आजादी का उद्बोधन





स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित किया। अपने 90 मिनट के भाषण में उन्होंने अपनी उपलब्धियों का जमकर बखान किया। कुल मिलाकर पूरा भाषण उबाऊ था। बलूचिस्तान का जिक्र करके पाकिस्तान को घेरने के सिवा दलहन की बुआई पर संतोष जताने से ज्यादा कुछ भी नहीं रहा। प्रदेश के मुखिया ने राज्य के 5 हजार गांवों को खुले में शौचमुक्त बता दिया। तालियां भी बज गईं। असलियत किसी ने भी नहीं बताई न तो प्रधानमंत्री ने और न ही मुख्यमंत्री ने। प्रधानमंत्री को दलहन की बुआई तो याद रही किसानों की आत्महत्या भूल गए। मुख्यमंत्री को शौचालय तो याद रहे मगर जिन महिलाओं ने अपने गहने, खेत और मवेशी बेंचकर इनको बनवाया उसकी कहीं चर्चा तक नहीं की गई। अभी भी अधूरे बने गड्ढों में गिर कर मवेशियों की मौतों का सिलसिला जारी है। प्रधानमंत्री ने आधार कार्ड के माध्यम से आखिरी व्यक्ति के खाते में सरकारी योजनाओं की रकम पहुंचने का दावा किया। किसानों को मिलने वाले 1, 2, 3 और 5 तथा 30 और 80 रुपए के चेक की बात किसी ने भी नहीं की। अमृत दूध पीकर मरने वाले बच्चों और कर्रामाड़ में मरने वाली गायों की कहीं कोई चर्चा नहीं की गई। ये बड़े लोग हैं इनको ऐसी चीजें भूलने की आदत है। जब ये उस जनता को भूल जाते हैं जिसने इनको वोट देकर उस कुर्सी तक पहुंचाया तो बाकी की तो बात ही छोड़ दीजिए। इनका सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी सुख-सुविधाओं और मोटे-मोटे वेतन भत्तों की रकम पर होता है।
प्रदेश की असलियत ये है कि राज्य में ढाई सौ से ज्यादा गायें भूख से मर गई हैं। अब शंका तो यही जाहिर की जा रही है कि सरकार  इनको बीमार बताकर अपनी जान बचा लेगी। तो वहीं  दूसरी भी जगह पर गायों के मरने की खबरें बराबर आ रही हैं। सरकार और उसके अधिकारियों का झूठ अब एक तरह से बेनकाब होता जा रहा है।
इनका ये हाल देखकर लगने लगा है कि देश में लोकतंत्र ज्यादा दिनों तक लोग झेल नहीं पाएंगे। इसका सीधा सा कारण है कि सरकारी मशीनरी और नेता अब मुफ्तखोरी पर उतर आए हैं। उसी का लाभ अब धीरे-धीरे जनता को भी देकर अलाल बनाया जा रहा है। एक कहावत है कि फूल्स गिव्ज एंड वाइज मैंस ईट्स। यानि मूर्ख देते हैं और बुध्दिमान खाते हैं। कुल मिलाकर देश में यही ट्रेड चलता जा रहा है। जिनको जरूरत है उनको कुछ नहीं मिलता जिनको जरूरत नहीं उनको भर दे रहे हैं। इसी की आड़ में अब बात यहां तक आ पहुंची है कि देश के राष्ट्रपति से ज्यादा वेतन सचिव स्तर के अधिकारी उठा रहे हैं। अब वो अधिकारी भला काम क्या करेगा और क्यों?
सरकार को चाहिए कि जितनी सैलरी बढ़ाई जाए उसको उसी हिसाब से जिम्मेदारी भी दी जानी चाहिए, लेकिन यहां तो महाभारत की वो पंक्तियां याद आ रही हैं कि पिताअंध किम सूझै पूत: अर्थात जिसका पिता ही अंधा हो उसके बच्चों को भला क्या दिखाई देगा?

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