काहे नहीं नक्सली बनाया
कटाक्ष-
निखट्टू-
छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की शादी और फिर सरकारी नौकरी और आत्मसमर्पण का हितलाभ मिलता देखकर यहां के युवाओं का मन भी माओवादी बनने का ख्याल जरूर आता होगा। उसका सीधा सा कारण है कि एक पढ़ा लिखा युवक बेरोजगार घूम रहा है और एक सत्ताइस लोगों की हत्या और करोड़ों की सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को न सिर्फ लाखों रुपए मिल रहे हैं बल्कि सरकारी नौकरी और दुल्हन भी मिल रही है। धूमधड़ाके के साथ शादी की जा रही है। सावन का मनभावन महीना भगवान भोलेनाथ की आराधना का होता है। अब ऐसे पावन महीने में अगर किसी कुंवारे का ब्याह हो जाए तो फिर भला क्या कहने? किसी कवि ने भी यही कहा है कि - खाए को भंग, नहाए को गंग, चढै़ को तुरंग ओढै को दुशाला। यही वर मांगत हौं शिवशंकर दो मृग नयनी कि दो मृगछाला। मगर यहां तो मृगनयनी के साथ-साथ नोटों के बंडल और सरकारी नौकरी मिल रही है। ये देखकर गांव का गंवई किसान अपने बेटे को जब भी दुत्कारेगा तो कहेगा कि बैठे-बैठे रोटियां तोड़ रहा है घर में। अरे अब तक नक्सली भी बना होता तो धनधान्य, बहू और सरकारी नौकरी आ जाती। उसके बाद सबकुछ सामान्य हो जाता। चार साल में आंगन में तीसरी पीढ़ी घुटुरुवन चलने लगती और फिर हमारा बुढापा संवर जाता। तो वहीं तीखे नाक-नक् शे वाली साली भी नक्सली बनने का ख्वाब संजोती। बीस लाख का ईनामी मिलेगा दूल्हा जो आत्मसमर्पण के बाद फूंकेगा गृहस्थी का चूल्हा। जो अभी नहीं सुहा रहे हैं किसी को फूटी आंखों उस दिन नयनों के तारे बनेंगे जब समर्पण के बाद मिलेंगे लाखों। तो वहीं जो भी रिश्तेदार घर में आएगा वो यही भजन गाएगा कि प्रभु तुमको दरद नहीं आया काहे नहीं नक्सली बनाया। खत्म हो जाएगा पुलिस-उलिस का डर.... समझ गए न सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
निखट्टू-
छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की शादी और फिर सरकारी नौकरी और आत्मसमर्पण का हितलाभ मिलता देखकर यहां के युवाओं का मन भी माओवादी बनने का ख्याल जरूर आता होगा। उसका सीधा सा कारण है कि एक पढ़ा लिखा युवक बेरोजगार घूम रहा है और एक सत्ताइस लोगों की हत्या और करोड़ों की सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को न सिर्फ लाखों रुपए मिल रहे हैं बल्कि सरकारी नौकरी और दुल्हन भी मिल रही है। धूमधड़ाके के साथ शादी की जा रही है। सावन का मनभावन महीना भगवान भोलेनाथ की आराधना का होता है। अब ऐसे पावन महीने में अगर किसी कुंवारे का ब्याह हो जाए तो फिर भला क्या कहने? किसी कवि ने भी यही कहा है कि - खाए को भंग, नहाए को गंग, चढै़ को तुरंग ओढै को दुशाला। यही वर मांगत हौं शिवशंकर दो मृग नयनी कि दो मृगछाला। मगर यहां तो मृगनयनी के साथ-साथ नोटों के बंडल और सरकारी नौकरी मिल रही है। ये देखकर गांव का गंवई किसान अपने बेटे को जब भी दुत्कारेगा तो कहेगा कि बैठे-बैठे रोटियां तोड़ रहा है घर में। अरे अब तक नक्सली भी बना होता तो धनधान्य, बहू और सरकारी नौकरी आ जाती। उसके बाद सबकुछ सामान्य हो जाता। चार साल में आंगन में तीसरी पीढ़ी घुटुरुवन चलने लगती और फिर हमारा बुढापा संवर जाता। तो वहीं तीखे नाक-नक् शे वाली साली भी नक्सली बनने का ख्वाब संजोती। बीस लाख का ईनामी मिलेगा दूल्हा जो आत्मसमर्पण के बाद फूंकेगा गृहस्थी का चूल्हा। जो अभी नहीं सुहा रहे हैं किसी को फूटी आंखों उस दिन नयनों के तारे बनेंगे जब समर्पण के बाद मिलेंगे लाखों। तो वहीं जो भी रिश्तेदार घर में आएगा वो यही भजन गाएगा कि प्रभु तुमको दरद नहीं आया काहे नहीं नक्सली बनाया। खत्म हो जाएगा पुलिस-उलिस का डर.... समझ गए न सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
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