आइन-वाइन और नेताइन
कटाक्ष-
निखट्टू
संतों....नेता के दो आगे नेता, नेता के दो पीछे नेता, आगे नेता, पीछे नेता बोलो कितने नेता। अगर कहोगे तीन नेता तो फिर चलो नाम बता दो तो जानें।क्यों उलझ गए न? अरे भइया नेता एक मोदी कार्यकर्ता आधी दुनिया। तो अब नेता के दो आगे नेता... अमित शाह और राजनाथ और कौन। वैसे भी मैं प्रधानमंत्री मोदी जी की काफी कद्र करता हूं। ठीक वैसी ही जैसी कद्र वो आडवाणी जी की करते हैं। अक्सर बड़े कार्यक्रमों में उनको ले जाते हैं बड़े सम्मान से आगे वाली लाइन में बैठाते हैं और फिर अपने संबोधन में कहते हैं कि मैं बुजुर्गों का बड़ा सम्मान करता हूं। यानि मंच पर बैठे बुजुर्गों को ये एक छिपी धमकी है कि सुधर जाओ नहीं तो उनके बगल वाली अगली कुर्सी पर तुम नज़र आओगे। बेचारे आडवाणी उनकी उस चुभने वाली वाणी पर भी कुछ नहीं बोलते हैं। बस बैठे-बैठे उन दिनों को याद करते हैं जब उन्होंने इनसे कभी चाय मंगवाई थी। कभी संघ के दफ्तर में पोंछा लगवाया था। इसी का नाम भाजपा है कभी भाजपा के मायने थे अटल जी और आडवाणी जी आज मोदी और शाह, राजनाथ को भी इन दोनों ने थमा दी राह। इन दिनों शाह लेने में लगे हैं यूपी की सियासत की थाह मगर अब उनकी भी सांस फूलने लगी है। मुद्दे और जमीनी असलियत की बातें भूलने लगी हैं। ऐसे में बिहार में हार गए अब यूपी की तैयारी है। देखते हैं क्या होगा? राजनीति हो तो वाइन, आइन और नेताइन की बात न हो तो बात ही कम्बख़्त अधूरी रह जाती है। यूपी हमेशा से तहजीब-ओ-तंज़ीम के शहर से त-आल्लुक रखती है.. नहीं समझे... अरे भइया वही ...अपना लखनऊ। तो यहां की तो तहज़ीब ही है पहले आप। याने यू....पी... समझ गए न? हां...ये तो तुम्हारी समझ में जल्दी आ गई न। पी...का तात्पर्य ही आधे लोग वाइन पीने से लगाते हैं। जब कि असलियत है कि हर कोई पानी पीता है। अब वाइन आई तो आइन-कानून भी कोई चीज है कि नहीं? अब जहां दोनों चीजों के प्रयोग में कोई समस्या आई तो फिर उसका निपटारा करने के लिए नेताइन की जरूरत पड़ती है न? समझ गए न सर....तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
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निखट्टू
संतों....नेता के दो आगे नेता, नेता के दो पीछे नेता, आगे नेता, पीछे नेता बोलो कितने नेता। अगर कहोगे तीन नेता तो फिर चलो नाम बता दो तो जानें।क्यों उलझ गए न? अरे भइया नेता एक मोदी कार्यकर्ता आधी दुनिया। तो अब नेता के दो आगे नेता... अमित शाह और राजनाथ और कौन। वैसे भी मैं प्रधानमंत्री मोदी जी की काफी कद्र करता हूं। ठीक वैसी ही जैसी कद्र वो आडवाणी जी की करते हैं। अक्सर बड़े कार्यक्रमों में उनको ले जाते हैं बड़े सम्मान से आगे वाली लाइन में बैठाते हैं और फिर अपने संबोधन में कहते हैं कि मैं बुजुर्गों का बड़ा सम्मान करता हूं। यानि मंच पर बैठे बुजुर्गों को ये एक छिपी धमकी है कि सुधर जाओ नहीं तो उनके बगल वाली अगली कुर्सी पर तुम नज़र आओगे। बेचारे आडवाणी उनकी उस चुभने वाली वाणी पर भी कुछ नहीं बोलते हैं। बस बैठे-बैठे उन दिनों को याद करते हैं जब उन्होंने इनसे कभी चाय मंगवाई थी। कभी संघ के दफ्तर में पोंछा लगवाया था। इसी का नाम भाजपा है कभी भाजपा के मायने थे अटल जी और आडवाणी जी आज मोदी और शाह, राजनाथ को भी इन दोनों ने थमा दी राह। इन दिनों शाह लेने में लगे हैं यूपी की सियासत की थाह मगर अब उनकी भी सांस फूलने लगी है। मुद्दे और जमीनी असलियत की बातें भूलने लगी हैं। ऐसे में बिहार में हार गए अब यूपी की तैयारी है। देखते हैं क्या होगा? राजनीति हो तो वाइन, आइन और नेताइन की बात न हो तो बात ही कम्बख़्त अधूरी रह जाती है। यूपी हमेशा से तहजीब-ओ-तंज़ीम के शहर से त-आल्लुक रखती है.. नहीं समझे... अरे भइया वही ...अपना लखनऊ। तो यहां की तो तहज़ीब ही है पहले आप। याने यू....पी... समझ गए न? हां...ये तो तुम्हारी समझ में जल्दी आ गई न। पी...का तात्पर्य ही आधे लोग वाइन पीने से लगाते हैं। जब कि असलियत है कि हर कोई पानी पीता है। अब वाइन आई तो आइन-कानून भी कोई चीज है कि नहीं? अब जहां दोनों चीजों के प्रयोग में कोई समस्या आई तो फिर उसका निपटारा करने के लिए नेताइन की जरूरत पड़ती है न? समझ गए न सर....तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर। कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
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