माटी के खांटी कलाकार
संपादकीय-
छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर कही जाने वाली किस्मत बाई देवार की किस्मत इतनी खराब निकलेगी, कभी सोचा ही नहीं था। कभी लोक मंचों की शान रही ये कलाकार आज कोरबा के एक अस्पताल में जीवन मरण के बीच संघर्ष कर रही है। विडंबना ये है कि परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो इस महान कलाकार का पेट भर सकें। उनकी बड़ी बेटी रेलवे स्टेशन पर भीख मांग कर अपनी मां का पेट भर रही है। तो वहीं प्रदेश का संस्कृति विभाग बाहर के कलाकारों पर करोड़ों फूंक रहा है। प्रदेश में जमे कुछ ठेकेदार किस्म के लोग हर साल विभाग से लाखों के कार्यक्रम करवा रहे हैं। इनको बाकायदा ठेका भी मिल जाता है और यहीं से शुरू हो जाता है माटी के खांटी कलाकारों का शोषण। इनके पास उनकी वकत महज एक मजदूर से ज्यादा नहीं रह जाती है। एक -एक कार्यक्रम के लिए कठिन परिश्रम करने और लोगों के मनोरंजन के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले समर्पित कलाकारों की पूछ-परख संस्कृति विभाग में नहीं है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर इन कलाकारों का क्या दोष है? बाहर से जाने वाले महंगे कलाकारों को नया रायपुर के राज्योत्सव में मोटे पैसों का भुगतान करने वाले संस्कृति विभाग के पास लोक कलाकारों के कल्याण के नाम पर महज सन्नाटा क्यों है? क्यों एक कलाकार को मोटा पेमेंट तो दूसरों को कुछ भी नहीं दिया जा रहा है? कवियों का ठेका एक अदद सरकारी अधिकारी को क्यों दिया जा रहा है? संस्कृति विभाग के अधिकारियों को अभी कुछ साल पहले ही राजिम कुंभ के समय कुछ साधुओं ने त्रिशूल लेकर दौड़ाया था। यहां भी मामला पेमेंट का ही फंसा था।
लोक कलाकारों से उनके ही घर में लूट हो रही है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। सरकार के पास अगर लोक कलाकारों को लेकर थोड़ी सी भी गंभीर होती तो आज किस्मत बाई देवार की ये हालत नहीं होती। सरकार को चाहिए कि वो अपने लोक कलाकारों का पूरी तरह ख्याल रखे। जिस छत्तीसगढ़ महतारी को हम श्रध्दा से शीश नवाते हैं ये भी उसी महतारी के लाडले लाल हैं। हमें उतना ही गर्व अपने इन लोक कलाकारों पर है। इस लिए इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी चाहिए। इससे सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करने से लेकर तमाम लोगों का मनोरंजन करने की महती जिम्मेदारी निभाने वाले इन कलाकारों की आस्था राज्य सरकार में बनी रहेगी।
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