टूटते समाज पर राज

कटाक्ष-

निखट्टू
संतो...टूट गए तो छूट गए और भारत में हो तो लूटे भी जाओगे। इसमें कोई दो राय नहीं है। इसको यूं समझें कि एक बार एक दलित के खेत से क्षत्रिय, ब्राह्मण और नाई जाति के तीन बच्चों ने गन्ना चुरा लिया। वो दलित अपने खेत की रखवाली करता हुआ वहां आ धमका। अब उसने दिमाग चलाया और बोला ये तो ठाकुर साहब के पोते हैं हमारे राजा हैं इनकी बात छोड़ देते हैं। वो ब्राह्मण है वो तो सबके हैं, तू नाई बता क्यों चुराया मेरे खेत से गन्ना? इससे पहले की वो नाई का बेटा कुछ बोलता कि एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर दलित ने जड़ दिया। उसके बाद ब्राह्मण की ओर घूमा बोला ये नाई है जैसे हमारा वैसे सभी का। इसके पिता अच्छे आदमी हैं सबके बाल काटते हैं। वो हमारे राजा हैं  इन दोनों की बात छोड़ देते हैं। अब तू मंगन ब्राह्मण बता तूने कैसे तोड़ा मेरे खेत से गन्ना? फिर झन्नाटेदार थप्पड़ पंडित के गाल पर। उसके बाद फिर बोला ये दोनों तो नाई पंडित हैं सभी के काम आते हैं जब इनको नहीं छोड़ा तो तुमको कैसे छोड़ दें? कहते ही एक झन्नाटेदार थप्पड़ ठाकुर साहब को भी दे मारा, मगर अब बात तीनों की समझ में आ चुकी थी। वे उस दलित का इरादा भांप चुके थे। एक साथ बोले भइया ऐसा है कि हम बकाए का हिसाब लेकर कभी घर नहीं जाते। उसकी अदायगी तत्काल वहीं किए देते हैं। बस फिर क्या था तीनों ने चूसने से बचे गन्ने से उस दलित की जमकर पिटाई कर दी। किसी तरह चीखता -चिल्लाता वो गांव में पहुंचा और लोगों को बताया कि इन लोगों ने गन्ना भी चुराया और मुझे मारा भी। सरपंच ने तीनों के गाल पर पड़े लाल निशान को देखा और फिर दलित को समझाया कि थोड़े से गन्ने के लिए इतनी बड़ी सजा नहीं दी जाती, समझाया भी तो जा सकता था?
दलित हाथ जोड़कर बोला सरपंच जी समझ गए वो बोले क्या... दलित ने कहा कि मैंने जो सियासत इन बच्चों के साथ खेली थी वो मेरे लिए नुकसानदायक साबित हुई। आजकल सियासत में भी यही दांव खेला जा रहा है, समझ गए न सर.... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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