माज़रा पत्थरों का

कटाक्ष-

निखट्टू-
संतो....हरम और दैर के झगड़े कहां तक कोई समझाए, जिसे हर तरह फर्सत हो वो इस मैदान में आए। इधर भी राह में पत्थर उधर भी राह में पत्थर। इधर काशी में हैं पत्थर उधर काबे में भी पत्थर। इधर पत्थर का पूजन है उधर पत्थर को बोसा है। समझ में कुछ नहीं आता कि आखिऱ माज़रा क्या है? इतने सारे पत्थरों के बीच एक जगह और भी पत्थर हैं वो हंै कश्मीर में। आजकल वहां भी पत्थरों को लेकर चर्चा गर्म है। कुछ दीगर मुल्क परस्त लोग वहां पत्थरों का व्यापार कर रहे हैं। भारत शुरू से ही पत्थरों को पूजता रहा है। हम पत्थरों को तराश कर मूर्तियां बनाते हैं। पत्थरों का इस्तेमाल आशियाने बनाने में करते हैं उजाडऩे में नहीं। हम पत्थरों को पूजते हैं, लेकिन जब कोई हम पर ये पत्थर उछालता है तो उसको सजा भी ऐसी दी जानी चाहिए कि वो दोबारा पत्थर देखकर थर-थर कांपने लगे। पैलेट गन को लेकर तमाम तरह की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन जो लोग वहां रहते हैं उनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। मु_ी भर बिके हुए लोग पूरे समाज पर दादागिरी नहीं कर सकते। अगर करते हैं तो उनको क्या सजा दी जानी चाहिए ये कानून मु$कर्रर करेगा। पत्थर फेंकने वालों को भी इस बात का इल्म होना चाहिए कि जिसके कहने पर वो पत्थर फेंक या जबरियन पत्थर फेंकवा रहे हैं। वो उनको ज्यादा दिनों तक प्रश्रय नहीं देने वाला। उसका मतलब हल हुआ तो वो फिर उनकी ओर पलट कर भी नहीं देखेगा। ये लोग अगर अपने देश की मिट्टी में थोड़ा सा हाथ पैर रगड़ लेते तो उन गैरमुल्क के जूतों पर नाक रगडऩे से बच जाते। ये बात हमको समझनी चाहिए। हमारे देश की मिट्टी हमारी है इसको हम माथे से लगाएंगे तो उनकी औ$कात नहीं है कि वो हमारी ओर आंख उठाकर भी देख लें। किसी भी देश में रहने की पहली शर्त होती है उसके प्रति आस्था और विश्वास तथा देशभक्ति। ये वो जज्बा है कि इंसान मर तो सकता है मगर अपना ये ईमान नहीं डिगने दे सकता। देश के जिन मुसलमानों को लेकर ये अफवाहें फैलाई जा रही हैं, महज उंगलियों पर गिनने भर के ये लोग हैं। इनकी हिम्मत नहीं है कि ये हमारे देश के मुसलिम समाज में घुसकर ये दावा कर सकें। भारतीय मुसलमान ही इनको सबक सिखाने के लिए काफी हैं। पाकिस्तान की शह पर अपने लोगों पर पत्थर फेंकने वालों को ये बात समझनी चाहिए कि ये देश हमारा है और यहां के लोग हमारे अपने भाई हैं। अब ऐसे में भला ऐसा कौन पत्थर दिल इंसान होगा जो अपनों पर पत्थर फेंके? बात बस समझने भर की है। पड़ोसी देश के कितने ही बड़े ब्रेन वॉशर आएं मगर हमारे अंदर वो दृढता होनी चाहिए कि वो सर फोड़ लें मगर हमारा धैर्य न तोड़ सकें। इसके लिए जरूरी होगी देशभक्ति पैदा करने वाली वो रचनाएं जिनको हमारे बच्चों की किताबों से कब का निकाल दिया गया है। पं.श्याम नारायण पाण्डेय की वो कविताएं। बिस्मिल के वो शेर। इ$कबाल का  वो गीत...सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। प्रदीप का वो गीत ऐ मेरे वतन के लोगों.... इनको दोबारा युवा पीढ़ी को सुनाओ और पढ़ाओ। इसके बाद जब कश्मीर की वादियों में ये गीत और कविताएं गूंजेंगी...य$कीन मानिए अगर किसी को भी पत्थर उठाते देखा तो हमारे युवा उसको पकड़कर उसकी सारी अकड़ ढीली कर देंगे... समझ गए न सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी.. तब तक के लिए जय...जय।

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