भगवान ने ये क्या लिखा किस्मत बाई की 'किस्मतÓ में



  लोग यूं तो उनको छत्तीगढ़ की लता मंगेशकर कहकर बुलाते हैं। उनके गाने जब रेडियो पर आते थे, तो राह चलने वाले लोग भी रुक जाया करते थे। उनके गाए गीत चौरा में गोंदा रसिया मोर बारी मा पताल रे चौरा मा गोंदा को लोग आज भी नहीं भूले। इसके अलावा चल संगी जुर मिल कमाबो रे .. और करमा सुने ला चले आबे गा करमा तहूं ला मिला लेबो, मैना बोले सुवाना के साथ रे मैना बोले...  जैसे गीत आज भी काफी पसंद किये जाते हैं। मगर अफसोस की इतनी लोकप्रिय गायिका और लोकनर्तकी के परिजनों के पास इलाज तक के पैसे नहीं है। बड़ी बेटी जतनबाई देवार रेलवे स्टेशन पर भीख मांग कर अपनी मां का पेट भरती है। राज्य का संस्कृति विभाग उनकी खबर तक नहीं ले रहा है। सवाल तो ये कि क्या प्रदेश के संस्कृति विभाग की इंसानियत मर गई है? आखिर कब टूटेगी इस प्रशासन की तंद्रा?
बीमार है छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर, मां का पेट भरने बेटी मांगती है भीख, मदद में जुटी रमा दत्त जोशी
रायपुर। कोरबा, छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर कही जाने वाली लोक कलाकार किस्मत बाई से जैसे उनकी किस्मत रूठ गई है। लम्बे समय से लकवा ग्रस्त चल रही छत्तीसगढ़ की लोक गायिका किस्मत बाई देवार की हाल ही में तबियत ज्यादा बिगड़ गई है और वह जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रही है। किस्मत बाई को लकवा लगने के बाद उनकी मदद सरकार ने नहीं बल्कि लोक कलाकारों के हित के लिए काम करने वाली रमा दत्त जोशी ने उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया था और उसके बाद सरकार से मदद की फरियाद लिए दर दर भटकते रहे। जब तबियत ज्यादा खराब होने लगी तो छत्तीसगढ़    शेष पृष्ठ 5 पर...
लोक कलाकार संघ की अध्यक्ष रमा दत्त जोशी को जानकारी मिली। तब वह रायपुर से कोरबा पहुंची और उन्होंने किस्मत बाई के हक़ की लड़ाई लडऩे का आश्वासन दिया है। किस्मत बाई अभी 70 बरस की हैं।
लोक कलाकारों को नहीं मिल रही प्रदेश में मदद-
किस्मत के परिजनों ने गुहार लगाई है कि यदि किस्मत बाई का इलाज निजी चिकित्सालय में कराया जाए तो किस्मत की हालत जल्द सुधर सकती है। यही नहीं परिजनों ने सरकार पर लोक कलाकारों को सम्मान और उनके हित के लिए किसी तरह की मदद नहीं करने का आरोप भी लगाया है। इधर लोक कला से जुड़े लोग भी इस तरह लोक कलाकारों की अनदेखी से काफी दुखी है और किस्मत बाई की मदद की गुहार प्रशासन से लगा रहे हैं। किस्मत बाई अपनी बेटी दामाद के घर कांशीनगर बस्ती में रह रही है। 




संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाई थी पार्टी
छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किस्मतबाई ने 70 के दशक में आदर्श देवार पार्टी की शुरुआत की। पार्टी के माध्यम से रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, कांकेर के अलावा कई विभिन्न प्रांतों में प्रस्तुति देती थी। पार्टी के शुरूआती दिनों में गिने-चुने कलाकार हुआ करते थे, लेकिन कुछ महीनों बाद पार्टी में कलाकारों का आना शुरू हो गया। हालत खराब होने के बाद संस्था बंद हो गई।  लोक कलाकार संघ की अध्यक्ष रमा दत्त जोशी को जानकारी मिली। तब वह रायपुर से कोरबा पहुंची और उन्होंने किस्मत बाई के हक़ की लड़ाई लडऩे का आश्वासन दिया है। किस्मत बाई अभी 70 बरस की हैं।
बड़ी बेटी
मांगती है
स्टेशन पर भीख
उनकी चार बेटियां जतन, रतन, कीर्तन और सबसे छोटी विर्तन है। बड़ी बेटी जतनबाई देवार बस्ती व रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर अपनी मां का पेट भरती है।
70 और 80 के दशक
में रही सुपरहिट
किस्मत बाई ने विश्वविख्यात रंगनिदेशक स्व. हबीब तनवीर के साथ कई नाटकों में लोकगायन किया व प्रस्तुतियां दी हैं। जानकारों का कहना है कि 70 और 80 के दशक में न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि उत्तरप्रदेश, बनारस में भी उनकी गायिकी को लोगों ने काफी सराहा गया। 1971 में दाऊ रामचंद देशमुख ने चंदैनी गोंदा में किस्मत बाई की कला को प्रोत्साहित करने का मन बनाया। उस समय चंदैनी गोंदा सांस्कृतिक जागरण के उद्देश्य को लेकर लोकप्रिय था। जानकारों का कहना है कि अपने जमाने में किस्मत बाई एक बेहतरीन नर्तकी रहीं।  आकाशवाणी से उनके गीतों का प्रसारण सुनने श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग उत्साहित रहता था ।

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