वर्दी का असर
कटाक्ष-
निखट्टू-
एक थानेदार को गज़ल लिखने का शौक चर्राया। उसने सरकारी कागज उठाया और शुरू हो गया। कई गज़लें लिख लेने के बाद उसने इलाके के मानिंद शायर ज़नाब अख़्तर साहब को थाने बुलाया। उसने गज़ल का मतला यानि पहला शेर अर्ज़ किया। सुनते ही अख़्तर साहब उखड़ गए। बिदकते हुए बोले अमां मियां... ये भी कोई शेर है, न $काफिया न रदी$फ न बहर में और न ही वज्र में? मियां आपने तो शेर को चूहा बना दिया। अब थानेदार आखिर थानेदार ही ठहरा। उसका भी भेजा भन्ना गया उसने तत्काल दो सिपाहियों को बुलाया और बोले ले जाओ इस बिगड़ैल बुड्ढ़े को हवालात में बंद कर दो। सिपाहियों ने उन शायर मोहतरम को अंदर कर दिया। जैसे ही ये खबर फैली पूरे शहर के लोग थाने की ओर दौड़ पड़े। शहर में ज़नाब अख्तर के ढेरों चाहने वाले थे। तत्काल जमानत करवाई गई। पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे कि दोबारा थानेदार ने दूसरी गज़ल लिखी और फिर अख्तर साहब को थाने बुलाया और शायर मोहतरम के बिगडऩे पर उनको कैद कर दिया। इस बार छह दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से छूटे। अभी दस दिन ही बीता था कि थानेदार ने तीसरी मर्तबा उनको बुलवाया....जैसे जनाब अख़्तर थाने में तशरीफ ले गए तो थानेदार ने सोचा अब तो संभवत: अख़्तर मियां कुछ नर्म हो गए होंगे। हमारी हनक का उनको भी पता चल गया होगा। ये सोचकर थानेदार अपना वो कागज़ तलाशने लगा जिसमें उसने वो गज़ल लिखी थी। जैसे ही थानेदार ने मक्ते का शेर यानि आखिरी लाइन पढ़ी...और पूछा कैसी लगी। तो अख़्तर मियां चुपचाप उठे और तेज कदमों से हवालात की ओर बढ़ चले। थानेदार ने पूछा हुजूर कहां चले...अख्तऱ मियां ने खुद को हवालात की कोठरी में कैद करते हुए कहा वहीं जहां हर बार जाया करता था। इसके बाद उस थानेदार की समझ में आया कि किसी भी चीज को सीखने के लिए हनक की नहीं विनम्रता की जरूरत होती है। और ज्ञानी व्यक्ति जल्दी क्रोध नहीं करता। इसके बाद थानेदार ने दोनों हाथ जोड़कर ज़नाब अख़्तर साहब से माफी मांगी और बड़े दिल के मालिक अख़्तर मियां ने भी उनको माफ कर दिया। इसके बाद उस थानेदार ने अख़्तर मियां को अपना उस्ताद माना और उनसे ही शायरी की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी। समझ गए न सर...इस वर्दी का असर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
निखट्टू-
एक थानेदार को गज़ल लिखने का शौक चर्राया। उसने सरकारी कागज उठाया और शुरू हो गया। कई गज़लें लिख लेने के बाद उसने इलाके के मानिंद शायर ज़नाब अख़्तर साहब को थाने बुलाया। उसने गज़ल का मतला यानि पहला शेर अर्ज़ किया। सुनते ही अख़्तर साहब उखड़ गए। बिदकते हुए बोले अमां मियां... ये भी कोई शेर है, न $काफिया न रदी$फ न बहर में और न ही वज्र में? मियां आपने तो शेर को चूहा बना दिया। अब थानेदार आखिर थानेदार ही ठहरा। उसका भी भेजा भन्ना गया उसने तत्काल दो सिपाहियों को बुलाया और बोले ले जाओ इस बिगड़ैल बुड्ढ़े को हवालात में बंद कर दो। सिपाहियों ने उन शायर मोहतरम को अंदर कर दिया। जैसे ही ये खबर फैली पूरे शहर के लोग थाने की ओर दौड़ पड़े। शहर में ज़नाब अख्तर के ढेरों चाहने वाले थे। तत्काल जमानत करवाई गई। पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे कि दोबारा थानेदार ने दूसरी गज़ल लिखी और फिर अख्तर साहब को थाने बुलाया और शायर मोहतरम के बिगडऩे पर उनको कैद कर दिया। इस बार छह दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से छूटे। अभी दस दिन ही बीता था कि थानेदार ने तीसरी मर्तबा उनको बुलवाया....जैसे जनाब अख़्तर थाने में तशरीफ ले गए तो थानेदार ने सोचा अब तो संभवत: अख़्तर मियां कुछ नर्म हो गए होंगे। हमारी हनक का उनको भी पता चल गया होगा। ये सोचकर थानेदार अपना वो कागज़ तलाशने लगा जिसमें उसने वो गज़ल लिखी थी। जैसे ही थानेदार ने मक्ते का शेर यानि आखिरी लाइन पढ़ी...और पूछा कैसी लगी। तो अख़्तर मियां चुपचाप उठे और तेज कदमों से हवालात की ओर बढ़ चले। थानेदार ने पूछा हुजूर कहां चले...अख्तऱ मियां ने खुद को हवालात की कोठरी में कैद करते हुए कहा वहीं जहां हर बार जाया करता था। इसके बाद उस थानेदार की समझ में आया कि किसी भी चीज को सीखने के लिए हनक की नहीं विनम्रता की जरूरत होती है। और ज्ञानी व्यक्ति जल्दी क्रोध नहीं करता। इसके बाद थानेदार ने दोनों हाथ जोड़कर ज़नाब अख़्तर साहब से माफी मांगी और बड़े दिल के मालिक अख़्तर मियां ने भी उनको माफ कर दिया। इसके बाद उस थानेदार ने अख़्तर मियां को अपना उस्ताद माना और उनसे ही शायरी की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी। समझ गए न सर...इस वर्दी का असर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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