भूख से मरी 150 गायें, 80 बीमार






हवा में उड़ा छत्तीसगढ़ के पशुधन संपन्न राज्य होने वाला दावा

 असुविधाओं के ढेर पर बैठे कांकेर के दुर्गूकोंदल की कर्रामाड़ गौशाला इन दिनों गायों का श्मशान बनती जा रही है। यहां पिछले एक महीने में 150 से ज्यादा गायें भूख से मर चुकी हैं। 80 से ज्यादा बीमार हैं इनमें से अधिकांश की हालत गंभीर है। गौशाला प्रबंधन भी दबी जुबान से इस बात को स्वीकार कर रहा है। ऐसे में सवाल तो यही है कि गोरक्षा का दंभ भरने वाले गौरक्षक कहां सोए पड़े हैं? जिस राज्य में कामधेनु विश्वविद्यालय हो वहां इतनी बड़ी तादाद में भूख से गायों का मरना सरकार और उसकी अफसरशाही की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी है।
 बैठक में व्यस्त मंत्री बृजमोहन अग्रवाल,  प्रमुख सचिव भी नहीं दे रहे जवाब
जोगी ने सीएम से दागा सीधा सवाल, मुंगेली में दो सौ बच्चे फाइलेरिया की दवा खाकर पड़े बीमार, अस्पताल में भर्ती
 कांकेर। 
गायों की सड़ती लाशों से फैल रही भयानक दुर्गंध-
बताया जा रहा है कि गौशाला में गायों की देखभाल पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण गायों की मौत हुई।  ज्यादातर गायों ने भूख और बीमारी से दम तोड़ दिया है।  मरने के बाद मवेशियों के शवों को जंगलों में फेंक दिया गया है।  शवों से उठ रही बदबू से लोगों का बुरा हाल है।
अचानक कैसे बढ़ी गायों की तादाद-
बीते दिनों इलाके में अभियान चलाकर आवारा पशुओं को पकड़ा गया था, जिसके बाद गौशाला में गायों की संख्या बढ़ गई थी। इसके कारण ही ज़्यादातर गायें कुपोषित और रोगी हो गईं।  इनके इलाज पर भी ध्यान नहीं दिया गया।
निगम की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान-
नगर निगम ने आवारा पशुओं के खिलाफ अभियान चलाकर पशुओं को पकड़ कर गौशाला के हवाले तो कर दिया, मगर गायें क्या खाएं इसकी व्यवस्था नहीं की। ऐसे में प्रशासनिक लापरवाही की शिकार बनीं इतनी बड़ी तादाद में गायें। तो वहीं जिम्मेदार प्रशासन इतनी बड़ी घटना के बावजूद भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

 क्या है जिम्मेदारों का हाल-
मंत्रीजी बैठक में हैं: पठारिया-
कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से जब मामले में बात करने की कोशिश की गई तो उनके फोन की घंटी बजती रही मगर किसी ने भी फोन नहीं उठाया। उसके बाद उनके पीए आर.के. पठारिया ने बताया कि मंत्रीजी बैठक में व्यस्त हैं एक घंटे बाद बात करेंगे। उसके बाद दोबारा फोन लगाने पर भी वही जवाब आया। उनको मामले की गंभीरता बताई गई मगर जिम्मेदारों ने इस तरह का व्यवहार किया लगा उनसे कोई व्यक्तिगत काम करवाने गया है।
प्रमुख सचिव ने भी नहीं उठाया फोन-
इस संदर्भ में सरकार का पक्ष जानने के लिए प्रमुख सचिव अजय सिंह से उनके मोबाइल नंबर 9630030405 बात करने की कोशिश की गई। लगातार घंटियां बजती रहीं मगर साहब ने फोन नहीं उठाया।
वर्जन-

हमने पशु चिकित्सा विभाग के सह संचालक को जांच के लिए भेजा था। उन्होंने 15 गायों के मौत होने और तमाम गायों के बीमार होने की पुष्टि की है। गौशाला संचालक प्रथमद्रष्टया दोषी पाए गए हैं। उनको नोटिस जारी कर दिया गया है। गौशाला में नए शेड और गायों के चारे-पानी की व्यवस्था के लिए बोल दिया गया है। हमने शासन और राज्य गौसेवा आयोग को पत्र लिखकर इसकी जानकारी भेज दी है।
शम्मी आबिदी
कलेक्टर
कांकेर
बराबर में बॉक्स लगाएं-
कहां हैं प्रदेश के  मुख्यमंत्री: जोगी
फोटो- पेज-१ में
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से सीधा सा सवाल किया है कि कहां है प्रदेश का मुख्यमंत्री जो गायों की रक्षा नहीं कर पा रहा है? इतनी बड़ी तादाद में गायों की मौत होना शर्मनाक बात है। अभी कल ही प्रदेश के मुखिया ने महानदी जल बंटवारे के मुद्दे पर जवाब देते -देते कहा था कि प्रदेश की चिंता करने के लिए प्रदेश का मुख्यमंत्री अभी बैठा है। तो पूर्व मंत्री ने उनके उसी बयान पर करारा पलटवार किया। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी के कार्यकर्ता इसको लेकर बड़ा आंदोलन करेंगे। इसके अलावा हम प्रदेश के मुखिया से इस बात का जवाब मांगेंगे कि इतनी बड़ी तादाद में गायों की मौत कैसे हुई? और जिम्मेदारों पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?


ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या सारी सरकारी मशीनरी नकारा हो चुकी है। गायों के सबसे बड़े रक्षक होने का दावा करने वाली सरकार की असलियत ये है? इतनी बड़ी घटना के बावजूद भी प्रशासन का सोया रहना इनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाता है तो वहीं सरकार के पशुप्रेम की भी गवाही देता है।
क्या ऐसी ही जागरूकता की जरूरत है मंत्रीजी-
कुछ दिनों पहले रावतपुरा सरकार आश्रम में अपने संबोधन के दौरान कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा था कि गौवंश को बचाने और बढ़ाने के लिए जनजागरण जरूरी है। इसके लिए हर गांव और हर घर को गौवंश संऱक्षण केन्द्र बनाना होगा।  ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या ऐसी ही जागरूकता की जरूरत है प्रदेश सरकार को? ऐसी जागरूकता के क्या मायने हैं? जहां इतनी बड़ी तादाद में गायें मर रही हैं तो सरकार क्या कर रही है?
कृषि मंत्री की झूठी घोषणाएं -
श्री अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा गौशालाओं के संचालन, प्रबंधन तथा गौवंश को बचाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। इनके आशातीत परिणाम भी सामने आए रहे हैं।  प्रदेश के सभी 27 जिलों में बीमार पशुओं के इलाज के एबुलेंस की सुविधा उपलब्ध करा दी गई है। सड़क दुर्घटनाओं में घायल  होने वाले पशुओं के उचित इलाज के लिए रेस्क्यू यूनिट शुरू करने की कार्रवाई तेजी से चल रही है।
सवाल तो ये कि इतनी बड़ी तादाद में गायों की मौत के वक्त कहां थीं ये सरकारी एम्बुलेंस?
अभी और खुलेंगी गौशालाएं-
प्रदेश के समस्त विकासखण्डों में एक बड़ी गौशाला खोलने का कार्य प्रगति पर है। चालीस विकासखण्ड के गौशाालाओं के लिए जमीन चिन्हित कर ली गई है। श्री अग्रवाल ने बताया इन गौशालाओं के संचालन की जिम्मेदारी समाजसेवी संस्थाओं की दी जाएगी। प्रदेश में मिलने वाले मंडी शुल्क की दस प्रतिशत राशि गौसेवा आयोग को उपलब्ध करायी जा रही है। सवाल तो यही है कि क्या उन गौशालाओं की हालत भी कर्रामाड़ की गौशाला जैसी होगी? सरकार आखिर कोरी घोषणाएं करना छोड़कर धरातल पर कब काम करेगी?
         
बॉक्स-
फाइलेरिया खाकर 200 छात्र बीमार

 मुंगेली।  जिले के स्कूलों में बुधवार को फाइलेरिया बीमारी से बचाव के लिए बच्चों को दवा खिलाई गई। इसके बाद 200 से अधिक बच्चों को उल्टी और चक्कर आने की शिकायत पर हड़कंप मच गया। बच्चों को इलाज के लिए विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती किया गया है।
जिले के स्कूलों में फाइलेरिया उन्मूलन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत दवा खिलाई जा रही थी।  मोहभट्टा, गंगद्वारी, सोढ़ीमराठी, भटगांव, सरगांव सहित कई गांवों के 200 से अधिक बच्चों को दवा खिलाने के बाद उल्टी होने लगी और चक्कर आने लगे। इन बच्चों को सरगांव, पथरिया, भटगांव के स्वास्थ्य केंद्रों में उपचार के लिए लाया गया। 15 साल की एक बच्ची को बिलासपुर सिम्स रेफर किया गया।

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जिस टहनी पर खड़े हैं उसे मत काटिये
संदर्भ : राज्यपाल और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति का विवाद.

ठीक किया कुलाधिपति महोदय यानि राज्यपाल जी ने। किसी भी समारोह का आतिथ्य, एक शख्स की अन्तरात्मा या सम्मान से बढकऱ नहीं हो सकता इसलिए पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गवर्नर बलरामजी दास टण्डन नही पहुंचे। संत तुलसी सही कह गए कि तुलसी तहां ना जाइए, कंचन बरसे मेघ। भगवान शिव का तीसरा नेत्र तभी खुला था जब वे अपनी ससुराल में बिनबुलाए पहुंच गए थे। उसके बाद क्या हुआ था, बताने की जरूरत नहीं। इसी के समानांतर देखिए कि असीमित शक्तियों से घिरे होने के बावजूद टण्डन साहब ने अपनी शक्तियों के पिटारे को कभी नहीं खोला अन्यथा कुलपति प्रो. एस.के. पाण्डे दूसरे कार्यकाल का सुख नहीं भोग रहे होते!

छत्तीसगढ़ राज्य बने 16 साल हो गए। यह पहला मौका है जब राज्यपाल नाम की संस्था को सरेआम टंगड़ी मारने की कोशिश की गई है। बीस-बाइस बरस पहले इसी विश्वविद्यालय के  एक कुलपति ने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री के पैर सार्वजनिक तौर पर छुए थे तो वह भी एक कालिख की तरह ही था। वाइस चांसलर पाण्डे साहब को मैं जितना समझ पाया हूं, वे ईमानदार हैं, मिलनसार हैं, कोई अहम या वीआईपीज जैसा रूतबा भी नही पालते, अगरचे जाने-अनजाने ही सही, यह जो कलंक उनके कार्यकाल में लगा है, विश्वविद्यालय इसे कभी नहीं धो सकेगा।

हमारे राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों में एक किताबी बहस आज तक लोकप्रिय है कि भारत का राष्ट्रपति हो या राज्यपाल, सम्प्रभुतासंपन्न राज्याध्यक्ष हैं या फिर रबर की मुहर..! इसे सत्ता की अंधी अभिलाषा कह लीजिए या कुलपति जैसे सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बाद, एक शख्स में खुद-ब-खुद आ धमकने वाला अंधत्व कि वह राज्यपाल जैसी संस्था को स्वीकारने की तहजीब भी उतार फेंकने को बाध्य है। फिर लाजिमी तौर पर हमने देखा-पाया है कि उच्च शिक्षा मंत्री ने भी अनदेखी किए जाने के कई कडुवे घूँट पीए हैं। चाहे वह तकनीकी विश्वविद्यालय का मामला हो या पं. सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्यालय का। मुख्तलिफ ढंग से सोचें तो देखेंगे कि कुलपतियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी सैकड़ों शिकायतें राजभवन तक पहुंचती रही लेकिन कड़ी कार्रवाई की दरकार ना हो सकी। अन्य राज्यपालों के कार्यकाल में कुछ चेतावनियों ने कानाफूसियों को जन्म जरूर दिया परंतु यह एक सदानीरा की सतह पर उभरते हुए बुलबुले से अधिक की हैसियत कभी अख्तियार नही कर सका।

दिमाग का यह लचीलापन इशारे करता है कि दरअसल यह उस परिपाटी पर चल निकलने का बगुलामुखी साहस है जिसकी बुनियाद गुरू घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति दिवंगत लक्ष्मण चतुर्वेदी ने रखी थी। सुना था कि वे मुख्यमंत्री और मंत्रियों तक के कागजातों को दरकिनार कर देते थे। इसकी बुनियाद में उनकी ईमानदारीभरी कार्यशैली थी लेकिन जब उन पर एक मशीन खरीदी में 70 करोड़ का घपला करने का आरोप चस्पा हुआ और सीबीआई जांच बैठी तो यह छबि धूल-धूसरित हो गई थी। राज्यपाल टण्डन साहब की नाराजगी के मूल में भी यही बात छिपी है। मीडिया में छपी खबरों को मानें तो रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में हावी भर्राशाही, नियुक्तियां और भ्रष्टाचार की ढेरों शिकायतें उन तक पहुंची थी। इस पर राजभवन की ओर से कुलपति को आरोपी पर कार्रवाई करने की सलाह दी गई तो हीलहवाला देते हुए अनसुना कर दिया गया। इसकी पुष्टि खुद विश्वविद्यालय के कर्मचारी संगठनों ने की है।

देश की राजनीतिक खदान में मैं जिन उजले लोगों को गिनता हूं, उनमें से एक महामहिम बलरामजी दास टण्डन भी हैं। बड़प्पन, ज्ञान और उदारता के प्रतीक हैं तथा जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। साठ साल से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में उन पर छटांकभर का भी आरोप नही लगा। इसलिए इस झूठ को सच मान लेने की भूल नही करनी चाहिए कि महामहिम किसी विश्वविद्यालय में चल रहे निर्माण कार्य या नियुक्तियों में विशेष रूचि रखते होंगे। बतौर राज्यपाल हमने उनका अब तक का शानदार रिकॉर्ड देखा है। जिस कार्यकुशलता और सदाचार के नए कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किए हैं, राज्य के आमजन के मन में उनका स्थान ताजिन्दगी पहले नागरिक का रहेगा।

संघ की शाखा से निकले राज्यपाल जी का मूलमंत्र रहा है कि वैचारिक दुश्मनों को भी दोस्त बनाओ। याद कीजिये कि सीडी काण्ड को लेकर कांग्रेस जब टण्डन साहब से मिलने पहुंची तो उन्होंने अपनेपन से भरी सलाह देते हुए कहा था कि यह आपके परिवार का मामला है, वही निबटा लीजिए। और यह उदारमना दिल उन्होंने तब दिखाया था जब कांग्रेस भाजपा का एजेंट होने की तरह काम करने का आरोप लगा चुकी थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के राज्यपाल भाई महावीर तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री दिगिवजय सिंह के बीच जगजाहिर कटुता थी। दोनों के बीच तनज्जुली इतनी बढ़ गई थी कि आलोचनाओं का आदान-प्रदान सार्वजनिक होने लगा था तभी आयोग-मंडल के अध्यक्षों की नियुक्ति में राज्यपाल को किसी भ्रष्ट चेहरे पर आपत्ति हुई तो दिगगी राजा ने इस सलाह को बड़े मन से स्वीकार करते हुए उस नाम को हटा दिया था। स्पष्ट है कि एक मुख्यमंत्री जब राज्यपाल के सुझाव का इस कदर सम्मान कर सकता है तो किसी विश्वविद्यालय का कुलपति क्यों नही?

शंकराचार्य हों या राज्यपाल, ये दो पद ही इस समाज में ऐसे हैं जो उस तबके की नुमाइन्दगी करते हैं जो समाज में श्वेतरक्त कणिकाओं का काम करता है जो हमारे शरीर को सेहतमंद रखती हंै। वैसे ही संत, वैज्ञानिक, शिक्षक और ऐसे तमाम बुद्धिजीवी या कर्मयोगी समाज को साफ-सुधरे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। ऐसी विभूतियों के सम्मान में यदि कुछ होता है तो मन में रचे-बसे इस विश्वास को ठेस पहुंचती है। कुलपतियों से गुजारिश है कि वे अपनी ओछी हरकतों से बाज आएं। इस संस्था की गरिमा और महानता को कायम रहने दें क्योंकि लोग आते-जाते हैं, संस्थाएं कायम रहती हैं। उनका बना रहना भी देश के लिए जरूरी है। इस मामले में सीएम साहब ने नो कमेंटस कहके चातुर्यता जरूर दिखाई लेकिन उनसे जो बड़ी उम्मीद जगी है, वह यह कि यदि राज्यपाल जैसी संस्था भी प्रशासनिक दादागिरी से आहत है तो उसकी लम्बी और गहरी शल्यक्रिया की जरूरत आन पड़ी है। लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी ना है।

अनिल द्विवेदी
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



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