बह गया धान चिंतित किसान




सूखे का सितम झेल चुके किसानों के चेहरे की चमक बारिश की भविष्यवाणी सुनकर बढ़ गई थी। तो ये खुशी भी लगता है ऊपरवाले को नहीं भायी। भयंकर बारिश के उफान से भरे जलाशय का बांध टूट गया।  पानी का सैलाब किसानों की लहलहाती फसलों पर टूट पड़ा। तेज धारा में बह गए तमाम किसानों के सपने। ऐसे में अब उनकी सबसे बड़ी चिंता तो यही है कि खुद क्या खाएं और अपने जानवरों को क्या खिलाएं? जानवर तो आखिर जानवर हैं घास खाकर पेट भर लेंगे, मगर इंसान क्या खाएगा?ये समस्या वहां के किसानों के सामने खड़ी है। बारिश के मौसम में ये कहां जाएं काम तलाशने? अब इनको इंतजार है बारिश के खत्म होने का और उसके बाद शुरू होते हैं देश के तमाम राज्यों में ईंट के भट्टे। ये वहीं जाकर बंधुआ मजदूरी करेंगे। ये दीगर बात है कि सरकार राज्य को पलायन मुक्त बनाने का दावा जोर-जोर से दुहरा रही है, मगर सच्चाई ये है कि प्रदेश से मजूदरों का पलायन नहीं रुक रहा है। अलबत्ता सरकार ने दो रुपए किलो चावल देकर यहां के मजदूरों को अलाल और शराबी जरूर बना दिया है। अब ज्यादातर लोग काम की तलाश में बाहर जाना पसंद ही नहीं करते । कुछ तो घर में पड़े रहते हैं। ज्यादा हुआ तो उतनी ही मजदूरी करते हैं जिसमें चेप्टी आ जाए या फिर बच्चा। बच्चा यहां शराब की छोटी बोतल को बोलते हैं। चार घूंट के नीचे चिंताओं को दबाने की ये कोशिश कभी -कभी कितनी भयावह साबित होती है इसका नजारा आए दिन कहीं न कहीं दिखाई देता है। अभी-अभी हाल में ही बिहार में देखने को मिला जहां कइयों की मौत जहरीली शराब के कारण हो गई। बिहार में सरकार चाहती थी कि शराब बंद हो तो उसने ये काम करवाया। छत्तीसगढ़ की माताएं और बहनें चाहती हैं कि शराब बंद हो तो यहां की सरकार जबरन शराब की बिक्री करवाने पर तुली है। तो वहीं सरकारी अधिकारी शराब बंदी की बात करते हैं।
सरकार अगर वास्तव में किसानों की हितैषी है, तो उसको चाहिए कि गरीब किसानों को मनरेगा के तहत ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैय्या कराए। इसके बाद पशुओं के चारे की व्यवस्था करे। जिन किसानों की फसलों का नुकसान हुआ है उनको उचित मुआवजा दिया जाए। बीमारों का इलाज मुफ्त में हो और सरकारी अस्पतालों से उनको दवाएं भी दी जाएं। इससे लोगों की सरकार में आस्था बढ़ेगी और लोगों का पलायन भी रुकेगा।

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