भूख से मरी गायों पर लोगों की जुगाली
संपादकीय-
कांकेर के दुर्गूकोंदल के पास कर्रामाड़ की गौशाला में भूख से गायों की मौत पर प्रदेश का प्रशासन जुगाली करने से नहीं चूक रहा है। उधर भूखी प्यासी गाएं मर रही थीं तो इधर राजधानी में कृषि मंत्री बैठकों पर बैठकें लिए जा रहे थे। थोक में घोषणाएं किए जा रहे थे। गायों को लेकर जागरूकता के उपदेश भी राजधानी की जनता को भरपेट पिलाए गए। तो राजधानी की सड़कों पर खुली घूमती आवारा गाएं और जानवर उनको नहीं दिखाई दिए। ये समस्या भी आवारा जानवरों के चलते ही सामने आई। नगर निगम के लोगों ने वहां आवारा गायों को ले जाकर गौशाला में ठूंस दिया और अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। गौशाला प्रबंधन उतनी गायों के चारे-पानी का प्रबंध नहीं कर सका और भूख से तड़प-तड़प कर गाएं मर गईं। प्रदेश के सुखिया मुखिया ने दावा किया कि प्रदेश की चिंता करने के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बैठा है। तो ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री का तंज भी काफी तगड़ा लगा। जब उन्होंने पूछा कि कहां है प्रदेश का मुख्यमंत्री जो गायों की रक्षा नहीं कर सका? अजीत जोगी का ये तंज अपने आम में बहुत बड़ी बात कह गया। क्षत्रिय वंश ने हमेशा गऊ और ब्रह्मणों की रक्षा की है। क्षत्रिय का अर्थ ही होता है रक्षा करने वाला। अब ऐसा तंज करके अजीत जोगी ने सीएम को जमकर घेरा है। गौशाला के प्रबंधक को नोटिस थमा कर प्रशासन भी अब जांच के नाम पर वो गर्दन तलाशने में जुटा है जिसको आसानी से हलाल किया जा सके। राज्य गौसेवा आयोग अभी निश्चिंत बैठा हुआ है, उसको पता भी नहीं है कि कांकेर कलेक्टर का पत्र उसकी ओर चल चुका है। प्रमुख सचिव का फोन बंद।
यानि वेतन सातवां और काम तथा जिम्मेदारियां कुछ भी नहीं? बस अपना दोष दूसरे पर फेंको और खुद बच जाओ। ऐसा आखिर कब तक चलेगा? सरकार अगर जनता के पैसों को अफसरों में मनमानी तौर पर बांटती है तो उसको काम भी चाहिए। ऐसा काम जिसका परिणाम धरातल पर दिखाई दे। ऐसा होना नितांत आवश्यक है, यदि ऐसा नहीं होता है तो एक न एक दिन देश में एक बहुत बड़ा आंदोलन होगा और लोकतंत्र की नैया डूब जाएगी।
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