अपने कोटर के आगे की डींग
कटाक्ष-
निखट्टू
ंसंतों... अबूझमाड़ के जंगल में एक उल्लू एक पुराने पेड़ के कोटर के सामने बैठा लंबी-लंबी छोड़ रहा था। उसकी पत्नी उसकी बेसिर-पैर की बातें बड़ी देर से सुन रही थी। वो लगातार अपनी बहादुरी के किस्से अपनी पत्नी को सुनाए जा रहा था। पत्नी बेचारी सिर्फ हूं....हूं....हूं करती जा रही थी। जोश में आए उस उल्लू ने कहना शुरू किया कि जानती हो जंगल में मेरा ही राज चलता है। जब मुझे गुस्सा आता है तो इस हाथ से बाज़ मारता हूं, उस हाथ से बटेर। इतना सुनते ही उसकी पत्नी ने कहा अरे.....वो देखो एक बड़ा बाज़ इधर ही आ रहा है.... सुनते ही वो उल्लू गुप्प से कोटर में जा घुसा। उसकी पत्नी तो हंसते-हंसते पागल हुई जा रही थी। आधे घंटे के बाद पसीने-पसीने उल्लू जी बाहर निकले....। पत्नी की हंसी देखकर बुरी तरह झेंप गए। उनको पता चला कि सब इसी का किया धरा है। इसके बाद बोले नहीं पता था कि अपने कोटर के सामने भी कोई डींग नहीं हांक सकता।
ऐसा ही एक विभाग है छत्तीसगढ़ शासन का जो आम आदमी को तो परेशान किए पड़ा है। मगर जैसे ही किसी नेता की बात आती है उसके हाथ पांव फूल जाते हंै। अपनी बिरादरी वालों तक का चालान काटने वाली प्रदेश की जांबाज पुलिस से लोग अब यही जानना चाहते हैं कि आज तक उसने कितने नेताओं का चालान काटा। अगर नहीं काटा गया तो क्यों? क्या उनके ऊपर मोटरव्हीकल एक्ट लागू नहीं होता? अगर होता है तो प्रदेश के तमाम कद्दावर नेता तिरंगा यात्रा के नाम पर कानून को नंगा करने पर क्यों उतारू हैं? इनकी भी हालत उसी उल्लू जैसी है जो पत्नी को तो अपनी वीरता के किस्से जरूर सुनाता है मगर जैसे ही बात बाज़ की आती है तो कोटर की ओर भागता है। यही कारण है कि ऐसी यात्राओं के ठीक पहले वहां से चेकिंग प्वाइंट तक हटा दिए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि ये बात प्रदेश के गृहमंत्री को पता नहीं है मगर वे भी इसको हवा में उड़ाते हुए कहते हैं कि अरे छोडि़ए कभी-कभी बिना हेलमेट के भी निकला जा सकता है? होम मिनिस्टर के इस बयान की आग में तो न जाने कितने ही कानून की धाराएं होम हो गईं। हमारा तो जी करता है अब लोकतंत्र का स्वाहा भी लगे हाथ बोल देते तो ज्यादा अच्छा होता। वैसे भी तंत्र के हाथों लोक स्वाहा होने की क$गार पर आ चुका है। लोक की कमाई से चलने वाला तंत्र खुद के लिए तो लाल कालीन बिछाता है मगर उस लोक को कायदे से टाट भी नसीब नहीं होता। पिछले सात दशकों से उसको सिर्फ और सिर्फ छला जा रहा है। इतना सा काम करने से ही देश के नेताओं का काम चला जा रहा है। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर....कल फिर आपसे मुलाकात होगी,
तब तक के लिए जय....जय।
निखट्टू
ंसंतों... अबूझमाड़ के जंगल में एक उल्लू एक पुराने पेड़ के कोटर के सामने बैठा लंबी-लंबी छोड़ रहा था। उसकी पत्नी उसकी बेसिर-पैर की बातें बड़ी देर से सुन रही थी। वो लगातार अपनी बहादुरी के किस्से अपनी पत्नी को सुनाए जा रहा था। पत्नी बेचारी सिर्फ हूं....हूं....हूं करती जा रही थी। जोश में आए उस उल्लू ने कहना शुरू किया कि जानती हो जंगल में मेरा ही राज चलता है। जब मुझे गुस्सा आता है तो इस हाथ से बाज़ मारता हूं, उस हाथ से बटेर। इतना सुनते ही उसकी पत्नी ने कहा अरे.....वो देखो एक बड़ा बाज़ इधर ही आ रहा है.... सुनते ही वो उल्लू गुप्प से कोटर में जा घुसा। उसकी पत्नी तो हंसते-हंसते पागल हुई जा रही थी। आधे घंटे के बाद पसीने-पसीने उल्लू जी बाहर निकले....। पत्नी की हंसी देखकर बुरी तरह झेंप गए। उनको पता चला कि सब इसी का किया धरा है। इसके बाद बोले नहीं पता था कि अपने कोटर के सामने भी कोई डींग नहीं हांक सकता।
ऐसा ही एक विभाग है छत्तीसगढ़ शासन का जो आम आदमी को तो परेशान किए पड़ा है। मगर जैसे ही किसी नेता की बात आती है उसके हाथ पांव फूल जाते हंै। अपनी बिरादरी वालों तक का चालान काटने वाली प्रदेश की जांबाज पुलिस से लोग अब यही जानना चाहते हैं कि आज तक उसने कितने नेताओं का चालान काटा। अगर नहीं काटा गया तो क्यों? क्या उनके ऊपर मोटरव्हीकल एक्ट लागू नहीं होता? अगर होता है तो प्रदेश के तमाम कद्दावर नेता तिरंगा यात्रा के नाम पर कानून को नंगा करने पर क्यों उतारू हैं? इनकी भी हालत उसी उल्लू जैसी है जो पत्नी को तो अपनी वीरता के किस्से जरूर सुनाता है मगर जैसे ही बात बाज़ की आती है तो कोटर की ओर भागता है। यही कारण है कि ऐसी यात्राओं के ठीक पहले वहां से चेकिंग प्वाइंट तक हटा दिए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि ये बात प्रदेश के गृहमंत्री को पता नहीं है मगर वे भी इसको हवा में उड़ाते हुए कहते हैं कि अरे छोडि़ए कभी-कभी बिना हेलमेट के भी निकला जा सकता है? होम मिनिस्टर के इस बयान की आग में तो न जाने कितने ही कानून की धाराएं होम हो गईं। हमारा तो जी करता है अब लोकतंत्र का स्वाहा भी लगे हाथ बोल देते तो ज्यादा अच्छा होता। वैसे भी तंत्र के हाथों लोक स्वाहा होने की क$गार पर आ चुका है। लोक की कमाई से चलने वाला तंत्र खुद के लिए तो लाल कालीन बिछाता है मगर उस लोक को कायदे से टाट भी नसीब नहीं होता। पिछले सात दशकों से उसको सिर्फ और सिर्फ छला जा रहा है। इतना सा काम करने से ही देश के नेताओं का काम चला जा रहा है। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर....कल फिर आपसे मुलाकात होगी,
तब तक के लिए जय....जय।
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