के चलते बढ़ जाती है बकाए की रकम। फिर शुरू होता है टॉर्चर और गिरफ्तारी। ऐसे में लोगों को चाहिए कि बैंकों से कर्ज लेते समय जितनी चिंता पैसे लेने की रहती है, उससे दो गुनी चिंता उसको अदा करने की होनी चाहिए। इससे किसानों और अन्य लोगों तथा बैंकों के बीच एक विश्वास और एक रिश्ता कायम होगा जो भविश्य में निहायत फायदेमंद होगा। ---------------------------------------------------------------------------------------------------

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