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जिन्‍दगी को बारूदी ढेर पर और पेइंग गेस्‍ट

हास्‍य, कवि सम्‍मेलन, तात्‍कालिक कवि सम्‍मेलन एक कवि एक श्रोता आयुष (?) दिल के बहुत करीब निगाहों से दूर है इस दुनिया में भी एक और दुनिया जरूर है इसी दुनिया की सैर करने के लिये आज चलते हैं जहां आप होंगे हम होंगे और होंगी सिर्फ कवितायें । कविता क्‍या है ? पंडित छविनाथ मिश्र कहते हैं - कविता पत्‍थर तोड़ की मेहनत को हाथ का छाला बना देती है और उस छाले में कसकती पीड़ा की अनुभूती को निराला बना देती है । और, कोई कवि और कहता है कि मेरे दोस्‍त मेरे हमदम तुम्‍हारी कसम कविता जब किसी के पक्ष में अथवा विपक्ष में लब अपनी पूरी अस्मिता के साथ खड़ी होती है तो वो कविता भगवान से भी बड़ी होती है और ऐसी कविता जिसके लिये लाने जाते रहे हैं आपको जोड़ते हैं कविता से जिन्‍दगी को बारूदी ढेर पर मैने देखा है जिन्‍दगी को बारूदी ढेर पर मुस्‍कुराते हूये और आशाओं को नीरव श्‍मशान में करूण गीत गाते हुये मैने देखा है भौतिकतावादी लोंगो का अहम धन के बूते जिन्‍दगी जीने का अहम मगर एक भी धनी जिन्‍दगी खरीद कर नही लाया मगर एक भी धनी जिन्‍दगी खरीद कर नही लाया प्‍लास्टिक सर्जरी के बदले प्‍लास्टिक सर्जरी से बदलकर बनवा ली काया और