कर्रामाड़ की बहादुरी का ईनाम



संपादकीय-

कांकेर के कर्रामाड़ गांव की कामधेनु गौशाला में भूख से 250 गायों की मौत हुई। इसको लेकर पूरे प्रदेश में कोहराम मचा। खुद को गौसेवक होने का दावा करने वाली सरकार की सारी कलाई इस मामले के बाद खुल गई। तो वहीं इस मामले के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इन गायों की मौत के जिम्मेदार कृषि और पशु पालन मंत्री का कद बढ़ाकर उनको कोर कमेटी का सदस्य बन दिया है।  भाजपा सरकार के इस फैसले से प्रदेश की जनता हैरान परेशान है कि ऐसा  कैसे हुआ?  प्रदेश की जनता अब ये जानना चाहती है कि क्या केंद्र सरकार ने उनको इस घटना से मुक्त मान लिया है? ये वही कृषि मंत्री हैं जिनके अधिकारियों ने किसानों से 5 सौ रुपए प्रति हेक्टेयर फसल बीमा की किश्त के रूप में लिया था तो वहीं सूखा पड़ जाने के बाद किसानों को 1,2, 3, 5, 20, 55 और 80 रुपए के चेक बांटे गए।  ये वही कृषि मंत्री हैं जिनके कार्यकाल में दाल 3 सौ रुपए किलो बिकी और उसी वर्ष में दलहन उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदेश को कृषि कर्मण पुरस्कार भी मिल जाता है। ऐसे में सवाल तो यही है कि अगर राज्य में दलहन का उत्पादन ज्यादा हुआ था तो दाम कैसे बढ़े? पशु पालन और खेती दोनों के नाम पर प्रदेश में सिर्फ आंकड़ों के घोड़े दौड़ाए गए हैं। अगर पार्टी को किसी नेता का कद ही बढ़ाना था तो किसी ऐसे नेता को आगे लाया जाता जिसकी छवि प्रदेश में अच्छी होती।  उल्टे ऐसे लोगों को ये जिम्मेदारी थमा दी गई जिनके खुद के हाथों में किसी न किसी मामले की कालि$ख पुती हुई है। कुछ लोग तो ये भी कहने लगे हैं कि संभवत: दिल्ली में बैठी भाजपा सरकार के अहलकारों को अब कम दिखाई और सुनाई देता है।
भाजपा के इस फैसले से प्रदेश के लोगों में एक बेहद ही नकारात्मक संदेश गया है। इसको अगर समय रहते पार्टी के लोग नहीं सुधार लेते तो ढाई साल बाद चुनाव होने हैं और उस वक्त जनता इनको इनकी असलियत बता देगी, इसमें कोई दो राय नहीं है।

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