मांझी के दु:ख में साझी




छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में अब तक डायरिया से कुल 23 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में अधिकांश लोग मांझी जनजाति के बताए जा रहे हैं। तीन सौ से अधिक लोग अभी भी बीमारी की चपेट में बताए जा रहे हैं। इस मामले को सबसे पहले हमारी सरकार ने ही उठाया था। इसके बाद फिर प्रशासन की तंद्रा टूटी। तब जाकर प्रशासन ने वहां के गांवों में कैंप लगाना शुरू किया। हालांकि अभी भी वहां के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। लोगों का बीमार पडऩा अभी भी जारी है। प्रशासन अपने स्तर पर बीमारी को रोकने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। ऐसे में सबसे अहम सवाल तो यही है कि क्या इस बीमारी से लडऩे की तैयारी पहले नहीं की जानी चाहिए थी। क्या पहली बार मैनपाट में इस तरह की घटना हो रही है। हर साल यहां डायरिया से बड़ी तादाद में लोगों की मौत होती है। इसका सबसे बड़ा कारण भी प्रदूषित पानी ही बताया जा रहा है। सरकार बड़े-बड़े  दावे करती है। थोक में घोषणाएं की जाती हैं मगर धरातल पर काम कौड़ी का नहीं होता। अगर थोड़ी सी भी तैयारी पहले कर ली गई होती तो आज संभवत: ये नौबन ही नहीं आती कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती। अब न लोग मरते और न ही प्रशासन की लापरवाही सामने आती। ये बात इन लोगों को भला कौन समझाए कि अब बरसात का मौसम आ रहा है आप लोग तैयारियां कर लीजिए। कड़वी सच्चाई ये है कि स्वास्थ्य विभाग के पास रोग से निपटने वाली दवाएं तक नहीं हैं ठीक से। जो हैं भी उनको मैनपाट भेज दिया गया है जहां कैंप लगाकर लोगों का इलाज किया जा रहा है। यहां यदि समय रहते पेयजल का उपचार कर दिया गया होता तो इस आपदा के खतरे को कम किया जा सकता था। अब सवाल ये है कि ये करेगा कौन? सरकार के मंत्रियों के पास तो इसके लिए समय है ही नहीं। वे तो तिरंगा यात्रा निकालने में मस्त हैं। विभाग भले ही नंगा हो जाए वो तो तिरंगा यात्रा निकाल कर ही दम लेंगे।
इस आपदा का सबसे दु:खद पहलू ये है कि मरने वालों में 99 फीसदी लोग मांझी परिवारों के बताए जा रहे हैं। ऐसे में मांझी परिवारों के इस दु:ख में हम भी साझी हैं। हम उनके उस नुकसान की भरपाई तो नहीं कर सकते मगर हम पूरी ईमानदारी से उनकी आवाज को सरकार और उसके जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचाते रहेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव