झंडा ऊंचा रहे हमारा

कटाक्ष-

निखट्टू-
ऊंचे-ऊंचे चकाचक चमकते मकान, ऊंची-ऊंची बातें, मगर साहब की करामातों की मत पूछिएगा, बड़ा झटका लगेगा आपको। ये राजधानी के ऊंचे लोग हैं। इन्होंने यहां ऊंचे-ऊंचे काम भी किए हैं। अरे भाई ऊंचे दाम खर्च करेंगे तभी तो ऊंचे काम होंगे न? तो इन लोगों ने देश का सबसे ऊंचा तिरंगा भी लगाया है। अब इस मिशन में कितना कमीशन खाया है, ये हम नहीं बता सकते... शर्म आती है। कुल मिलाकर इन्हीं की कृपा से तकरीबन सात बार वो तिरंगा जमीन पर आ चुका है। हल्के से तूफान में ही फट जाता है। थोड़ी देर में हट जाता है। इसी क्रम में कई बार ये तिरंगा वाला ऊंचा खंभा कभी -कभी हफ्तों रह जाता है नंगा। अब मेरी मोटी खोपड़ी में एक बात ये नहीं आती कि आखिर मंदिरहसौद में एक तिरंगा जिंदल ने भी लगाया है। वो भी काफी ऊंचा है, जिंदल जी भी ऊंचे लोग हैं, मगर उनका तिरंगा क्यों नहीं फटता? इस सवाल पर ही बवाल खड़ा कर देते हैं इस तिरंगे के सबसे ऊंचे परियोजना अधिकारी। सीधे-सीधे कह देते हैं कि इस तिरंगे की कीमत तुम क्या समझोगे निखट्टू। अब वो ये भूल गए कि अभी पिछले महीने ही इन्होंने 90 हजार से एक लाख रुपए एक झंडे की कीमत बताई थी। अब इतनी ऊंची कीमत और इतना ऊंचा पोल.... उसमें भी समय-समय पर झोल। अक्सर रहता है झंडा गोल। फिर भी हमारे तो यही रहेंगे बोल... कि झंडा ऊंचा रहे हमारा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा... समझ गए न सर.... तो हम भी अब निकल लेते हैं घर...तो कल आपसे फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
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