भूख से मरती गायें और सरकार का भौकाल



 अलाल और दलाल के चक्कर में फंसी सुराज की सरकार भौकाल मारने में एक नंबर है। इसका कोई जोड़ा नहीं है। यहां कागजों पर आंकड़ों के फर्जी घोड़ दौड़ाने वाले कार्यकर्ता थोक में मिल जाएंगे। इनका दूसरा लक्ष्य है कि वचने का दरिद्रता। इसको और भी सरल भाषा में समझाया जाए तो ये कि मन मटर क्यों चबाएं, मन लड्डू क्यों न खाएं? यानि जब झूठी घोषणाएं ही करनी हैं तो फिर जमकर भौकाल मारो न भाई।
प्रदेश की सरकार और उसके मुखिया को गोहत्या का महापाप लगा है। उसका निवारण अगर नहीं किया गया तो ये तो पक्का है कि ये पाप उनकी नैया आने वाले चुनाव में जरूर डुबाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

आर.पी. सिंह
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सुराज की सरकार के राज में कांकेर में भूख से मरी 3 सौ गायों के अलावा रायपुर नगर निगम के कांजी हाउस में भी कई गायें भूख से मर गईं। प्रदेश के पशुधन मंत्री ने महापौर के साथ कांजी हाउस का दौरा किया और जानवरों के चारे पानी की व्यवस्था करने के निर्देश दिए। उसके ठीक दूसरे दिन तीन और गाएं भूख से मर गईं। बेमेतरा में मरी हुई गायों के मांस को प्रतिबंधित मांगुर मछलियों को खिलाने का मामला भी प्रकाश में आया। यहां की गौशालाओं से लगातार गायें गायब होती जा रही थीं। लोगों का अंदेशा तो ये भी था कि कहीं मछलियों को खिलाने की आड़ में यहां गोकशी तो नहीं की जा रही थी? यदि ऐसा नहीं होता तो यहां इतनी बड़ी तादाद में गायों का मांस कैसे उपलब्ध हो रहा था? तो वहीं कांकेर के कर्रामाड़ में कामधेनु गौशाला में 3 सौ से ज्यादा गायें भूख से मर गईं। तो सरकार और उसके जिम्मेदारों ने तीन दिनों में 15 गायों की मौत की पुष्टि की। इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद भी प्रशासनिक अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। तो वहीं नाम नहीं छापने की शर्त पर कर्रामाड़ के कुछ लोगों ने बताया कि यहां से रात के अंधेरे में ट्रकों में भर कर गोवंश को ले जाया जाता था। सवाल उठता है कि आखिर उनको कौन... कहां ले जाता था। इस पर ग्रामीणों ने ही दबी जुबान से माना कि वे सब गौ तस्कर थे जो इन गायों को वध करने के लिए ले जाते थे। इस गौशाला के संचालक के संचालन में चलने वाली दूसरी गौशाला से भी बड़ी तादाद में गायों के गायब होने की खबर भी सामने आई। ऐसे में सवाल तो यही है कि जो लोग गायों की रक्षा का दम भरते हैं अगर वे लोग ही ऐसा करने लगें तो फिर कोई क्या कहे?
घटना के थोड़ा पीछे आपको ले चलते हैं। मौका था रावतपुरा सरकार कॉलेज में चल रही कार्यशाला के समापन समारोह का। यहां प्रदेश के पशुधन मंत्री ने हुंकार भरी कि पशुओं की रक्षा के लिए युवाओं में जागरूकता जरूरी। इसके बाद तो उन्होंने जो ताड़तोड़ घोषणाएं करनी शुरू की लगा कि गायों के तो अच्छे दिन आ गए। इनको ऐसे किसी कार्यक्रम में पहले क्यों नहीं बुला लिया गया? जानवरों के टीकाकरण के नाम पर भी करोड़ों का बजट बताया गया। कई लाख पशुओं को बीमारियों से बचाव के टीके लगाने के लक्ष्य के बार में जानकारी दी गई। परिणाम निकला की उनकी नाक के नीचे ही रायपुर के कांजी हाउस में ही 13 से ज्यादा गाएं भूख से मर गईं। इसके बाद मंत्री चुप, प्रशासन मौन,महापौर अपनी पार्टी के अध्यक्ष का जन्मदिन मनाने और केक खाने में लग गए। शहर में पसरी गंदगी और गायों की मौत पर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।
राज्य पशुपालन विभाग के अधिकारी आंकड़ों का अंकगणित भिड़ाने में लगे हैं। उन्हीं के बनाए हुए फर्जी आंकड़े ही दिल्ली दरबार में रखे जाते हैं। आप कितना भी कुछ छापते रहिए कुछ नहीं होने वाला। इसकी पुष्टि भी लगे हाथ किए देते हैं। 3 सौ से ज्यादा गायों की भूख से हुई मौत के जिम्मेदार मंत्री को पार्टी ने केंद्रीय कोर कमेटी में जगह देकर उनका कद बढ़ा दिया। अलबत्ता अब मंत्री जी पछता रहे होंगे कि कम्बख्त तीन सौ गाएं मारने पर इतनी पदोन्नति हो रही है तो अगली बार तो  कम से कम हजार को तो निपटा ही दूंगा। ये वही मंत्री हैं जिनका पक्ष जानने के लिए तीन दिन फोन लगाना पड़ा और तीनों दिन उनके मातहत अधिकारी ये पट्टी पढ़ाते रहे कि साहब मीटिंग में व्यस्त हैं। इसके बाद जैसे ही केंद्रीय पशुपालन मंत्री राधामोहन सिंह का फोन आता है। उसके बाद मंत्री मीटिंग से निकल कर दौड़ पड़ते हैं। तो वहीं गौसेवा आयोग के लोग तक कर्रामाड़ गए मगर प्रदेश के पशुपालन मंत्री के पास ये देखने का वक्त तक नहीं कि कर्रामाड़ की कामधेनु गौशाला की व्यवस्था आखिर कैसी है?
आलम ये है कि अलाल और दलाल के चक्कर में फंसी सुराज की सरकार भौकाल मारने में एक नंबर है। इसका कोई जोड़ा नहीं है। यहां कागजों पर आंकड़ों के फर्जी घोड़ दौड़ाने वाले कार्यकर्ता थोक में मिल जाएंगे। इनका दूसरा लक्ष्य है कि वचने का दरिद्रता। इसको और भी सरल भाषा में समझाया जाए तो ये कि मन मटर क्यों चबाएं, मन लड्डू क्यों न खाएं? यानि जब झूठी घोषणाएं ही करनी हैं तो फिर जमकर भौकाल मारो न भाई।
प्रदेश की सरकार और उसके मुखिया को गोहत्या का महापाप लगा है। उसका निवारण अगर नहीं किया गया तो ये तो पक्का है कि ये पाप उनकी नैया आने वाले चुनाव में जरूर डुबाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है। वैसे भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रमेश बैस और नंदकुमार साय को किनारे लगाकर अपने तलवे में कांटा खुद ही चुभो दिया है। सामने चुनाव है ऐसे में इस फैक्टर का असर भी उस मौके पर जरूर दिखाई देगा। इसका सीधा सा फायदा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी को मिलेगा। कुर्मी समाज और आदिवासियों के वोट भाजपा के पक्ष में नहीं पडऩे वाले। ऐसे में यदि ये वोट कट गए तो पिछले चुनाव में अल्पमत से सत्ता में आई भाजपा का दोबारा सत्ता पर काबिज होना दूर की कौड़ी लग रही है।
जिस राज्य में कामधेनु विश्व विद्यालय जैसे विश्वविद्यालय हों जहां गायों के विषय विशेषज्ञ मौजूद हों वहां 3 सौ गायों का भूख से मरना शर्मनाक है। व्यवस्था को इससे सीख जरूर लेनी चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अगले चुनाव में इनकी विपक्षी पार्टियां इनको असलियत बता देंगी। तब ही समझ में आएगा कि हमने क्या बोया था और क्या काटा।

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