सुशासन का सच




मौसमी बीमारियों से निपटने में स्वास्थ्य विभाग के इंतजामात नाकाफी साबित हो रहे हैं। आलम ये है कि प्रदेश में अब तक 24 से ज्यादा लोगों की मौत डायरिया से हो चुकी है। सबसे ज्यादा 21 मौतें मैनपाट में हुई हैं। तो वहीं स्वास्थ्य महकमे के पास इससे निपटने के कारगर उपाय तक नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों में दवाओं का पूरी तरह अभाव है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में अभी तक 50 से ज्यादा लोगों के भर्ती होने की खबर है। तो वहीं प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मैराथन बैठकों में व्यस्त बताए जा रहे हैं। अधिकारी कर्मचारी भी बैठकों को लेकर ही मंत्री बंगले का चक्कर काट रहे हैं। दवाओं के अलावा अस्पतालों में अब तो जगह का भी अभाव होने लगा है। इसके कारण लोगों को जमीन पर लिटाकर इलाज किया जा रहा है। इस शर्मनाक व्यवस्था की जितनी भी मज़म्मत की जाए कम होगी। प्रदेश के मुखिया से लेकर तमाम कद्दावर मंत्री अपनी सरकार की सफलता के दावे करने से नहीं अघाते, लेकिन असलियत ये है कि ये सरकार जनता से कोई सरोकार ही नहीं रखती। सुराज का दावा सूरज की चुभती किरणों तक ही सीमित रह जाता है। जैसे ही गर्मी घटी कि सुराज खत्म जनता फिर उसी राज में चली जाती है जिसमें वही पुरानी लाचारी और बदहाली से उसका सबका पड़ता है। ऐसे में अब इस सरकार को भला कौन समझाए कि इनको दावे नहीं दवाई की जरूरत है। सरकार और उसके अधिकारी जनता की इस मजबूरी को समझने से रहे। वैसे भी ऐसी व्यवस्था से अगर किसी चमत्कार की उम्मीद किसी ने पाल रखी होगी तो वो मु$गालते में है। इनके रुख को देखकर तो यही लगता है कि ये व्यवस्था अब सुधरने से रही।

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