सुस्त पड़े तंत्र की तंद्रा






लोक की सेवा के लिए बनाया गया तंत्र अब कूद कर उसी लोक के कंधे पर सवार हो गया है। अंधा बांटे रेवड़ी आप-आप ही देय की तर्ज पर मंत्रियों और सांसदों तथा विधायकों तथा अफसरों का वेतनमान जिस तरह से  बढ़ाया जा रहा है। उस रफ्तार से अगर जिम्मेदारियां बढ़ाई गई होतीं तो देश की जनता को ये दिन देखने न पड़ते। स्वास्थ्य विभाग के नाम पर आने वाला हर साल का मोटा बजट कहां जा रहा है, इसको देखने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है। हद तो तब हो गई जब उड़ीसा के बालासोर में टीबी की बीमारी से मरी एक महिला के शव को ले जाने के लिए कोई नहीं आया। लाचार और बेबस पति ने अपनी पत्नी का शव कंधे पर उठाया और अपने घर की ओर रवाना हो गया। हालांकि बाद में प्रशासन को शर्म आई और उसने एंबुलेंस भेजवाई। तो वहीं उसी जिले में दूसरी घटना भी देखने को मिली जहां रेल की चपेट में आने से एक महिला की मौत हो गई। उसको मर्ग ले जाना था पोस्टमार्टम के लिए। अस्पताल ने शव वाहन नहीं दिया तो रेलवे पुलिस के लोगों ने लाश की हड्डियां तोड़ी और उसकी गठरी बनाकर बांस से बांधा और उसको स्टेशन ले गए। तो वहीं मध्य प्रदेश के जबलपुर में दबंगों ने एक शव को श्मशान ले जाने का रास्ता तक नहीं दिया। ऐसे में उसके परिजनों को शवयात्रा को लेकर तालाब के बीच से होकर गुजरना पड़ा। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के रामानुजगंज में एक महिला ने विषाक्त पदार्थ खा लिया था। उसको सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जहां वो 4 घंटे तक तड़पती रही और डॉक्टर ने उसकी ओर पलट कर देखा तक नहीं। इसके बाद उसकी मौत हो गई। इसके बाद भी प्रदेश के मंत्री और सचिव के पास बयान देने तक का वक्त नहीं है। अब जिस राज्य का मुख्यमंत्री खुद एक डॉक्टर हो वहां इलाज के अभाव में किसी की मौत होना भी सरकारी लापरवाही को दर्शाता है।
तार-तार होती इस मानवता के लिए भी ये नकारा सिस्टम ही जिम्मेदार है। जब तक शासन-प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी, मंत्री से लेकर संतरी तक अपने कर्तव्य के प्रति सचेत  नहीं होंगे ऐसी घटनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। सुराज की सरकार को चाहिए कि वो अब कोरी घोषणाओं से बचे और ऐसी घटनाओं के जिम्मेदारों पर तत्काल प्रभाव से कठोर कार्रवाई करे। ऐसे मामलों को जांच के नाम पर अटकाया न जाए। तो वहीं घटना के लिए जिम्मेदार लोगों पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए और पीडि़त परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए।

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