रोज का संकट बना ओज का कवि

कटाक्ष-

निखट्टू
हमारे एक वीर रस के कवि मित्र को अक्सर रात दारू थोड़ी ज्यादा चढ़ जाया करती है। जब नशे में आते हैं तो उनको नई कविता लिखने की सनक चढ़ जाती है, और फिर वो जोर -जोर से चिल्लाते हैं..लाशों पर लाश बिछा दूंगा-लाशों पर लाश बिछा दूंगा। इस संकटमय समय में भाभी जी को मेरी याद आती है। वे खोज-खोजकर हमारा नंबर निकालती और मिलाती हैं। और बताती हैं कि आपके भाई साहब को आज कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है। इनकी बोलती ज्यादा बढ़ गई है। बच्चे के बनाए कार्टून को देखकर गुर्रा रहे हैं। पिछले चार घंटे से एक ही लाइन चिल्ला रहे हैं कि -लाशों पर लाश बिछा दूंगा, लाशों पर लाश बिछा दूंगा। मैंने कहा भाभी जी आप उनसे हाथ जोड़कर थोड़ी विनम्रता से निवेदन कीजिए कि हे महाकवि अब रात ज्यादा हो चुकी है थोड़ा बिस्तर बिछा दीजिए ...हम अपने बेटे सहित आराम करना चाहते हैं। लाशें कल बिछा लीजिएगा। चमत्कार हो गया भाभी ने जो कहा उन्होंने वही किया। तुरंत बिस्तर लगा दिया। भाभी ने सुबह उठते ही मुझे बताया बोली आज तो हमारे निखट्टू जी भी काम आ गए। अब छत्तीसगढ़ में भी एक जन को कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है। उनकी भी बोली लगातार बढ़ गई है। यहां तबेले में स्कूल चल रहे हैं और वो इस राज्य को शिक्षा का हब बनाने की रट लगाए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय पर विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं। इनका ये कारनामा देखकर लगने लगा है डर.. तो समझ गए न सर? अब दीजिए आदेश और हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो फिर कल आपसे फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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